कुछ राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि ऐसा लगता है कि केंद्र का रवैया पहले से बदल गया है। इसने केंद्र द्वारा सोमवार को दायर हलफनामे को लेकर कहा कि 25 मार्च को दाखिल किए गए हलफनामे से कुछ हद तक वह पीछे हट गया है। अदालत ने कहा है कि यह ठीक नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के बार-बार जोर दबाव देने के बाद केंद्र ने 25 मार्च के हलफनामे में यह कहते हुए अपनी ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश की थी कि समवर्ती सूची की शक्तियाँ राज्यों को भी अल्पसंख्यक का दर्जा देने का अधिकार देती हैं। जबकि 9 मई को दायर नए हलफनामे में केंद्र ने कह दिया है कि 'अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने की शक्ति केंद्र के पास है'। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने कहा कि इस मामले के दूरगामी प्रभाव होंगे और राज्य सरकारों और अन्य हितधारकों के साथ चर्चा के लिए और समय चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर इसलिए सुनवाई कर रहा है क्योंकि दिल्ली बीजेपी के नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने याचिका दायर की है। याचिका में इस मुद्दे पर केंद्र से स्टैंड लेने के लिए कहा गया है। उपाध्याय की याचिका भारत की 2011 की जनगणना पर आधारित थी, जिसके अनुसार लक्षद्वीप, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय, जम्मू और कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिंदू अल्पसंख्यक हैं।
उपाध्याय ने पहली बार 2017 में सुप्रीम कोर्ट का अल्पसंख्यकों की पहचान के लिए उचित दिशा-निर्देशों के लिए दरवाजा खटखटाया था।
केंद्र ने शुरुआत में यह कहते हुए याचिका को खारिज करने की मांग की थी कि 'यह बड़े पैमाने पर सार्वजनिक या राष्ट्रीय हित में नहीं है'।
बहरहाल, राज्यों के साथ चर्चा के लिए और समय देने की प्रार्थना पर अदालत ने कहा, 'यदि आप राज्यों से परामर्श करना चाहते हैं तो आपको एक कॉल लेना होगा...।' 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने केंद्र से कहा कि 'आप तय करें कि आप क्या करना चाहते हैं। यदि आप परामर्श करना चाहते हैं, परामर्श करें; आपको परामर्श करने से कौन रोक रहा है।'
जस्टिस एस के कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश की पीठ ने चर्चा के लिए समय देने के केंद्र के अनुरोध की अनुमति दी और मामले की सुनवाई के लिए 30 अगस्त की तारीख तय की।
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