कोबाड गाँधी ने क्या कहा था अफ़ज़ल के बारे में?
पत्रकार सुनेत्रा चौधरी ने जेल व्यवस्था पर एक बहुत ही मशहूर किताब लिखी, 'बिहाइंड बार्स : प्रिज़न टेल्स ऑफ़ इंडियाज़ मोस्ट फेमस'। इस पुस्तक में तिहाड़ जेल के 13 मशहूर क़ैदियों के बारे में लिखा गया है। मशहूर माओवादी कोबाड गाँधी तिहाड़ में उसी समय थे, जब अफ़ज़ल गुरु को वहाँ ले जाया गया था। कोबाड गाँधी ने अफ़ज़ल के साथ बिताए कुछ क्षणों को साझा किया, जिससे गुरु के बारे में पता चलता है। इसके साथ ही यह भी मालूम होता है कि फाँसी की सज़ा पाया व्यक्ति कैसा महसूस करता है, उस पर क्या बीतती है और अफ़ज़ल कैसा था।कोबाड गाँधी के अनुसार, अफ़ज़ल गुरु को मशहूर रहस्यवादी कवि रूमी बेहद पसंद थे, वह जेल में अपने अंतिम दिनों में उनकी कविताएं पढ़ा करता था और उस पर बातें भी किया करता था।
अफ़ज़ल का अंतिम दिन!
कोबाड गाँधी ने बताया कि 9 फरवरी की सुबह तिहाड़ जेल में बंद दूसरे कश्मीरी क़ैदियों ने फांसी की सज़ा के ख़िलाफ़ ज़ोरदार नारेबाजी की। वह प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि जेल में तैनात लॉ ऑफ़ीसर को वहां जाकर हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने क़ैदियों को समझाया कि वे नियम से बँधे हुए हैं और आदेशों का महज पालन कर रहे हैं।गाँधी के मुताबिक़, अफ़ज़ल गुरु को बताया गया कि उसे फाँसी दी जानी है तो वह बिल्कुल भी नर्वस नहीं हुआ। तिहाड़ जेल के तत्कालीन महानिदेशक बी. के. गुप्ता ने भी बाद में इसकी पुष्टि की थी।
क्या कहा था अफ़ज़ल ने?
गुप्ता ने बतया था कि जेल के अधिकारी फाँसी देने की पूरी तैयारी नहीं कर पाए थे। वे कोई जल्लाद नहीं ढूंढ पाए, इसलिए जेल के एक कर्मचारी को यह ज़िम्मेदारी दी गई।अफ़ज़ल की अंतिम इच्छा
अफ़ज़ल गुरु ने सुनील गुप्ता से गुजारिश की कि उसे मौत जल्दी हो जाए। गुप्ता ने उसे आश्वस्त किया कि उसे बहुत अधिक कष्ट नहीं होगा।
अफ़ज़ल गुरु ने जेल अधिकारियों से कहा कि वह अंतिम बार अपने घर के लोगों से फ़ोन पर बात करना चाहता है। पर उसकी यह इच्छा पूरी नहीं की गई।
अफ़ज़ल ने नहाया, नमाज़ पढ़ी, चाय पी और बिस्कुट खाया। वह जेल कर्मचारियों से मिला, उनसे बात की, उनके गले लगा। अफ़ज़ल ख़ुद चल कर फाँसी की जगह तक गया।
खालिस्तानी आतंकवादी
कोबाड गाँधी और अफ़ज़ल गुरु के अलावा दो खालिस्तानी आतंकवादी वहाँ थे, जिनमें से एक भुल्लर को फाँसी की सज़ा सुनाई जा चुकी थी। कोबाड गाँधी ने खालिस्तानी आतंकवादियों के बारे में बताया कि वे अपने रास्ते से भटक गए थे और कट्टरपंथी रवैया अपनाते थे। वे सिख पंथ के मूल उद्येश्यों से हट चुके थे और भिंडरावाले के अंध भक्त थे। गुरु नानक देव के बताए रास्ते से वे दूर हो चुके थे। ये खालिस्तानी आतंकवादी पाकिस्तान से नशीली दवाओं की तस्करी जैसे काम में लिप्त हो चुके थे।
रंगा-बिल्ला को फाँसी
कुलजीत सिंह उर्फ़ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ़ बिल्ला को 31 जनवरी 1982 को फाँसी पर चढ़ा दिया गया था। वे 26 अगस्त, 1982, को गीता चोपड़ा और संजय चोपड़ा के अपहरण, हत्या और गीता के बलात्कार के दोषी पाए गए थे।
प्रकाश पात्र लिखते हैं, 'बिल्ला थरथर काँप रहा था। उसकी आवाज़ साफ़ थी, पर वह बहुत ही धीमी थी। उसने बार-बार कहा कि वह निर्दोष है और रब ही जानता है कि जिस हत्या के लिए उसे फाँसी दी जा रही है, उसने नहीं की है।'
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