संसद की स्थायी समिति ने ट्विटर इंडिया को चेतावनी के सुर में कहा कि भारत के क़ानून सर्वोपरि हैं और उसे इन्हें मानना ही होगा।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अगुवाई में समिति ने ट्विटर इंडिया के आला अफ़सरों से लगभग 95 मिनट तक कई मुद्दों पर पूछताछ की, कई सवालों के जवाब माँगे और उनकी बातें सुनीं।
नीतिगत सवाल
'एनडीटीवी' ने कहा है कि कई मुद्दों पर ट्विटर के अधिकारियों के पास साफ जवाब नहीं था और वे बस गोल मटोल जवाब दे रहे थे।
ट्विटर के अफ़सरों से विवादास्पद सामग्री पर उसकी नीति से जुड़े सवाल भी पूछे गए।
सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म ने संसदीय समिति से कहा कि 'उन्हें जो स्वस्थ ट्वीट लगता है, उसे रहने देते हैं। उन्हें जो ट्वीट अस्वस्थ लगते हैं, उन्हें वे हटा देते हैं।'
आईटी क़ानूनों का उल्लंघन?
संसदीय समिति के एक सदस्य ने ट्विटर से कहा कि वह भारत के सूचना प्रौद्योगिकी क़ानूनों का उल्लंघन करता है।
समिति ने ट्विटर से कहा कि वे पैनल के सामने पेश होकर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और उसके दुरुपयोग के बारे में विस्तार से बताएं।
क्या है मामला?
बता दें कि बीते दिनों सूचना व प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि ट्विटर को आईटी एक्ट, 2000 में धारा 79 के तहत मिलने वाली छूट ख़त्म हो चुकी है और अब उस पर भारत के वही क़ानून लागू होंगे जो किसी भी दूसरे पब्लिशर पर लागू होते हैं।
उन्होंने कहा था कि ट्विटर को नए डिजिटल या सोशल मीडिया नियमों के पालन करने के कई मौक़े दिए गए, लेकिन उसने जानबूझकर सरकार की बात नहीं मानी। उन्होंने साफ कहा कि ट्विटर भारत सरकार की ओर से बनाए गए नियमों का पालन करने में पूरी तरह फ़ेल रहा है।
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केंद्र सरकार के नए नियमों के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को चीफ़ कम्प्लायेंस अफ़सर, नोडल कांटेक्ट अफ़सर और रेजिडेंट ग्रीवांस अफ़सर को नियुक्त करना होगा और हर महीने सरकार को रिपोर्ट देनी होगी।
सरकार ने इन अफ़सरों को नियुक्त करने के लिए तीन महीने का वक़्त दिया था जो 25 मई को ख़त्म हो गया था और उसके बाद से सरकार और ट्विटर के बीच खटपट जारी थी।
सरकार का कहना है कि जिन सोशल मीडिया कंपनियों के 50 लाख यूजर्स हैं, उन्हें भारत में रहने वाले और उनकी कंपनी में काम कर रहे शख़्स को ही इन पदों पर नियुक्त करना होगा।
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