भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ काे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने थाम लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए ये चिंतन-मनन का विषय है। कांग्रेस और राहुल गाँधी को इन नतीजों से संजीवनी तो मिली है , लेकिन तेलंगाना और मिज़ोरम के नतीजे पार्टी के लिए नई चेतावनी भी हैं। कांग्रेस अपने इन दोनों गढ़ों में क्षेत्रीय पार्टियों से बुरी तरह हार गई है।
इन पाँचों राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों से साफ़ है कि जनता अब इस पार या उस पार की सोचने लगी है। सभी राज्यों में किसी एक पार्टी को साफ़ बहुमत मिला है। गोवा, मेघालय और कर्नाटक जैसी दुविधा की स्थिति नहीं है, जहाँ बीजेपी को छल-कपट करने का मौक़ा मिल गया था। राजस्थान में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की क़रीब दो दशक पुरानी परंपरा बरकरार रही। इसलिए बीजेपी को इस हार की टीस ज़्यादा नहीं होगी।
बीजेपी को थी जीत की उम्मीद
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी को सत्ता में वापसी की पूरी उम्मीद बनी हुई थी क्योंकि चुनाव-पूर्व सर्वे और एग्ज़िट पोल के ज़्यादातर नतीजे बीजेपी के लिए उम्मीद की किरण बरकरार रख रहे थे। इसका प्रमुख कारण यह भी है कि दूरदराज़ के गाँव में रहने वाले ग़रीब किसानों के मन की बात न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समझ पाए और न ही उनकी पार्टी। बीजेपी के ज़्यादातर नेता यह मानकर चल रहे थे कि कम-से-कम मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उनके विजय रथ को रोका नहीं जा सकेगा।बीजेपी के नेता शायद भूल गए थे कि दोनों राज्यों में सालों से उनकी ही सरकार है और अब लोग ठोस नतीजा चाहते हैं। सपना दिखाने का वक़्त कब का गुज़र चुका है। बीजेपी का प्रचार तंत्र भावनात्मक मुद्दों को उछालने में सबसे आगे है। 2013 में राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर नरेंद्र मोदी के उदय के बाद यह प्रक्रिया और तेज़ हुई। 2014 का लोकसभा चुनाव मोदी ने अपनी भावनात्मक प्रचार शैली से ही जीता।