मालदीव के राष्ट्रपति डॉ. मोहम्मद मुइज्जू, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, सेशेल्स के उप-राष्ट्रपति अहमद अफीफ जैसी शख्सियतों की उपस्थिति में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में और नेता मंत्री पद की शपथ ले रहे थे तो इसमें एक भी मुस्लिम शामिल नहीं थे। यह उस देश की सरकार में ऐसी स्थिति है जहाँ की कुल आबादी 140 करोड़ में से क़रीब 22 करोड़ मुस्लिम हैं।
देश के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि भारत सरकार में मुस्लिम समुदाय से किसी का भी प्रतिनिधित्व नहीं है। आख़िरी बार प्रधानमंत्री मोदी के पिछले कार्यकाल में आख़िरी मुस्लिम मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी थे। वैसे, इस बार बीजेपी से कोई भी मुस्लिम सांसद नहीं चुना गया है। दूसरे दलों से भी सांसदों की संख्या में भी कमी आई है। पिछले चुनाव में 27 के मुकाबले इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में महज 23 मुसलमान उम्मीदवार ही चुनाव जीतकर आए हैं। वैसे, इस बार दलों ने मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारने में भी झिझक दिखाई थी। कांग्रेस ने 19, सपा ने 4, आरजेडी ने दो, टीएमसी ने 6 और बसपा ने 22 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे। एनडीए ने चार मुस्लिमों को टिकट दिया था जिसमें से एक उम्मीदवार बीजेपी की ओर से था। इनमें से कोई जीत नहीं सका।
बहरहाल, रविवार को जब मोदी सरकार का शपथ ग्रहण हो रहा था तो उसमें एक भी मुस्लिम को शामिल नहीं किया गया। वैसे, मोदी के नेतृत्व में बीजेपी की छवि भी मुस्लिम विरोधी की दिख रही है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने हर लोकसभा चुनाव में ऐसे बयान दिए हैं जिससे कम से कम मुस्लिमों में तो संदेश अच्छा नहीं गया।
इसी लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार मुस्लिमों पर हमले किए। उन्होंने 'ज़्यादा बच्चे वाले', 'घुसपैठिए' जैसे शब्द इस्तेमाल किए थे। उन्होंने मुस्लिमों के हवाले से कांग्रेस को निशाना बनाया। पीएम मोदी ने एक चुनावी रैली में कहा था, 'उन्होंने (कांग्रेस ने) कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब, ये संपत्ति इकट्ठी कर किसको बाँटेंगे? जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बाँटेंगे। घुसपैठिए को बाँटेंगे। ...ये कांग्रेस का मैनिफेस्टो कह रहा है... कि माताओं-बहनों के सोने का हिसाब करेंगे। ...जानकारी लेंगे और फिर संपत्ति को बाँट देंगे। और उनको बाँटेंगे जिनको मनमोहन सिंह जी की सरकार ने कहा था कि संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। ये अर्बन नक्सल की सोच, मेरी माताओ, बहनो, ये आपका मंगलसूत्र भी बचने नहीं देंगे।'
नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस के घोषणापत्र की निंदा करते हुए कहा था कि घोषणापत्र पर मुस्लिम लीग की विघटनकारी राजनीति की छाप है।
इसी बीच रविवार को जब मोदी सरकार का शपथ ग्रहण हुआ तो प्रधानमंत्री मोदी की नई टीम में इस बार 30 कैबिनेट मंत्री, 5 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और 36 राज्य मंत्री शामिल हुए। देश के 24 राज्यों के नेताओं को मोदी कैबिनेट जगह मिली है। मंत्रिमंडल में 21 सवर्ण, 27 ओबीसी, 10 एससी, 5 एसटी, 5 अल्पसंख्यक मंत्री शामिल हैं। लेकिन इन अल्पसंख्यकों में से एक भी मुस्लिम नहीं हैं।
पाँच अल्पसंख्यकों में किरेन रिजिजू और हरदीप पुरी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। रवनीत सिंह बिट्टू, जॉर्ज कुरियन और रामदास अठावले राज्यमंत्री है। रिजिजू और कुरियन ईसाई समुदाय से हैं तो हरदीप पुरी और बिट्टू सिख समुदाय से हैं। रामदास अठावले बौद्ध धर्म से हैं।
मोदी सरकार में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व लगातार कम होता आया है। 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार में नजमा हेपतुल्ला, एमजे अकबर और मुख्तार अब्बास नकवी के रूप में तीन मुस्लिम मंत्री बनाए गए थे।
पहले कार्यकाल में ही 'मी टू अभियान' के निशाने पर आए अकबर को मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था। नजमा हेपतुल्ला को राज्यपाल बना दिया गया। और तब नकवी इकलौते मुस्लिम मंत्री रह गए थे। 2019 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार सरकार बनी तो मुख्तार अब्बास नकवी को केंद्रीय मंत्रिमंडल में मुस्लिम चेहरे के तौर पर जगह मिली थी। जुलाई 2022 में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहते मुख्तार अब्बास नकवी का राज्यसभा का कार्यकाल खत्म हो गया। पार्टी ने उन्हें राज्यसभा नहीं भेजा, जिसके चलते उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। फिर किसी मुस्लिम को मंत्री के रूप में शामिल नहीं किया गया। अब जब नयी सरकार बनी है तो इसमें कोई भी मुस्लिम नहीं है।
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