उपचुनावों में हार-जीत से सरकार पर तो कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन नेताओं को अपनी नीतियों की जीत और दूसरे की नीतियों की हार के दावे करने का मौका मिल जाता है। बिहार में गोपालगंज और मोकामा की सीटों पर पिछले चुनाव में जीत हासिल करने वाले राजनीतिक दलों का ही कब्जा रहा लेकिन इनके परिणामों से बिहार की आगे की राजनीति में बीजेपी और आरजेडी के लिए होने वाली मुश्किलों का पता भी चल गया।

एआईएमआईएम को बिहार के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें मिली थीं लेकिन बाद में उसके चार विधायक आरजेडी के साथ चले गए थे। गोपालगंज सीट पर एआईएमआईएम का प्रदर्शन क्या आरजेडी के लिए बिहार में उसके आधार मुस्लिम वोट में सेंध लगने की चेतावनी है?
मोकामा में भूमिहार जाति की ही दो उम्मीदवारों आरजेडी की नीलम देवी और बीजेपी की सोनम देवी के बीच मुकाबला था और वहां बीजेपी ने भूमिहार जाति से आने वाले अपने नेताओं को लगाया था लेकिन जो झटका उसे मुजफ्फरपुर की बोचहां सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान इस जाति के वोटरों से लगा था, वह मोकामा में भी जारी रहा।
दोनों दलों ने वहां से दो बाहुबलियों अनंत सिंह और नलिनी रंजन की पत्नी को उम्मीदवार बनाया था। 2020 के लिहाज से देखा जाए तो इस बार आरजेडी के उम्मीदवार की जीत का अंतर 35757 से घटकर 16741 रह गया लेकिन पिछली बार यहां अविभाजित एलजेपी के प्रत्याशी सुरेश सिंह निषाद को 13 हजार से अधिक वोट मिले थे।