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फोटो साभार: एक्स/@narendramodi

पीएम मोदी ने 2002 गुजरात दंगों पर तोड़ी चुप्पी, क्या बदल जाएगी धारणा?

2002 गुजरात दंगों का सच क्या है? क्या दंगों को लेकर ग़लत जानकारियाँ फैली हैं? दरअसल, पीएम मोदी ने उन गुजरात दंगों पर अपनी चुप्पी तोड़ी है जिनको लेकर लंबे समय तक वह विवादों में रहे और जिन पर तरह-तरह के सवाल उठते रहे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह चुप्पी पॉडकास्टर लेक्स फ्रिडमैन के साथ तीन घंटे की बातचीत में तोड़ी है। उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर फैली 'ग़लत सूचनाओं' को चुनौती दी है। उन्होंने दावा किया कि इन दंगों को राज्य के इतिहास में सबसे बड़े दंगे के रूप में पेश करना ग़लत है, क्योंकि गुजरात में दशकों से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ होती रही हैं। पीएम मोदी का यह बयान न केवल उस दौर की घटनाओं को नए नज़रिए से पेश करने की कोशिश करता है, बल्कि मोदी के नेतृत्व और गुजरात के विकास मॉडल पर भी बहस को जन्म देता है। 

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पॉडकास्ट में पीएम मोदी ने 2002 के दंगों से पहले के अस्थिर हालात का ज़िक्र करते हुए कहा कि उस समय 1999 का कंधार विमान अपहरण, 9/11 हमला, और 2001 में भारतीय संसद पर हमला जैसी वैश्विक और घरेलू आतंकी घटनाओं ने माहौल को तनावपूर्ण बना दिया था। 27 फरवरी, 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने से 59 हिंदू कारसेवकों की मौत ने इस तनाव को हिंसा में बदल दिया। पीएम ने कहा, 'यह एक अकल्पनीय त्रासदी थी। लोग ज़िंदा जल गए। उस समय की घटनाओं को देखते हुए आप समझ सकते हैं कि स्थिति कितनी तनावपूर्ण थी।'

उन्होंने यह भी कहा कि 2002 के दंगे गुजरात में पहली बड़ी हिंसा नहीं थे। उन्होंने कहा, 'यह धारणा कि ये सबसे बड़े दंगे थे, ग़लत सूचना है। 2002 से पहले गुजरात में 250 से अधिक दंगे हो चुके थे। 1969 के दंगे तो छह महीने तक चले थे। पतंग उड़ाने या साइकिल की टक्कर जैसी मामूली बातों पर भी हिंसा भड़क उठती थी।'
2002 के दंगों में अपनी सरकार की संलिप्तता के आरोपों को खारिज करते हुए मोदी ने कहा कि बार-बार की न्यायिक जाँच में उन्हें निर्दोष पाया गया। पीएम ने कहा, 'न्यायपालिका ने इस मामले की गहन जांच की। हमारे राजनीतिक विरोधी केंद्र में सत्ता में थे, फिर भी वे आरोपों को साबित नहीं कर सके। अदालतों ने दो बार स्थिति की समीक्षा की और हमें पूरी तरह निर्दोष पाया। असली दोषियों को सजा मिली है।' 
जून 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने भी जकिया जाफरी की याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें विशेष जांच दल यानी एसआईटी द्वारा मोदी और अन्य को दी गई क्लीन चिट को चुनौती दी गई थी।

पीएम मोदी ने पिछले 22 वर्षों में गुजरात में बड़े दंगों के नहीं होने को अपनी सरकार की उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा, 'हमने तुष्टिकरण की राजनीति से हटकर योगदान की राजनीति अपनाई। आज गुजरात पूरी तरह शांत है और विकसित भारत के सपने में योगदान दे रहा है।' यह दावा उनकी उस रणनीति को दिखाता है जिसमें विकास को सांप्रदायिक विभाजन से ऊपर रखा गया है।

गुजरात दंगों में क्या हुआ?

फ़रवरी 2002 में गोधरा कांड के बाद शुरू हुए दंगों में हिंसा 2-3 महीने तक चली। 2005 में केंद्र सरकार ने राज्यसभा को बताया कि इन दंगों में 254 हिंदू और 790 मुस्लिम मारे गए, जबकि 223 लोग लापता हुए। हजारों लोग बेघर हो गए। गोधरा कांड के दोषियों को सजा मिली, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।

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पीएम मोदी का यह बयान 2002 के दंगों को एक व्यापक ऐतिहासिक संदर्भ में रखता है। इससे यह संदेश जाता है कि वह चाहते हैं कि इसे केवल उनके शासनकाल की विफलता के रूप में नहीं देखा जाए। वह यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि गुजरात में लंबे समय से चली आ रही सांप्रदायिक अस्थिरता को उनके नेतृत्व ने ख़त्म किया। हालांकि, विपक्षी दल इसे उनकी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश के रूप में देख सकते हैं।
मोदी का यह साक्षात्कार अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनकी छवि को फिर से चमकाने की कोशिश भी हो सकता है। यह बयान उनके समर्थकों को एकजुट करने और आलोचकों को जवाब देने का प्रयास लगता है। लेकिन क्या यह उस धारणा को बदल पाएगा जो 2002 के दंगों से जुड़ी है?

प्रधानमंत्री मोदी ने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर एक नया नज़रिया पेश किया है, जिसमें ऐतिहासिक हिंसा, न्यायिक जांच और विकास पर जोर है। उनके बयान का संकेत है कि वह अपने नेतृत्व की ताक़त को दिखाना चाहते हैं, लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह दशकों पुरानी बहस को शांत कर पाएगा? गुजरात की शांति और प्रगति उनकी उपलब्धि हो सकती है, पर अतीत की छाया अभी भी राजनीतिक चर्चाओं में बनी है।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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