शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे की याचिका पर डिप्टी स्पीकर और उद्धव ठाकरे की टीम को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। इस मामले में अब अगली सुनवाई 11 जुलाई को होगी। इसके साथ ही अदालत ने बागियों को डिप्टी स्पीकर द्वारा जारी अयोग्यता नोटिस पर जवाब देने के लिए 11 जुलाई तक की राहत दी है। यानी उन्हें अब इसका जवाब 12 जुलाई तक देना होगा।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल, मुख्य सचेतक सुनील प्रभु, विधायक दल के नेता अनिल चौधरी और केंद्र को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट एकनाथ शिंदे की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। पिछले हफ्ते शिंदे और 15 अन्य बागी विधायकों को जारी किए गए अयोग्यता नोटिस को उन्होंने चुनौती दी थी।
महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवल ने 16 बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने वाला नोटिस उन्हें शनिवार को भेजा था। सभी विधायकों को उनका लिखित जवाब दाखिल करने के लिए 27 जून को शाम 5.30 बजे तक का वक़्त दिया गया था। इसके ख़िलाफ़ ही बाग़ियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी।
शिंदे गुट ने अपनी याचिका में कहा कि पार्टी के 38 विधायकों ने महा विकास आघाडी सरकार से समर्थन वापस ले लिया है और यह सरकार अल्पमत में आ गई है। याचिका में कहा गया कि महा विकास आघाडी सरकार सत्ता में बने रहने के लिए डिप्टी स्पीकर के दफ्तर का ग़लत इस्तेमाल कर रही है।
मामले की सुनवाई करने वाली जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पारदीवाला की बेंच ने अपने फ़ैसले में कहा, 'एक अंतरिम उपाय के रूप में डिप्टी स्पीकर द्वारा याचिकाकर्ताओं या इसी तरह के अन्य विधायकों को आज शाम 5.30 बजे तक अपना लिखित जवाब देने के लिए दिया गया समय 12 जुलाई 2022, शाम 5.30 बजे तक बढ़ाया जाता है। याचिकाकर्ता या अन्य विधायक रिट याचिका में अपने अधिकारों पर बिना किसी पूर्वग्रह के अपना जवाब देने के लिए आज़ाद हैं।'
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा है कि यदि प्रतिवादियों को अपना कोई जवाबी हलफनामा दाखिल करना है तो वे 5 दिनों के भीतर दाखिल कर सकते हैं।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि प्रत्येक नागरिक को दिया गया अधिकार सुरक्षित रहे। आदेश में कहा गया, 'महाराष्ट्र के सरकारी वकील का कहना है कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सभी 39 विधायकों और उनके परिवार के सदस्यों के जीवन और संपत्ति को कोई नुक़सान न पहुंचे।"
डिप्टी स्पीकर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने मौखिक रूप से अदालत को आश्वासन दिया कि इस बीच अयोग्यता पर कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से पहले सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं यानी बागियों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने तर्क दिया कि जब उन्हें हटाने का प्रस्ताव लंबित है तो उपाध्यक्ष अयोग्यता की कार्यवाही को आगे नहीं बढ़ा सकते हैं।
इधर शिवसेना विधायक दल के नेता अजय चौधरी और मुख्य सचेतक सुनील प्रभु की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने तर्क दिया कि जब अध्यक्ष के समक्ष कार्यवाही लंबित है तो अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि जब तक अध्यक्ष नोटिसों पर अंतिम रूप से निर्णय नहीं ले लेते, तब तक न्यायालय के समक्ष कोई कार्रवाई नहीं होगी। केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए।
ऐसे सवाल पर पीठ ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि उन्होंने उच्च न्यायालय का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ताओं के वकील कौल ने जवाब दिया कि अनुच्छेद 226 होने से अनुच्छेद 32 के तहत फ़ैसले देने के लिए एक संवैधानिक रोक नहीं है और यह कि फ्लोर टेस्ट, अयोग्यता आदि से जुड़े कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 32 के तहत आदेश जारी किए हैं।
उन्होंने आशीष शेलार और अन्य बनाम महाराष्ट्र विधानसभा का ज़िक्र करते हुए तर्क दिया कि अत्यधिक गड़बड़ी के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत अपनी शक्तियों के प्रयोग से हस्तक्षेप कर सकता है।
कौल ने यह भी आरोप लगाया कि बॉम्बे में माहौल याचिकाकर्ताओं के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए अनुकूल नहीं है, क्योंकि 'विधायक दल का एक अल्पमसंख्यक सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर रहा है, हमारे घरों पर हमला कर रहा है और कह रहा है कि हमारे शव वापस लौटेंगे।'
जब कौल ने अदालत से अध्यक्ष या उपाध्यक्ष की अयोग्यता की कार्यवाही को लेकर सवाल उठाया तो जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि उन्होंने डिप्टी स्पीकर की अक्षमता का मुद्दा खुद डिप्टी स्पीकर के सामने क्यों नहीं उठाया। इस पर कौल ने जवाब दिया कि इसकी सूचना डिप्टी स्पीकर को दी गई थी और उन्होंने अभी भी नोटिस जारी किए।
उन्होंने नबाम रेबिया बनाम अरुणाचल प्रदेश विधानसभा डिप्टी स्पीकर मामले का ज़िक्र किया जहाँ कहा गया था कि एक अध्यक्ष के लिए दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता याचिकाओं पर निर्णय लेना संवैधानिक रूप से ठीक नहीं है, जबकि उसके खुद के निष्कासन के लिए नोटिस लंबित हो।
सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में कहा था, 'अध्यक्ष का पद, जिसके पास विधायकों के ख़िलाफ़ अयोग्यता याचिकाओं से निपटने का अधिकार है, उसे विधानसभा का विश्वास प्राप्त होना चाहिए।'
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