गृह मंत्रालय (एमएचए) ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की सुरक्षा को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ा दिया है, जिससे उन्हें एडवांस सिक्योरिटी लाइजन (एएसएल) प्रोटेक्टी का दर्जा दिया गया है। एएसएल के तहत अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को ही यह सुरक्षा हासिल है।
सूत्रों ने बताया कि उनकी सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंता के बीच, विशेष रूप से गैर-भाजपा राज्यों में, संभावित सुरक्षा खामियों के कारण सुरक्षा बढ़ाई गई है। इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने इस बारे में सरकार को स्पेसल मीमो भेजा था।
मोहन भागवत इससे पहले वह जेड-प्लस सुरक्षा व्यवस्था के तहत केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की निगरानी में थे। भागवत को "कई भारत-विरोधी और कट्टरपंथी इस्लामवादी समूहों" द्वारा निशाने पर माना जाता है। गृह मंत्रालय के फैसले को इस महीने की शुरुआत में अंतिम रूप दिया गया था।
नए प्रोटोकॉल के तहत, जिला प्रशासन, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग सहित स्थानीय एजेंसियां भागवत की सुरक्षा में सक्रिय भूमिका निभाएंगी। हालांकि आरएसएस को अपनी सुरक्षा पर ज्यादा भरोसा रहता है। आरएसएस प्रमुख के चारों तरफ सीनियर आरएसएस नेताओं या स्वयंसेवकों का घेरा होता है। जिनके पास हथियार भी होते हैं। बिना इनकी मर्जी के कोई भी आरएसएस प्रमुख से नहीं मिल सकता। सरकारी सुरक्षा इन स्वयंसेवकों के सुरक्षा घेरे के बाद शुरू होती है। यहां तक कि अब संघ का अपना डॉक्टर भी संघ की अपनी सुरक्षा का हिस्सा होता है।
बहरहाल, नई सरकारी सुरक्षा के तहत अब मोहन भागवत के दौरे से पहले किसी भी जगह उसी तरह की सुरक्षा रिहर्सल होगी, जैसी अभी प्रधानमंत्री या केंद्रीय गृह मंत्री के लिए की जाती है। नए सुरक्षा घेरे में कड़े तोड़फोड़ विरोधी उपाय और यात्रा से पहले गहन पूर्व समीक्षा शामिल हैं।
यह निर्णय उभरते सुरक्षा खतरों के बीच हाई-प्रोफाइल हस्तियों के लिए सुरक्षा बढ़ाने के प्रति गृह मंत्रालय की प्रतिबद्धता को बताता है। इससे यह पता चलता है कि भागवत के आवास, यात्रा और सार्वजनिक कार्यक्रमों की अत्यधिक सतर्कता के साथ सुरक्षा की जा रही है। हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले और उस दौरान आरएसएस और मोदी सरकार के बीच रिश्ते बिगड़ गए थे। केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने कहा था कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है। वो अपने दम पर चुनाव लड़ सकती है। उसे संघ के मदद की जरूरत नहीं है। तीसरी बार सत्ता में वापसी पर भाजपा और संघ के रिश्ते अब तेजी से ठीक हो रहे हैं।
आरएसएस तमाम विवादों में रहा है और अभी भी है। कांग्रेस का आरोप है कि आरएसएस संविधान को बदल कर आरक्षण खत्म कराना चाहता है। अतीत में खुद मोहन भागवत आरक्षण के समीक्षा की बात कह चुके हैं लेकिन बाद में बयान को वापस ले लिया गया। कांग्रेस का यह भी आरोप है कि आजादी की लड़ाई में आरएसएस का कोई योगदान नहीं है। उसके तमाम नेता अंग्रेजों के लिए मुखबिरी करते थे। सावरकर अंग्रेजों से माफी मांगकर अंडमान की जेल से बाहर आए थे। आरएसएस ने आजादी के बाद चालीस वर्षों तक तिरंगा झंडा तक नहीं फहराया। उसके मुखपत्र ऑर्गनाइजर में संविधान और तिरंगे झंडे के खिलाफ लेख प्रकाशित किए गए।
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