हेमंत सोरेन
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पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
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केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद से प्रमुख निवेश परियोजनाओं में बदलाव हुए हैं। ज्यादातर दक्षिणी राज्यों जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र से गुजरात में कई प्रोजेक्ट ट्रांसफर किए गए। न्यूज मिनट की एक खोजी रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। विपक्ष पहले से ही महाराष्ट्र के बड़े प्रोजेक्ट को गुजरात भेजे जाने का आरोप लगा रहा है।
इसका एक खास उदाहरण अमेरिकी सेमीकंडक्टर फर्म का है। यह अमेरिकी कंपनी शुरू से ही 2022 में चेन्नई में इक्विटी निवेश स्थापित करने में रुचि रखती थी। हालांकि, जब कंपनी के अधिकारी केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से इस सिलसिले में मिले तो उन्हें गुजरात ले जाया गया। बाद में इसे उस कंपनी ने "हेलीकॉप्टर कूटनीति" कहा। गुजरात में निवेशकों को लुभाने के लिए सरकार ने इस तरह की रणनीति कई मौकों पर अपनाई। विदेशी कंपनियां आवेदन दक्षिण भारत के राज्यों के लिए करती थीं लेकिन उन्हें गुजरात भेज दिया जाता था।
प्रोजेक्ट दक्षिण भारत से गुजरात भेजने की बात कोई गुपचुप नहीं है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने आरोप लगाया कि उनके राज्य के लिए नियोजित 6,000 करोड़ रुपये के निवेश को गुजरात में ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया गया था। लेकिन स्टालिन के इस आरोप को मीडिया में जगह नहीं मिली और न टीवी पर डिबेट हुई। इसलिए जनता के सामने कभी यह खुलासा हुआ ही नहीं कि गुजरात के लिए तमिलनाडु से सौतेला व्यवहार केंद्र की मोदी सरकार ने किया।
इसी तरह, तेलंगाना के पूर्व आईटी मंत्री केटी रामा राव (केटीआर) और कर्नाटक के मौजूदा आईटी मंत्री प्रियंक खड़गे ने केंद्र सरकार पर कई कंपनियों पर अपने प्रोजेक्ट को ट्रांसफर करने के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया है। महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी (एमवीए) गठबंधन के नेताओं ने हाल ही में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के खिलाफ ऐसा ही आरोप लगाया। एमवीए ने कहा कि टाटा एयरबस जैसे बड़े प्रोजेक्ट को जानबूझकर उनके राज्य से गुजरात में ट्रांसफर कर दिया गया था।
प्रोजेक्ट ट्रांसफर को सुविधाजनक बनाने के लिए मोदी सरकार ने कई तरह की रणनीतियों की पहचान की। यानी जिसके जरिए विदेशी कंपनियों या बड़ी कंपनियों को गुजरात आने के लिए लुभाया गया। चार प्रमुख प्वाइंट्सः
ऐसी रणनीति न केवल केंद्र-राज्य संबंधों को कमजोर करती है बल्कि विकास के लिए संसाधनों को आकर्षित करने की दौड़ में संतुलन भी नहीं रख पाती। ऐसी रणनीतियों से साफ दिख जाता है कि केंद्र कुछ राज्यों के पक्ष में झुका है और कुछ राज्यों को वो ऐसी रणनीतियों के दम पर झुकाने को मजबूर करती है। निवेश आवंटन पर ऐसी बहस भारत के आर्थिक परिदृश्य में क्षेत्रीय गतिशीलता की जटिलताओं पर रोशनी डालती है।
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