पेट्रोल और डीजल सुर्खियों में हैं। पिछले दस दिनों में नौ बार क़ीमतें जो बढ़ी हैं। गुरुवार को पेट्रोल और डीजल में 80 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी हुई है। इससे एक दिन पहले भी ऐसी ही बढ़ोतरी हुई थी। अब तक इन 10 दिनों के अंदर क़रीब साढ़े छह रुपये तक की बढ़ोतरी हो गई है।
3 नवंबर से लेकर 21 मार्च तक कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। कच्चे तेल के दाम बढ़ने के बावजूद पिछले साढ़े चार महीने तक दाम नहीं बढ़ाए गए थे और आरोप लगाया जाता है कि ऐसा चुनाव की वजह से हुआ था। 22 मार्च को दर संशोधन में साढ़े चार महीने के लंबे अंतराल के बाद क़ीमतों में वृद्धि की गई।
इस तरह की बढ़ोतरी को लेकर कांग्रेस महासचिव और मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने तीन दिन पहले कहा था, 'भारत के लोगों को मोदी सरकार ने धोखा दिया, झांसा दिया और ठगा है। लोगों के वोट पाने के लिए पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर, पीएनजी और सीएनजी की कीमतों को 137 दिनों तक अपरिवर्तित रखने के बाद पिछला एक सप्ताह हर घर के बजट के लिए एक बुरा सपना रहा है।'
भारत में डीजल-पेट्रोल अपने पड़ोसी देशों से ज़्यादा महंगा हो गया है। राहुल गांधी ने आज ट्वीट किया है कि अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल जैसे देशों से भी महंगा ईंधन भारत में मिल रहा है।
Petrol Rate in Indian Rupees (₹)
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 31, 2022
Afghanistan: 66.99
Pakistan: 62.38
Sri Lanka: 72.96
Bangladesh: 78.53
Bhutan: 86.28
Nepal: 97.05
India: 101.81
प्रश्न न पूछो ‘फ़क़ीर’ से, कैमरा पर बाँटे ज्ञान।
जुमलों से भरा झोला लेकर, लूटे हिंदुस्तान॥#MehangaiMuktBharat
वैसे, पेट्रोल और डीजल बीजेपी के सत्ता में आने के समय इतने महंगे नहीं थे। कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने पिछले साल नवंबर में ट्वीट कर कहा था कि 'मई 2014 में पेट्रोल 71.41 रुपए और डीजल 55.49 रुपये था, तब कच्चा तेल 105.71 डॉलर/बैरल था..। नवंबर 2021 में पेट्रोल 109.69 और डीजल 98.42 रुपये प्रति लीटर है और कच्चा तेल 85 डॉलर/बैरल है..।' हालाँकि बाद में 3 नवंबर को सरकार ने पेट्रोल और डीजल पर 5 और 10 रुपये की एक्साइज ड्यूटी कम की थी। इसके बाद पूरे चुनाव के दौरान क़ीमतें नहीं बढ़ी थीं।
एलपीजी गैस महंगी
पिछले दिनों ही घरेलू गैस सिलेंडर के दाम में 50 रुपये की बढ़ोतरी की गई है। इस बढ़ोतरी के साथ ही एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमत राष्ट्रीय राजधानी में 950.50 रुपए हो गई है।
वैसे, यह घरेलू गैस के दाम में यह बढ़ोतरी 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से दोगुनी से ज़्यादा हो गई है। पिछले साल लोकसभा में तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लिखित जवाब दिया था कि 1 मार्च 2014 को एक एलपीजी रिफिल की क़ीमत 410.50 रुपये थी।
The BJP has forgotten its duties towards the nation.
— Congress (@INCIndia) March 31, 2022
We haven't.
We will fight relentlessly for a #MehangaiMuktBharat
Come join us in this campaign and fight for our nation's prosperity. pic.twitter.com/k2JZL3lV9L
खाने के तेल के दाम भी अब काफी ज़्यादा बढ़ गए हैं। पिछले क़रीब डेढ़ साल में 25 फ़ीसदी से लेकर 50 फ़ीसदी तक महंगी हो गई हैं। कांग्रेस ने बीजेपी के सत्ता में आने के वक़्त से लेकर अब तक की तुलना की है और यह बताने की कोशिश की है कि कई चीजें क़रीब दोगुनी महंगी हो गई हैं।
हर तरफ महंगाई का प्रहार है, देश की जनता लाचार है।
— Congress (@INCIndia) March 31, 2022
आइए 'महंगाई मुक्त भारत अभियान' के साथ जुड़ कर भाजपा निर्मित महंगाई के खिलाफ आवाज बुलंद कीजिए।#MehangaiMuktBharat pic.twitter.com/TmPcU7g6ql
आय कम हुई, महंगाई बढ़ी
आम उपभोक्ता पर तो इसका भार पड़ ही रहा है, सरकार के लिए भी मुश्किल बढ़ती जा रही है। ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि आम लोगों की आमदनी लॉकडाउन के बाद कम हुई है। करोड़ों लोगों की नौकरियाँ जाने की रिपोर्टें तो आती ही रही हैं। नौकरियाँ जाने का साफ़ मतलब है कि उन परिवार की आय कम हो गईं।
महंगाई को मापे जाने वाले थोक मूल्य सूचकांक में भी हालात ख़राब हैं। हाल में जारी रिपोर्ट के अनुसार जनवरी के महीने में थोक मूल्य सूचकांक यानी डब्ल्यूपीआई में 12.96 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि पिछले साल दिसंबर के लिए डब्ल्यूपीआई को 13.56 प्रतिशत से संशोधित कर 14.27 प्रतिशत किया गया। फरवरी 2021 में डब्ल्यूपीआई 4.83 फीसदी पर था। अप्रैल 2021 से शुरू होकर लगातार 11वें महीने डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति दहाई अंक में बनी हुई है।
भारत की खुदरा महंगाई फरवरी के महीने में बढ़कर 6.07 प्रतिशत हो गई है। यह जनवरी महीने में 6.01 फ़ीसदी से ज़्यादा है। जनवरी महीने की मुद्रस्फीति पिछले छह महीने में सबसे ज़्यादा थी। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस महंगाई को 6 प्रतिशत की सीमा के अंदर रखने का लक्ष्य रखा है। यानी मौजूदा महंगाई की दर ख़तरे के निशान को पार कर गई है। लेकिन क्या सरकार इस ख़तरे को भाँप रही है या उसको इसका अंदाजा है?
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