समझौता एक्सप्रेस बम धमाकों में आया फ़ैसला पढ़ने के बाद यह शक मज़बूत होता है कि एनआईए ने 2014 में सत्ता बदलने के बाद केस को जानबूझकर कमज़ोर किया। इस मामले में फ़ैसला देने वाले पँचकुला स्पेशल कोर्ट के जज जगदीप सिंह ने कहा है कि वे बहुत सारे सबूत जो अभियुक्तों के ख़िलाफ़ केस को मज़बूत कर सकते थे, वे अदालत के सामने पेश ही नहीं किए गए। उन्होंने अपने 160 पेज के फ़ैसले में कहा है कि इसी कारण उनको सभी अभियुक्तों को बरी करना पड़ा और 'असली मुजरिम' सज़ा से बच गए। यह विस्तृत फ़ैसला कल सार्वजनिक किया गया।
इस सिलसिले में जज ने चार प्रमुख ‘चूकों’ का उल्लेख किया है जो अगर नहीं होतीं तो ‘असली मुजरिम’ बच नहीं निकलते। जज के अनुसार ये चूकें क्यों होने दी गईं, यह तो जाँच एजंसी ही जानती है।
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कार्रवाई नहीं
एनआईए ने अपने एक गवाह डॉ. रामप्रताप सिंह के हवाले से दावा किया था कि असीमानंद ने 2008 में भोपाल में एक मीटिंग में ‘बम के बदले बम’ के सिद्धांत का समर्थन करते हुए कहा था कि ‘जिस तरह जिहादी हिंदुओं के धर्मस्थलों पर हमला कर रहे हैं, उसी तरह हिंदुओं को भी उसका जवाब देना चाहिए।’ डॉ. रामप्रताप सिंह ने बाद में एनआईए के दावे का समर्थन नहीं किया। लेकिन सरकारी वकीलों ने न तो इस संबंध में अदालत से किसी प्रकार की कार्रवाई की अनुमति माँगी न ही गवाह को उसके पिछले बयान पर क्रॉस एग्ज़मिन किया।एनआईए के जाँच अधिकारी ने कहा था कि पुरानी दिल्ली स्टेशन पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुए थे। यह फ़ुटेज दोषियों के विरुद्ध पक्का सबूत होता। लेकिन एनआईए ने उस सीसीटीवी फ़ुटेज की जाँच करके ऐसा कोई फ़ुटेज उपलब्ध नहीं कराया जो अभियुक्तों को दोषी ठहराता।
एनआईए ने दावा किया था कि ट्रेन में फटने से रह गए जो दो सूटकेस बम मिले थे, उसके कवर इंदौर कोठारी मार्केट के एक टेलर ने सीए थे और उन कवरों को सीनेवाला एक ही व्यक्ति था। लेकिन इस सबूत को पुख़्ता करने के लिए अभियुक्त की जो शिनाख़्त परेड होनी चाहिए थे, वह नहीं कराई गई।
एनआई के दावे के अनुसार कॉल रेकॉर्ड से पता चलता है कि इस कांड का मास्टरमाइंड सुनील जोशी फरवरी 2007 में कोठारी मार्केट, इंदौर में था (जहाँ सूटकेस के कवर सीए गए थे) और उसी साल फ़रवरी-मार्च के महीनों में प्रज्ञा जोशी, असीमानंद, सुनील जोशी और संदीप डांगे की आपस में और दूसरे संदिग्धों और अभियुक्तों के साथ लगातार बातचीत होती थी। लेकिन एनआईए ने इसके पक्ष में न तो कोई कॉल डेटा रेकॉर्ड पेश किया और न ही उन मोबाइल फ़ोन का स्वामित्व साबित करने वाला कोई रेकॉर्ड कोर्ट के सामने रखा।
एनआईए ने जानबूझकर अपने दावे के पक्ष में सबूत अदालत के सामने नहीं रखे, जिससे अभियुक्तों के ख़िलाफ़ केस कमज़ोर हो गया। यही काम एनआईए ने सुनील जोशी हत्याकांड वाले मामले में किया था, उसमें भी जज ने प्रज्ञा सिंह समेत सभी अभियुक्तों को बरी करते हुए जाँच एजंसी के बारे में ऐसी ही तीखी टिप्पणी की थी।
आपको याद होगा कि मालेगाँव मामले में एनआईए की वकील रह चुकी रोहिणी सालियान 2015 में कह चुकी हैं कि उनपर दबाव डाला जा रहा था कि मालेगाँव मामले में जाँच को ’धीमा’ चला जाए। बाद में एनआईए ने उनको अपने वकीलों की टीम से हटा दिया।
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