भारत बायोटेक की जिस कोवैक्सीन को जनवरी में ही आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई थी उसके तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े अब आ गए हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वैक्सीन तीसरे चरण के ट्रायल में 77.8 फ़ीसदी प्रभावी है। यह ट्रायल 25 हज़ार 800 प्रतिभागियों पर किया गया। रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई के विशेषज्ञ पैनल ने इस आँकड़े और परिणाम को मंगलवार को मंजूरी दे दी है। हाल ही में ये आँकड़े डीसीजीआई को पेश किए गए थे।
हाल ही में भारत बायोटेक ने कहा था कि तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़ों के अंतिम परिणाम जुलाई में सार्वजनिक होंगे। इससे पहले कंपनी ने मार्च में भी तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े जारी किए थे लेकिन वे अंतरिम विश्लेषण के आधार पर थे। यानी वे अंतिम विश्लेषण के आधार पर नहीं थे। जब जनवरी में इसको आपात मंजूरी दी गई थी तब इसके तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े को लेकर विवाद भी हुआ था और सवाल उठे थे कि उन आँकड़ों के बिना मंजूरी कैसे दी गई।
क़रीब एक पखवाड़े पहले भारत बायोटेक ने कहा था कि इसकी वैक्सीन संपूर्ण रूप से 78 फ़ीसदी प्रभावी है। इसके बाद पीयर-रिव्यू जर्नल द्वारा इसका आकलन किया जाएगा और लगभग तीन महीने की समय-सीमा में इसका प्रकाशन होगा।
तीन जनवरी को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की कोविशील्ड के साथ ही भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को 'सीमित इस्तेमाल' की मंजूरी दी थी। कोविशील्ड के 70 फ़ीसदी प्रभावी होने का दावा किया गया था। लेकिन कोवैक्सीन को लेकर ऐसा कोई दावा नहीं किया गया था।
बता दें कि मंजूरी मिलने के क़रीब दो महीने बाद भारत बायोटेक ने मार्च में भी तीसरे चरण के आँकड़े जारी किए थे। कंपनी ने कहा था कि अंतरिम विश्लेषण से पता चला है कि यह वैक्सीन कोरोना को रोकने में 81 फ़ीसदी प्रभावी है और इसमें गंभीर और साइड इफेक्ट यानी दुष्परिणाम निम्न स्तर के रहे।
भारत बायोटेक ने यह भी दावा किया था कि 'नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के विश्लेषण से पता चलता है कि टीके से बनी एंटीबॉडी ब्रिटेन में पाए गए नये क़िस्म के कोरोना को बेअसर कर सकती है।'
तब इसने कहा था कि तीसरे चरण के आँकड़े 25,800 प्रतिभागियों पर ट्रायल के आधार पर हैं। इस मामले में और अधिक जानकारी इकट्ठा करने और वैक्सीन की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए 130 पुष्ट मामलों के अंतिम विश्लेषण तक ट्रायल जारी रहेगा।
कंपनी द्वारा ये आँकड़े जारी किए जाने के क़रीब एक हफ़्ते बाद ही कोवैक्सीन 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में नहीं रही थी। डीसीजीआई ने क्लिनिकल ट्रायल मोड को हटा दिया था। 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' टैग हटाने का मतलब है कि उस वैक्सीन को लगवाने से पहले लोगों को सहमति वाले एक फ़ॉर्म पर दस्तख़त करने की ज़रूरत नहीं है।
'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में सहमति वाले दस्तख़त की ज़रूरत इसलिए थी कि भारत बायोटेक की इस कोवैक्सीन को तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े के बिना ही आपात मंजूरी दी गई थी और इसलिए कहा गया था कि इसे क्लिनिकल ट्रायल मोड में ही आपात इस्तेमाल किया जा सकता है।
डब्ल्यूएचओ की मंजूरी मिलेगी?
डीसीजीआई की मंजूरी मिलने से अब विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ की आपात इस्तेमाल की मंजूरी वाली सूची में कोवैक्सीन को शामिल किये जाने यानी ईयूएल मिलने में आसानी हो सकती है। ईयूएल पाने के लिए भारत बायोटेक लगातार कोशिश में है। ईयूएल मिलने के बाद दूसरे देश भी कोवैक्सीन को वैध वैक्सीन के रूप में स्वीकार करने लगेंगे।
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