सुप्रीम कोर्ट की आपराधिक अवमानना के लिए दोषी ठहराये गये जानेमाने वकील प्रशान्त भूषण सज़ा दिए जाने के एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट दोबारा पहुँच गये। उन्होंने अर्जी दाखिल कर माँग की है कि सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त के आदेश के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का वक़्त उन्हें दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को प्रशान्त भूषण को आपराधिक अवमानना का दोषी पाया था। साथ ही 20 अगस्त के लिए सज़ा की तारीख़ तय की थी।
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अपील न सुनने पर होगी ‘न्याय हत्या’!
प्रशान्त भूषण की तरफ से वकील कामिनी जायसवाल की दाखिल अर्जी में कहा गया है कि न्यायालय अवमानना अधिनियम कानून की धारा 19(1) के तहत अपील का अधिकार है। याचिका में कहा गया है कि हाईकोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ अपील का प्रावधान किया गया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मामले में अधिनियम सीधे तौर पर कुछ नहीं कहता।जहाँ तक अवमानना का सवाल है, सुप्रीम कोर्ट, निचली अदालत की तरफ काम करेगा। अगर सज़ा दी है तो उसकी अपील भी सुननी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि अगर उनकी अपील न सुनी गयी तो वो न्याय हत्या कहलायी जाऐगी।
आपराधिक अवमानना के मामले में जब सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेता है और सज़ा देता है तो आपराधिक न्याय प्रक्रिया के तहत सुप्रीम कोर्ट को भी अपील का अवसर देना चाहिए। यह संविधान के आर्टिकल 21 के तहत अधिकार के अन्तर्गत आयेगा।
यदि सजा दे दी जाती है और अपील का प्रावधान स्वत: संज्ञान आपराधिक मामले में सुप्रीम कोर्ट नहीं देता है तो यह बहुत घोर अन्याय होगा।
पुनर्विचार याचिका
प्रशान्त भूषण ने अपनी याचिका में कहा कि 14 अगस्त को उन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया गया था। वह इस आदेश का अध्ययन करेंगे और इसके क़ानूनी पहलुओं पर सलाह करेंगे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश में बोलने की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का महत्तवपूर्ण पक्ष अंतर्निहित है।सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश संख्या 47 के तहत वह सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के ख़िलाफ़ अपील करना चाहते हैं, जिसके लिए नियमानुसार उन्हें 30 दिन का वक़्त दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट से माँग
दाखिल अर्जी में कहा गया है कि वह इस बात की अडरटेकिंग देते हैं कि अगर सज़ा को टालने का मौका दिया जाता है तो वह दोषी ठहराये जाने के 30 दिनों के भीतर पुनर्विचार याचिका दाखिल कर देंगे।वकील प्रशान्त भूषण को सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को उनके दो ट्वीट को लेकर दोषी ठहराया था, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराते हुए कहा था कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जैसे न्यायिक संस्था को बदनाम करने की कोशिश की थी।
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