चीन ने दो काउंटी में भारत का इलाका दिखाया है। वो उनके नाम तक रख रहा है। मोदी सरकार ठीक से प्रतिक्रिया भी नहीं दे पा रही है। हालांकि भारत ने इस मुद्दे पर राजनयिक चैनलों के जरिये अपनी आपत्ति और विरोध व्यक्त जताया है। भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है। चीन द्वारा लद्दाख क्षेत्र में भारतीय जमीन कब्जाने के आरोपों पर पीएम मोदी ने कभी कहा था- हमारी सीमा में न कोई घुसा है और न घुसेगा। लेकिन मोदी के इस नारे की वास्तविक स्थिति सामने है।
यह पहली बार नहीं है जब बीजिंग ने अपने नक्शे में भारतीय क्षेत्रों पर दावा किया है। 2017 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश में छह स्थानों के लिए 'मानकीकृत' नामों की प्रारंभिक सूची जारी की थी। 2021 में इसने 15 स्थानों वाली दूसरी सूची जारी की, जिसमें 2023 में 11 अतिरिक्त स्थानों के नाम शामिल हैं।
कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने शनिवार को लद्दाख में दो काउंटी स्थापित करने के लिए चीन को क्लीन चिट देने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की और प्रधान मंत्री से सवाल किया कि वह उनसे क्यों डरते हैं।
तिवारी ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "वे उस जमीन पर काउंटी बना रहे हैं जो भारत की है... हमारे पीएम ने पहले ही इसे क्लीन चिट दे दी है, भले ही कोई न आया हो या यात्रा नहीं की हो। लेकिन पीएम चीन से क्यों डरते हैं? जब हम चाहते हैं इसे संसद में उठाना तो दूर, आप संसद में इसके सवालों का जवाब भी नहीं देते और अगर जवाब देते भी हैं तो वह अधूरा होता है।”
कांग्रेस नेता तिवारी ने कहा- "देश का हर हिस्सा हमारा है। यह पीएम की कमजोरी को दर्शाता है और मैं सरकार की इस नीति की निंदा करता हूं। आप चीन के सामने अपनी आवाज क्यों नहीं उठा सकते?" तिवारी ने ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध के निर्माण की भी आलोचना की और कहा कि इससे भारत से पानी के प्रवाह पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा-
"ब्रह्मपुत्र पर जो बांध बनाया जा रहा है, उससे भारत में पानी का प्रवाह कम हो जाएगा। इसका असर अरुणाचल प्रदेश और असम पर भी पड़ेगा।"
इससे पहले, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने भी मोदी सरकार की आलोचना की और केंद्र से इस मुद्दे को गंभीरता से लेने का आग्रह किया।
खेड़ा ने कहा कि इस मुद्दे पर शुक्रवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस में विदेश मंत्रालय द्वारा उठाई गई "आवश्यक आपत्ति" के बावजूद सरकार इसे लेकर गंभीर नहीं है।
कांग्रेस नेता खेड़ा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे पर आत्मनिरीक्षण करने का आग्रह किया। खेड़ा ने कहा, "विदेश मंत्री की आकस्मिक आपत्ति से काम नहीं चलेगा।" खेड़ा ने आरोप लगाया कि इस तरह के कदम उठाने में चीन का आत्मविश्वास पीएम मोदी द्वारा दी गई "क्लीन चिट" से पैदा है। चीन को हमारे क्षेत्र में चीनी घुसपैठ के बाद 20 जून 2020 को पीएम द्वारा दी गई क्लीन चिट से भरोसा है। अब जब चीन ने होतान प्रान्त में दो काउंटी बनाई हैं , यह एक ऐसा क्षेत्र है जो पारंपरिक रूप से, ऐतिहासिक रूप से हमारा रहा है और हम इस क्षेत्र पर अपने दावे के बारे में बहुत साफ रहे हैं।"
विदेश मंत्रालय ने शुक्रवार को इस मुद्दे पर कहा था कि भारत ने इस क्षेत्र में दो नए 'काउंटियों' की स्थापना पर चीन के साथ कड़ा विरोध दर्ज कराया है, जिसमें केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र भी शामिल है, और इस बात पर जोर दिया कि नई दिल्ली ने कभी भी बीजिंग के "अवैध कब्जे" को स्वीकार नहीं किया है।
भारत और चीन के बीच 2020 में तब गंभीर स्थिति पैदा हो गई थी जब सौनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख में झड़प हुई थी। इसमें भारतीय जमीन पर कब्जे का आरोप लगा था जिस पर पीएम ने कहा था कि 'न वहां कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है।'
2017 में चीनी सैनिक भूटान के डोकलाम इलाक़े में घुस आए थे और भारतीय सैन्य चौकियों के लिये ख़तरा पैदा कर रहे थे। तब दो महीने से ज़्यादा वक्त तक भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच विवाद हुआ था और धक्का-मुक्की की ख़बरें भी आईं थीं। लेकिन तब भी भारत ऐसा कोई सबक चीन को नहीं सिखा पाया था कि वह गलवान घाटी में घुसने की हिमाकत करता।
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया के सबसे बड़े बांध के निर्माण को बीजिंग द्वारा मंजूरी दिए जाने के कुछ दिनों बाद भारत ने चिंताएँ जताईं। इसने शुक्रवार को कहा कि उसने इस मेगा हाइडल परियोजना पर अपनी चिंताओं से चीनी पक्ष को अवगत करा दिया है। इस परियोजना से भारत और बांग्लादेश के निचले तटवर्ती राज्यों में चिंताएँ बढ़ गई हैं।भारत ने चीन से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि ब्रह्मपुत्र के निचले इलाकों के राज्यों के हितों को ऊपरी इलाकों में गतिविधियों से नुकसान न पहुँचे।
द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि ब्रह्मपुत्र बांध परियोजना के निर्माण के बारे में भारत को चीनी पक्ष द्वारा बताया नहीं गया था, जो कि दोनों देशों के बीच की परंपरा रही है, और मीडिया रिपोर्टों से इसकी जानकारी मिली। इस परियोजना की अनुमानित लागत 137 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
शुक्रवार को सवालों के जवाब देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, 'हमने चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में यारलुंग त्सांगपो नदी पर एक जलविद्युत परियोजना के बारे में 25 दिसंबर 2024 को शिन्हुआ द्वारा जारी की गई जानकारी देखी है। ...हमने लगातार विशेषज्ञ-स्तर के साथ-साथ राजनयिक चैनलों के माध्यम से, चीनी पक्ष को उनके क्षेत्र में नदियों पर मेगा परियोजनाओं पर अपने विचार और चिंताएँ व्यक्त की हैं। ताज़ा रिपोर्ट के बाद पारदर्शिता और निचले हिस्से के देशों के साथ परामर्श की ज़रूरत के साथ-साथ इन्हें दोहराया गया है।'
उन्होंने कहा, 'चीनी पक्ष से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है कि ब्रह्मपुत्र के निचले इलाकों के राज्यों के हितों को ऊपरी इलाकों में होने वाली गतिविधियों से नुकसान न पहुंचे। हम अपने हितों की रक्षा के लिए निगरानी करते रहेंगे और ज़रूरी कदम उठाएंगे।'
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