क़रीब एक साल के विरोध प्रदर्शन, न्यायालय के 3 फ़ैसलों के बाद आख़िरकार केंद्रीय मंत्रिमंडल ने केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षक कैडर में आरक्षण) अध्यादेश 2019 को मंजूरी दे दी। अध्यादेश में विभाग या विषय के बजाय विश्वविद्यालय या कॉलेज को इकाई माना गया है। इस निर्णय से शिक्षक कैडर में सीधी भर्ती के तहत रिक्तियों को भरते समय यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि इससे संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 का पूरी तरह से अनुपालन हो और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए नियत आरक्षण प्रावधान का पालन हो।
अभी भी हैं कई पेच
केंद्र सरकार के अध्यादेश में अभी तमाम पेच नजर आ रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 7 अप्रैल, 2017 के इस फ़ैसले के बाद आनन-फानन में विभिन्न न्यायालयों के 10 फ़ैसलों का अध्ययन किया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फ़ैसले के मुताबिक़ नए दिशा-निर्देश जारी कर दिए। एक महीने तक इस बारे में कोई ख़बर नहीं आई। इंडियन एक्सप्रेस ने 23 अक्टूबर, 2017 को जब यह ख़बर प्रकाशित की, तब मामला संज्ञान में आया था।
अभी भी यूजीसी के सर्कुलर की स्थिति साफ़ नहींं है। केंद्रीय मंत्री संसद में कुछ कहते हैं और हक़ीक़त में कुछ और नज़र आता है।
झूठा निकला सरकार का आश्वासन
संसद में जब हंगामा हुआ तो केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावडेकर ने सदन को आश्वस्त किया कि यूजीसी के सर्कुलर पर रोक लगा दी गई है। हालाँकि उनका यह आश्वासन कोरा ही साबित हुआ और देश भर के केंद्रीय व राज्यों के विश्वविद्यालय रिक्तियाँ निकालते रहे, जिसमें एससी, एसटी ओबीसी के लिए न्यूनतम या एक भी सीट नहीं आती थीं। यहाँ तक कि जब केंद्र ने समीक्षा याचिका दायर की, उसके बाद भी वाराणसी के काशी विद्यापीठ ने रिक्तियाँ निकालीं, जिसमें कोटे के मुताबिक़ 49.5 प्रतिशत आरक्षण नहीं था।
यूजीसी का क्या रुख होगा?
ऐसे में यह सवाल उठता है कि केंद्र सरकार ने केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में नियत आरक्षण का पालन करने का अध्यादेश निकाला है, लेकिन राज्यों के अधीन आने वाले विश्वविद्यालयों में क्या नियम लागू होगा। क्या सरकार यूजीसी को तत्काल निर्देशित करने जा रही है कि वह केंद्र की अधिसूचना के मुताबिक़ देश के सभी विश्वविद्यालयों के लिए नया सर्कुलर जारी करे।
अरुण जेटली ने अब तक यह साफ़ नहींं किया है कि जिन नियुक्तियों की प्रक्रिया चल रही है, उन्हें नए सिरे से निकाला जाएगा या वह नौकरियाँ और प्रक्रिया बहाल रखी जाएगी।
देश भर में 5 मार्च को हुए व्यापक विरोध प्रदर्शन और लोकसभा चुनावों को देखते हुए सरकार थोड़ा झुकती नजर आई है, लेकिन सरकार का अध्यादेश तमाम आशंकाएँ लेकर भी सामने आया है।
सरकार ने इस आरक्षण के मामले में पिछले एक साल के दौरान न्यायालय और संसद को धोखा ही दिया है। सरकार के लचर रुख को देखते हुए अभी यह आश्वस्त हो पाना बेहद मुश्किल है कि सरकार विश्वविद्यालयोंं की नियुक्तियों में एससी, एसटी और ओबीसी तबके़ को प्रतिनिधित्व देगी या नहीं।
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