अखबारों की सुर्खियों में यह बात कहीं नहीं लिखी गई कि दरअसल, कौन सा राजनीतिक दल शॉर्टकट पॉलिटिक्स में विश्वास नहीं रखता है। बल्कि अगर सलीके से इस बात को कहा जाए, तो आधुनिक भारतीय राजनीतिक इतिहास में मोदी जी शॉर्टकट पॉलिटिक्स के मसीहा बन गए हैं। उनके जुमलों पर नजर डालते जाइए और शॉर्टकट पॉलिटिक्स को समझते जाइए।
उससे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर पीएम मोदी ने किस वजह से बीजेपी को छोड़कर बाकी राजनीतिक दलों को शॉर्टकट पॉलिटिक्स न करने की चेतावनी दी। दरअसल, हाल ही में गुजरात, हिमाचल, एमसीडी के अलावा कुछ उपचुनावों के नतीजे आएं हैं। गुजरात को छोड़कर बीजेपी बाकी जगह हार गई है। आम आदमी पार्टी मुफ्त बिजली, पानी के वादे के साथ दिल्ली से लेकर पंजाब और अब गुजरात में वोट बटोर रही है। गुजरात में मिले वोटों की वजह से वो राष्ट्रीय पार्टी बनने की ओर है। इसी तरह हिमाचल में कांग्रेस ने पुरानी पेंशन और महिलाओं को 1500 रुपये भत्ते का वादा कर काफी वोट पाए। जाहिर सी बात है कि इन सभी पार्टियों ने शॉर्टकट पॉलिटिक्स के तहत ऐसे वादों के सहारे वोट बटोरे हैं। लेकिन अगर आप खुद को आदर्शवादी बताकर दूसरों पर कीचड़ उछालेंगे तो अपने गिरेबान में भी झांकना जरूरी है। पीएम मोदी अपनी या बीजेपी की शॉर्टकट पॉलिटिक्स पर नजर डालने की बजाय दूसरों पर हमले कर रहे हैं।
किसानों की आमदनीः शॉर्टकट पॉलिटिक्स के संदर्भ में पीएम मोदी के वादों और जुमलों की शुरुआत 2014 से की जाए या 2022 से की जाए। क्या महत्वपूर्ण है। लेकिन 2014 पर बाद में, पहले हाल की घटनाओं पर बात करें। 2019 के आम चुनाव होने वाले थे और 2018 से ही पीएम मोदी किसानों की आमदनी दोगुनी करने का वादा करने लगे थे। 18 मार्च 2018 को पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह ने एक कार्यक्रम में कहा कि मोदी जी सपने न दिखाएं। मौजूदा समय में अर्थव्यवस्था की हालत को देखते हुए किसानों की आमदनी दोगुनी नहीं हो सकती। इसके लिए आपकी जीडीपी 12 फीसदी से ऊपर होना चाहिए। एक अर्थशास्त्री के रूप में स्थापित डॉ मनमोहन सिंह की इस बात को मोदी सरकार ने हंसी में उड़ा दिया। 2019 में दोबारा सत्ता मिलने पर मोदी सरकार किसानों की आमदनी दोगुना करने के नाम पर विवादास्पद कृषि बिल ले आई। लेकिन जबरदस्त किसान आंदोलन के दबाव में उसे वापस लेना पड़ा। किस तरह इस सरकार ने प्रधानमंत्री ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा को वापस लिया और उसे नए नाम के साथ पेश किया। वो कहानी तो अलग ही है। लेकिन किसानों की आमदनी दोगुना करने का जुमला भी शॉर्टकट राजनीति का नायाब नमूना है।
उज्जवला योजना का जोरशोर से प्रचार किया गया। इस योजना के तहत ग्रामीण महिलाओं को साल में तीन गैस सिलेंडर मुफ्त देने की बात कही गई। हालांकि इसके साथ तमाम शर्तें थीं। उनकी तह में नहीं जाते। भारतीय मीडिया के एक हिस्से ने इसे गेम चेंजर योजना बताया। 