किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल के आमरण अनशन के 54 दिन बाद अब सरकार ने किसानों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया है। डल्लेवाल की हालत अब बेहद नाजुक स्थिति में पहुँच गई थी। वैसे तो किसान पिछले साल फरवरी महीने से ही अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन डल्लेवाल के अनशन के क़रीब दो महीने होने को आए तब सरकार की ओर से बातचीत करने की पहल की गई है। फिलहाल, सरकार के इस फ़ैसले के बाद चिकित्सा सहायता के लिए वह सहमत हुए और उनको ड्रिप चढ़ाई जा रही है। लेकिन सवाल है कि आख़िर सरकार को बातचीत के लिए सहमत होने पर आख़िर इतना समय क्यों लग गया?
इसकी वजह जानने से पहले यह जान लें कि किसान आंदोलन के बारे में सरकार की ओर से क्या कहा गया है और किसानों ने अब इस पर किस तरह की प्रतिक्रिया दी है। किसानों के विरोध पर गतिरोध को दूर करने के लिए केंद्र ने शनिवार को किसानों को उनकी मांगों पर चर्चा करने के लिए अगले महीने बातचीत के लिए आमंत्रित किया। यह सफलता तब मिली जब संयुक्त सचिव प्रिया रंजन के नेतृत्व में केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने डल्लेवाल से मुलाकात की और उनके संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की।
सरकार की ओर से इस घोषणा के बाद डल्लेवाल ने कहा, 'अगर भूख हड़ताल पर बैठे 121 किसान मुझे बताएंगे तो मैं चिकित्सा सहायता लूंगा, लेकिन तब तक कुछ नहीं खाऊंगा, जब तक कि एमएसपी को कानूनी गारंटी के रूप में सबसे महत्वपूर्ण मांग सहित सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।' इसके तुरंत बाद, भूख हड़ताल पर बैठे 121 किसानों ने डल्लेवाल से चिकित्सा सहायता स्वीकार करने का आग्रह किया और वह सहमत हो गए। इसके बाद उन्हें ड्रिप लगाई गई।
किसान बातचीत के लिए सरकार पर लगातार दबाव बना रहे थे। इस महीने की शुरुआत में भी पंजाब के कृषि मंत्री ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से व्यक्तिगत हस्तक्षेप करने की मांग की थी।
किसानों से वार्ता क्यों नहीं हो पाई?
पिछले क़रीब एक साल से चल रहे किसानों के प्रदर्शन के बावजूद किसी मंत्री ने प्रदर्शनकारी किसानों के साथ वार्ता करने की जहमत नहीं उठाई है। जबकि 2020 के किसान आंदोलन में तो किसानों के प्रदर्शन के दौरान क़रीब चार महीने में ही तीन मंत्रियों की टीम 11 बार किसानों के साथ वार्ता कर चुकी थी।
मौजूदा किसान आंदोलन दोबारा पिछले साल 2024 के फरवरी माह में दो किसान संगठनों- संयुक्त किसान मोर्चा (गैर राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा द्वारा लंबित मांगों को लेकर शुरू किया गया था। राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा से अलग होकर अपने संगठन के समर्थकों के साथ पंजाब से जगजीत सिंह डल्लेवाल और स्वर्ण सिंह पंधेर ने दिल्ली कूच किया था जिनको हरियाणा के अलग-अलग बॉर्डर पर हरियाणा के सुरक्षा बलों द्वारा रोक दिया गया।
इस आंदोलन का आधार क्या?
इस कारण सरकार नहीं दे रही थी तवज्जो?
तो सवाल वही है कि क्या बातचीत के लिए किसानों को तब आमंत्रण दिया गया जब आमरण अनशन पर बैठे डल्लेवाल की हालत बिगड़ने लगी और सरकार पर इसके लिए काफ़ी ज़्यादा दबाव पड़ा? या फिर सच में सरकार अब किसानों की मांगों को लेकर गंभीर हुई है?
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