क्या आपको पता है कि ब्रिटेन 100 साल से ज़्यादा तक के उपनिवेश में भारत से कितना धन अपने यहाँ ले गया? इतना कि ब्रिटिश पाउंड के 50 के नोटों से लंदन के क्षेत्र को कार्पेट की तरह लगभग आठ बार ढंक दिया जाए। आज का 50 पाउंड 5,279 रुपये के बराबर है। गुलामी के दौरान भारत से धन ले जाने की यह रिपोर्ट ऑक्सफैम ने जारी की है।
दरअसल, यह रिपोर्ट वैश्विक गरीबी और अमीरी के बीच खाई को बताने के लिए जारी की गई है। ऑक्सफैम इंटरनेशनल की वैश्विक असमानता रिपोर्ट को हर साल विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक के पहले दिन जारी किया जाता है। इस साल इसने 'टेकर्स, नॉट मेकर्स' शीर्षक वाली यह रिपोर्ट सोमवार को दावोस में जारी की है। इसमें कई अध्ययनों और शोध पत्रों का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि आधुनिक बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेशन उपनिवेशवाद की ही देन है।
रिपोर्ट में ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के बीच असमानता की वजह भी उपनिवेशवाद के दौरान धन पर कब्जे को बताया गया है। ग्लोबल साउथ में वे देश आते हैं जो अभी विकसित हैं और जो उपनिवेश रहे हैं। ग्लोबल नॉर्थ में विकसित देश हैं और जिनका अधिकतर संसाधनों पर कब्जा है। रिपोर्ट में ब्रिटेन के उपनिवेशवाद के दौरान धन ले जाने का भी आकलन पेश किया गया है। इसमें कहा गया है कि ब्रिटेन ने 1765 से 1900 के बीच क़रीब एक शताब्दी के उपनिवेशवाद के दौरान भारत से 64.82 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर निकाले। इसमें से 33.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों के पास गए। ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि सिर्फ़ अमीरों के पास ही गया यह इतना पैसा था कि 50 ब्रिटिश पाउंड के नोटों को कालीन के रूप में इस्तेमाल किया जाए तो पूरे लंदन को चार बार से भी ज़्यादा बार ढंका जा सकता था।
ऑक्सफैम ने कहा कि 1765 और 1900 के बीच 100 से अधिक वर्षों के उपनिवेशवाद के दौरान ब्रिटेन द्वारा भारत से निकाले गए धन के लाभार्थी सबसे अमीर लोगों के बाद नया उभरता मध्यम वर्ग था। सबसे अमीर 10 प्रतिशत को इस आय का 52 प्रतिशत प्राप्त हुआ, नए मध्यम वर्ग को इस आय का और 32 प्रतिशत मिला।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1750 में भारतीय उपमहाद्वीप में वैश्विक औद्योगिक उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा था। हालाँकि, 1900 तक यह आंकड़ा तेजी से घटकर मात्र 2 प्रतिशत रह गया था।
ऑक्सफैम ने कहा कि इस नाटकीय कमी का श्रेय ब्रिटेन द्वारा एशियाई कपड़ों के ख़िलाफ़ सख़्त संरक्षणवादी नीतियों को लागू करने को दिया जा सकता है, जिसने भारत की औद्योगिक विकास क्षमता को सिस्टैमेटिक रूप से कमजोर कर दिया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यूके में आज सबसे अमीर लोगों की काफी संख्या वैसी है जिनके अपने परिवार की संपत्ति गुलामी और उपनिवेशवाद से बनी है। विशेष रूप से गुलामी ख़त्म होने पर अमीर गुलाम मालिकों को दिए गए मुआवजे को भी इसका श्रेय दिया जाता है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कई अध्ययनों और शोध पत्रों का हवाला देते हुए दावा किया गया कि आधुनिक बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेशन उपनिवेशवाद की ही देन है। इनका संचालन ईस्ट इंडिया कंपनी जैसे कर्पोरेशन ने किया, जो अपने आप में एक क़ानून बन गया और कई औपनिवेशिक अपराधों के लिए जिम्मेदार था।
इसमें कहा गया है, 'आधुनिक समय में बहुराष्ट्रीय कर्पोरेशन अक्सर एकाधिकार या एकाधिकार जैसी स्थिति में रहते हुए ग्लोबल साउथ में श्रमिकों, विशेष रूप से महिला श्रमिकों का शोषण करना जारी रखते हैं, जो मुख्य रूप से ग्लोबल नॉर्थ के अमीर शेयरधारकों की ओर से होता है।'
ग्लेबल सप्लाई चेन और निर्यात प्रसंस्करण उद्योग एक तरह से आधुनिक औपनिवेशिक सिस्टम जैसे ही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन आपूर्ति शृंखलाओं में काम करने वाले श्रमिकों को अक्सर ख़राब कामकाजी परिस्थितियों, सामूहिक सौदेबाजी के अधिकारों की कमी और न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा का सामना करना पड़ता है।
ऑक्सफैम ने कहा कि ग्लोबल साउथ में समान कौशल के काम के लिए मजदूरी ग्लोबल नॉर्थ में मजदूरी की तुलना में 87 प्रतिशत से 95 प्रतिशत कम है।
रिपोर्ट के अनुसार ऐतिहासिक उपनिवेशवाद के समय में शुरू हुई असमानता और लूट की विकृतियाँ, आधुनिक जीवन शैली तय कर रही हैं। ऑक्सफैम ने कहा, 'इसने एक बहुत ही असमान दुनिया बनाई है, एक ऐसी दुनिया जो नस्लवाद के आधार पर विभाजन से टूटी हुई है, एक ऐसी दुनिया जो ग्लोबल साउथ से व्यवस्थित रूप से धन निकालना जारी रखती है ताकि मुख्य रूप से ग्लोबल नॉर्थ के सबसे अमीर लोगों को लाभ पहुँचाया जा सके।'
ऑक्सफैम ने आगे कहा कि उपनिवेशवाद का नेतृत्व अक्सर निजी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा किया जाता था, जिन्हें अक्सर एकाधिकार दिया जाता था और वे विदेशी विस्तार से भारी मुनाफा कमाते थे।
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