2022 की शुरुआत में जब यूपी विधानसभा चुनाव आया तो मोदी सरकार के मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इस बार होली और दीवाली पर भी ग्रामीण महिलाओं को दो सिलेंडर अतिरिक्त मिलेंगे। आज उस योजना के सिलेंडरों की स्थिति क्या है। रसोई गैस के दाम एक हजार रुपये से ऊपर पहुंचे चुके हैं। ग्रामीण महिलाएं उन सिलिंडरों की तरफ देखने को तैयार नहीं हैं। वो फिर से चूल्हे पर लौट आई हैं। हालांकि जब योजना लांच की गई थी, तभी यह कहा गया था कि सालभर में मात्र 3 सिलिंडर देकर किस तरह ग्रामीण महिलाओं को लकड़ी के धुएं के प्रदूषण से बचाया जा सकेगा। इस तरह एक बेहतर योजना भी सिर्फ चुनाव के लिए शॉर्टकट पॉलिटिक्स का हिस्सा साबित हुई।
बेरोजगारी का मुद्दाः बीजेपी के चुनावी घोषणापत्रों में दो करोड़ नौकरियां देने का वादा दर्ज है। फिर पीएमओ यानी प्रधानमंत्री कार्यालय ने 2022 की एक शाम को इसे 10 लाख नौकरियों में बदल दिया। उसने बताया कि 10 लाख नौकरियां अगले 10 महीनों में देने के लिए तमाम विभागों को कहा गया है। फिर एक दिन 75 हजार लोगों को नियुक्ति पत्र सौंपे जाने का कार्यक्रम आयोजित कर दिया गया। ये नौकरियां कब निकलीं, किसने आवेदन किया, कोई नहीं जानता। इस बीच देश के किसी न किसी कोने में बेरोजगारों का आंदोलन जारी है। यूपी, एमपी, असम, त्रिपुरा आदि के मुख्यमंत्री लाखों लोगों को नौकरियां मिलने के दावे कर रहे हैं। ये नौकरियां किन्हें मिल रही हैं, कोई नहीं जानता।
कांग्रेस शासनकाल में जिस तरह गरीबी हटाओ एक फर्जी नारा था तो ठीक उसी तरह लाखों नौकरियां देने का नारा फर्जी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के मुताबिक अक्टूबर 2022 में भारत की बेरोजगारी दर 7.8 फीसदी थी। अगस्त 2022 में यह सबसे उच्चतम स्तर 8.3 फीसदी थी। अगस्त के मुकाबले मामूली कमी आई है लेकिन वो अभी भी चिन्ताजनक जोन में है। चुनाव में नौकरियों का वादा या बेरोजगारी मिटाने का दावा बीजेपी सहित सभी राजनीतिक दलों के लिए शॉर्टकट पॉलिटिक्स का हिस्सा बन गया है। चूंकि मोदी और बीजेपी सत्ता में हैं तो उनके ऊपर इस शॉर्टकट पॉलिटिक्स को अपना कर वोट हासिल करने का आरोप ज्यादा है।
अग्निवीर पर सवालः 2022 में मोदी सरकार ने सेना में युवकों की भर्ती के लिए अग्निपथ योजना घोषित की। इस योजना के तहत 4 वर्षों के लिए युवकों को सेना में अग्निवीर भर्ती किया जाएगा। सेना में भर्ती कई वर्षों से बंद पड़ी थी। लेकिन जब सरकार यह योजना ले आई तो पंजाब से लेकर बिहार तक युवक आंदोलन पर उतर आए। उन्होंने कहा कि चार साल तक रोजगार देने की यह योजना सही नहीं है। हालांकि चार साल बाद अन्य सेवाओं में ऐसे अग्निवीरों को खपाने का वादा सरकार की तरफ से है लेकिन यह वादा लिखित में नहीं है। यह सिर्फ वादा है। रक्षा विशेषज्ञों ने भी इसे प्रेक्टिकल स्कीम नहीं बताई। इसका निष्कर्ष यह निकल कर आया कि सरकार ने पेंशन वगैरह की जिम्मेदारी से बचने के लिए अग्निवीर योजना पेश की है। इस योजना पर आज भी बहस जारी है। सेना के आला अधिकारी इसे अच्छी योजना बता रहे हैं लेकिन जिन राज्यों से सेना में ज्यादा भर्ती होती है, वहां के युवक इसे नाकाम योजना बता रहे हैं। यह अलग बात है कि बेरोजगारी की मजबूरी में युवक भर्ती होने के लिए अग्निवीर रैलियों में शामिल होने आते हैं और वो आंकड़ा देकर सरकार इसे अपनी कामयाबी बता रही है।
