सुप्रीम कोर्ट की अवमानना को लेकर दोषी ठहराये गये वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफ़ी माँगने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को दाखिल अपने बयान में प्रशांत भूषण ने कहा कि उनके बयान सद्भावनापूर्ण थे और अगर वह माफ़ी माँगेंगे तो यह उनकी अंतरात्मा और उस संस्थान की अवमानना होगी जिसमें वो सर्वोच्च विश्वास रखते हैं। 20 अगस्त को प्रशांत भूषण अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सज़ा पर सुनवाई टाल दी थी और अपने बयान के बारे में दोबारा विचार करने को कहा था और इसके लिए सोमवार तक का वक़्त दिया गया था। मंगलवार को जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की तीन सदस्यीय बेंच सुनवाई करेगी। प्रशान्त भूषण का मामला मंगलवार को केस लिस्ट में क्रमांक 7 पर लगा हुआ है।
माफ़ी माँगने का प्रश्न नहीं: प्रशान्त भूषण
प्रशांत भूषण ने अवमानना मामले में जवाब दाखिल किया। इसमें उन्होंने कहा है, 'मेरे ट्वीट सद्भावनापूर्वक विश्वास के तहत थे, जिस पर मैं आगे भी कायम रहना चाहता हूँ। इन मान्यताओं पर अभिव्यक्ति के लिए सशर्त या बिना शर्त की माफ़ी निष्ठाहीन होगी।’ उन्होंने कहा, 'मैंने पूरे सत्य और विवरण के साथ सद्भावना में इन बयानों को दिया है जो अदालत ने विचार नहीं किए। अगर मैं इस अदालत के समक्ष बयान से पलट जाऊँ, तो मेरा मानना है कि अगर मैं एक ईमानदार माफ़ी की पेशकश करता हूँ, तो मेरी नज़र में मेरे अंत:करण की अवमानना होगी और उस संस्थान की जिसका मैं सर्वोच्च सम्मान करता हूँ।'
‘मैंने सुप्रीम कोर्ट से जो कहा वो मेरा कर्तव्य था’
भूषण ने कहा, 'मेरे मन में संस्थान के लिए सर्वोच्च सम्मान है। मैंने सुप्रीम कोर्ट या किसी विशेष सीजीआई को बदनाम करने के मक़सद से नहीं बल्कि रचनात्मक आलोचना की पेशकश करने के लिए यह किया था, जो मेरा कर्तव्य है। मेरी टिप्पणी रचनात्मक है और संविधान के संरक्षक और लोगों के अधिकारों के संरक्षक के रूप में अपनी दीर्घकालिक भूमिका से सुप्रीम कोर्ट को भटकने से रोकने के लिए था।
बता दें कि अंतिम सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण की तरफ़ से पेश वकीलों के तर्क सुनने के बाद कहा था कि वो इस मामले में प्रशान्त भूषण को अपने बयानों पर दोबारा विचार करने के लिए 2-3 दिन का समय दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि बाद में यह न कहा जाए कि हमने आपको समय नहीं दिया।
सुनवाई के दौरान ही प्रशांत भूषण ने कोर्ट से कहा था कि मैं आभारी हूँ पीठ का कि मुझे विचार करने का मौक़ा दिया, लेकिन मैं अपने बयान पर कायम हूँ। मुझे समय देने से कोई औचित्य हल नहीं होगा।
अवमानना के मामले में प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से उनके आदेश पर पुनर्विचार की माँग रखी थी। प्रशांत भूषण की तरफ़ से तर्क दिया गया था कि चूँकि अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की और फ़ैसला दिया है, इसलिए उन्हें उनके आदेश पर पुनर्विचार करने का मौक़ा देना चाहिए। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार के मुद्दे पर इजाज़त देने से इनकार कर दिया था।
एटॉर्नी जनरल ने क्या कहा?
अवमानना के मामले में 20 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश हुए एटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से वकील प्रशान्त भूषण को सज़ा न देने की गुज़ारिश की थी। हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने एटॉर्नी जनरल से अपने बयान पर दोबारा विचार करने की सलाह भी दी।
क्या था मामला?
27 जून को किए गए एक ट्वीट में प्रशांत भूषण ने 4 पूर्व चीफ़ जस्टिस को लोकतंत्र की हत्या में हिस्सेदार बताया था। 29 जून को उन्होंने बाइक पर बैठे चीफ़ जस्टिस एस ए बोबड़े की तसवीर पर ट्वीट किया था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े आम लोगों के लिए बंद कर दिए हैं जबकि ख़ुद बीजेपी नेता की 50 लाख की बाइक की सवारी कर रहे हैं।
बाद में इस ट्वीट पर कोर्ट में सफ़ाई देते हुए प्रशांत भूषण ने माना था कि तथ्यों की पूरी तरह से पुष्टि किए बिना उन्होंने तसवीर पर टिप्पणी की। लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उनकी भावना सही थी। वह आम लोगों को न्याय दिलाने को लेकर चिंतित हैं।
4 पूर्व चीफ़ जस्टिस पर किए गए ट्वीट के बारे में उन्होंने सफ़ाई दी थी कि पिछले कुछ सालों में सुप्रीम कोर्ट कई मौक़ों पर वैसी ज़िम्मेदारी निभाने में विफल रहा है, जिसकी उम्मीद की जाती है। कोर्ट ने प्रशांत भूषण के स्पष्टीकरण को नामंजूर करते हुए 14 अगस्त को उन्हें अवमानना का दोषी क़रार दिया था।
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