बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने मंगलवार को भाजपा और कांग्रेस पर उनके द्वारा शासित राज्यों में दलितों के लिए आरक्षण नीतियों में बदलाव करने का प्रयास करने का आरोप लगाया और दावा किया कि इन बदलावों से हाशिए पर रहने वाले समुदायों की एकता और अधिकारों को खतरा है।
उत्तर प्रदेश में चार बार की पूर्व मुख्यमंत्री ने हरियाणा में भाजपा सरकार और तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस सरकारों द्वारा लागू दलितों के लिए उप-आरक्षण की "नई प्रणाली" पर चिंता व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया।
मायावती ने आगे लिखा है- हरियाणा की भाजपा सरकार के बाद अब तेलंगाना व कर्नाटक की कांग्रेस सरकार द्वारा भी दलितों को बांटने के लिए उनके आरक्षण के भीतर आरक्षण की नई व्यवस्था को आपाधापी में लागू करने का फैसला वास्तव में आरक्षण को निष्क्रिय व निष्प्रभावी बनाने के इनके जारी षडयंत्र का नया प्रयास है।
भाजपा ने सबसे पहले इसे हरियाणा में लागू किया
हरियाणा में भाजपा को सत्ता मिलते ही सबसे पहला काम दलित जातियों के वर्गीकरण का किया गया। नायब सिंह सैनी की सरकार ने 19 अक्टूबर को एससी समुदाय को दो समूहों में विभाजित करने और उप-कोटा लागू करने की घोषणा की। भाजपा शासित हरियाणा के इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करने वाला वो भारत का पहला प्रांत बन जाएगा।अगस्त में, विधानसभा चुनाव से पहले, हरियाणा एससी आयोग ने दलित समुदायों को दो श्रेणियों में उपवर्गीकृत करने की सिफारिश की थी। जिसमें वंचित अनुसूचित जाति (डीएससी) के बाल्मीकि, धानक, मजहबी सिख और खटीक जैसे 36 समूह शामिल थे। अन्य अनुसूचित जाति (ओएससी) के चमार, जटिया चमार, रेहगर, रैगर, रामदासी, रविदासी और जाटव जैसी जातियाँ भी शामिल हैं।
यह निर्णय महत्वपूर्ण है क्योंकि उपवर्गीकरण की वजह से भारतीय जनता पार्टी को हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों के दौरान लगातार तीसरे ऐतिहासिक कार्यकाल के लिए एससी वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने में मदद की। पार्टी ने एससी के लिए आरक्षित 17 सीटों में से आठ पर जीत हासिल की, जो 2019 के चुनाव से पांच अधिक है।
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