गुजरात चुनाव के दौरान 2002 के गुजरात दंगों का जिक्र और गरीबों को 5 किलो मुफ्त राशन योजना का बार-बार बढ़ाया जाना और उन पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की फोटो लगाने को शॉर्टकट पॉलिटिक्स नहीं माना जाए तो क्या माना जाए।
लेकिन जरा ठहरिए। 2014 के जिक्र के बिना शॉर्टकट पॉलिटिक्स पर बात अधूरी रहेगी।
15 लाख वाला जुमला
2014 में जब आडवाणी की जगह नरेंद्र मोदी का नाम बीजेपी ने बतौर प्रधानमंत्री कैंडिडेट घोषित किया तो यह राष्ट्रीय सनसनी बन गया। इसकी खास वजह यह थी कि 2014 के चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने दो महत्वपूर्ण घोषणाएं की थीं कि केंद्र में बीजेपी सरकार आने के बाद हर भारतीय के खाते में 15-15 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए जाएंगे। उनकी दूसरी महत्वपूर्ण घोषणा थी कि विदेशों से काला धन लाया जाएगा और जो काला धन लाया जाएगा, उसी में से 15-15 लाख रुपये भारतीयों के खातों में ट्रांसफर हो जाएगा। उस समय उन्होंने इन वादों को सरकार बनने के बाद सौ दिनों में पूरा करने की बात कही थी।2014 में शॉर्टकट राजनीति का यह पहला प्रयोग था, जिसके आशातीत नतीजे बीजेपी और मोदी को मिले। एक साल गुजर गया। फरवरी 2015 में एक टीवी चैनल में जब अमित शाह को 15 लाख रुपये हर भारतीय के बैंक खातों में आने की याद दिलाई जाती है तो अमित शाह का जवाब होता है - अरे वो तो चुनाव में मोदी जी का जुमला था। वास्तविकता में ऐसा कहां होता है। उसी के बाद भारतीय राजनीति को एक और शब्द मिला - जुमला पॉलिटिक्स।
लेकिन शॉर्टकट पॉलिटिक्स की यह शुरुआत भर थी। 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे भारतीय अर्थतंत्र के साथ भी प्रयोग किया गया जो बाद में साबित हुआ कि कितना महंगा साबित हुआ। उस रात पीएम मोदी ने कहा कि काला धन को खत्म करने के लिए 500 रुपये के उस समय के नोट और 1000 रुपये के नोट पर रोक लगाई जा रही है। जिसके पास वो नोट हों, फौरन बैंक में जमा कराकर दूसरे नए नोट प्राप्त कर ले। नए नोट फिर से 500 रुपये और 2000 रुपये के थे। पीएम मोदी ने 2016 में यह घोषणा करते हुए कहा था कि कश्मीर और अन्य स्थानों पर आतंकवाद की कमर तोड़ने के लिए ऐसा करना जरूरी हो गया था।
आतंकवाद की कमर टूटी या नहीं, लेकिन भारतीय जनता की कमर टूट गई। वो बैंकों के आगे लाइन लगाकर खड़ी हो गई। कई लोगों की सदमे में मौत हो गई। नाकाम नोटबंदी की यह कहानी लंबी है, इसलिए इसको यहीं छोड़कर आगे बढ़ते हैं।
पीएम मोदी अपने विरोधियों को अर्बन नक्सल और खान मार्केट गैंग के नाम से संबोधित करते रहे हैं। मोदी के पास जुमले हैं। वो निर्विवाद रूप से मौजूदा भारतीय राजनीति के ऐसे नेता हैं जो बोलने और जुमले उछालने में निपुण हैं। कोई उनका मुकाबला नहीं कर सकता। लेकिन उनका यह कहना है कि विपक्ष शॉर्टकट पॉलिटिक्स नहीं करे तो उससे सहमत नहीं हुआ जा सकता। शॉर्टकट पॉलिटिक्स पर सिर्फ नरेंद्र मोदी और बीजेपी का ही एकाधिकार नहीं है।
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