केंद्र सरकार ने रोज़गार के आँकड़ों से जुड़ी एक और रिपोर्ट को छिपा लिया है, अंग्रेजी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर में यह दावा किया गया है। ख़बर के मुताबिक़, केंद्र सरकार की माइक्रो डेवलपमेंट एंड रिफ़ाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) योजना से कितने रोज़गार मिले, इस पर श्रम विभाग के आँकड़ों को अगले दो महीने के लिए सार्वजनिक नहीं किया जाएगा।
22 फ़रवरी को इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर छापी थी कि बेरोज़गारी पर नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस (एनएसएसओ) के आँकड़ों को छुपाने के बाद केंद्र सरकार श्रम ब्यूरो के सर्वे के आँकड़ों को इस्तेमाल करने की योजना बना रही है। अख़बार के मुताबिक़, लेकिन पिछले शुक्रवार को हुई बैठक में एक्सपर्ट कमेटी ने श्रम कार्यालय से कहा है कि इस रिपोर्ट में कुछ गड़बड़ियाँ हैं, और वह इन्हें दुरुस्त कर ले। इसके लिए श्रम कार्यालय ने दो महीने का समय माँगा है। हालाँकि एक्सपर्ट कमेटी की ओर से रखे गए विचार को अभी तक केंद्रीय श्रम मंत्री की ओर से स्वीकृति नहीं मिली है। लेकिन सोमवार से ही आचार संहिता लागू हो गई है और औपचारिक तौर पर यह फ़ैसला लिया गया है कि चुनाव के दौरान इस रिपोर्ट को सार्वजनिक न किया जाए।
- बता दें कि एनडीए सरकार ने इससे पहले एनएसएसओ की ओर से जारी की जाने वाली बेरोज़गारी की रिपोर्ट और श्रम कार्यालय की नौकरियों और बेरोज़गारी से जुड़ी छठवीं सालाना रिपोर्ट को भी सार्वजनिक नहीं किया था। इन दोनों ही रिपोर्ट में एनडीए की सरकार में नौकरियाँ कम होने की बात सामने आई थी।
ख़बर के मुताबिक़, श्रम कार्यालय की छठवीं सालाना रिपोर्ट में यह बताया गया था कि 2016-17 में बेरोज़गारी चार साल के सबसे ऊँचे स्तर 3.9 प्रतिशत पर थी।
इसके अलावा अक्टूबर 2018 में ऑल इंडिया मैन्युफ़ैक्चरर्स ऑरगनाइज़ेशन (आइमो) की ओर से किए गए सर्वेक्षण में यह जानकारी सामने आई थी कि नोटबंदी, जीएसटी और ई-कॉमर्स ने दुकानदारों, व्यापारियों और ग़रीब तबक़े की कमर तोड़ दी है।
आइमो के सर्वेक्षण के मुताबिक़, दुकानों व व्यापारिक गतिविधियों से जुड़ी कम्पनियों में काम करने वाले या अपना ख़ुद का छोटा-मोटा काम करने वाले क़रीब 43 प्रतिशत लोग बेरोज़गार हो गए हैं।
अपनी राय बतायें