प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनावी शपथ पत्र में अपनी संपत्ति की ग़लत जानकारी देने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को जनहित याचिका दायर की गयी है। इसमें एक ज़मीन के प्लॉट को लेकर आरोप लगाया गया है कि मोदी ने 2007 के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान शपथ पत्र में इसका ज़िक्र तो किया लेकिन बाद के चुनावी शपथ पत्रों में इसको छुपाया। याचिकाकर्ता ने ज़मीन के प्लॉट में भी अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कथित रूप से ग़लत शपथ पत्र दिया जाना नागरिकों के इस अधिकार का उल्लंघन है जिसमें उन्हें अपने उम्मीदवार के बारे में पूरा जानने का अधिकार है। याचिका में माँग की गयी है कि सेवानिवृत्त मुख़्य न्यायाधीश के नेतृत्व में विशेष जाँच टीम यानी एसआईटी गठित कर पूरे मामले की जाँच की जाये।
क्या है प्लॉट का मामला?
क़ानून से जुड़े मुद्दों पर प्रमुखता से रिपोर्टें प्रकाशित करने वाली वेबसाइट 'लाइव लॉ' ने याचिकाकर्ता साकेत गोखले की इस याचिका पर ख़बर दी है। याचिकाकर्ता गोखले ने आरोप लगाया है कि नरेंद्र मोदी गुजरात सरकार की ज़मीन आवंटन योजना के लाभार्थी रहे हैं। उनका कहना है कि 1998 से शुरू हुई इस योजना में विधायकों को सरकारी ज़मीन औने-पौने दाम पर आवंटित की जाती रही थी। ज़मीन आवंटन की इस योजना पर लगातार सवाल उठते रहे हैं और यह योजना काफ़ी विवादित रही है।
याचिका के अनुसार, मोदी ने 2002 में इस योजना का लाभ लिया था। इसमें मोदी को गाँधीनगर शहर के बीचोबीच सेक्टर-1 में प्लॉट नं- 411 सिर्फ़ 1.3 लाख रुपये में 23 अक्टूबर 2002 को आवंटित कर दिया गया। इस प्लॉट का ज़िक्र उन्होंने गुजरात विधानसभा चुनाव लड़ने के दौरान 2007 के चुनावी शपथ पत्र में किया था।
क्या रहा है विवाद?
बता दें कि ज़मीन आवंटन की यह योजना तब विवादों में रही थी जब 2000 में गुजरात हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इसकी जाँच के आदेश दिए थे। 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को जल्द निपटाने के लिए हाई कोर्ट को निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इस योजना में कोई भी ज़मीन आवंटित नहीं की जाएगी और जिनके नाम से पहले प्लॉट आवंटित हो गये हैं वे इसको किसी अन्य को हाई कोर्ट की अनुमति के बिना ट्रांसफ़र भी नहीं कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के इसी आदेश को पारित करने के दौरान कोर्ट की डी.के. जैन और एम.बी. लोकुर की बेंच के सामने तब गुजरात सरकार की अधिवक्ता मीनाक्षी लेखी ने यह बयान दर्ज कराया था कि 2000 के बाद ज़मीन का ऐसा कोई आवंटन नहीं किया गया है और मामले की जाँच की जा रही है। गोखले ने यहाँ आरोप लगाया है कि तब सरकार की तरफ़ से दर्ज कराया गया वह बयान ग़लत था क्योंकि मोदी को ज़मीन का आवंटन 2002 में किया गया।
गोखले ने आरोप लगाया है कि कोर्ट की कार्यवाही के बाद मोदी के शपथ पत्र में प्लॉट नंबर 411 का ज़िक्र नहीं था और इसकी जगह गाँधीनगर में प्लॉट नंबर 401/ए के एक चौथाई हिस्से के मालिक के रूप में घोषणा की गयी जो कि 'अस्तित्व में ही नहीं' है। गोखले का यह भी कहना है कि प्लॉट नंबर 401 केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के नाम पर आवंटित है।
केस सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफ़र क्यों हुआ?
'लाइव लॉ' वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार योजना की वैधता पर गुजरात हाई कोर्ट की कार्यवाही इसलिए आगे नहीं बढ़ रही थी क्योंकि कई जजों ने इस केस की सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लिया था। इसके बाद इस मामले को 28 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफ़र कर दिया गया।
वेबसाइट के अनुसार, गोखले ने व्यक्तिगत दौरे के आधार पर कहा है कि प्लॉट नंबर 401 के आसपास के प्लॉट दूसरे बीजेपी नेताओं के नाम पर आवंटित हैं। वह सरकारी रिकॉर्ड के हवाले से यह भी दावा करते हैं कि प्लॉट नंबर 411 अभी भी मोदी के नाम पर ही है। गोखले ने कहा है कि उम्मीदवार अपनी पूरी संपत्ति की घोषणा करने को बाध्य हैं। याचिका में उन्होंने माँग की है कि सेवानिवृत्त मुख़्य न्यायाधीश के नेतृत्व में एसआईटी गठित कर प्लॉट नंबर 411 में गड़बड़ी और प्रधानमंत्री की संपत्ति और उनकी आय के स्रोतों की जाँच की जाये।
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