मणिपुर में इनर लाइन परमिट (आईएलपी) प्रणाली लागू है। देश के किसी भी राज्य से यहां आने वालों को यह परमिट लेना होता है। लेकिन हाल में बिना परमिट के आने वाले छह सौ से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। गिरफ्तार लोगों में से ज्यादातर पड़ोसी बांग्लादेश और म्यांमार से यहां आए थे। इसके बाद ही सरकार ने राज्य में रह रहे अवैध प्रवासियों का पता लगाने के लिए घर-घर सर्वेक्षण का फैसला किया है।
मुख्यमंत्री एन.बीरेन सिंह ने खासकर बांग्लादेश और म्यांमार के ऐसे लोगों को मकान किराए पर देने वाले लोगों को भी कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है।मुख्यमंत्री का कहना है कि मणिपुर में प्रवासियों की आमद खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है और उनकी पहचान करना एक बड़ी समस्या बन गई है।
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राज्य में हाल में बाहरी लोगों के खिलाफ बढ़ती नाराजगी को ध्यान में रखते हुए विधानसभा में मणिपुर विधानसभा ने हाल में राज्य जनसंख्या आयोग गठित करने और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने के लिए दो प्रस्तावों को सर्वसम्मति से पारित किया गया है। अब अध्यादेश के जरिए इनको कानून जामा पहनाया जाएगा। इस नीति के तहत अब चार से ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा।
पड़ोसी म्य़ांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद लगातार तेज होती उथल-पुथल और अशांति की वजह से सीमा पार से लोगों की बढ़ती आवक को ध्यान में रखते हुए अब इस राज्य में भी नेशनल रजिस्टर फार सिटिजंस (एनआरसी) लागू करने की मांग जोर पकड़ रही है। आदिवासी संगठनों की मांगो के आगे झुकते हुए राज्य सरकार ने एनआरसी लागू करने के समर्थन में विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया है। इन प्रस्तावों को जद (यू) विधायक के. जॉयकिशन ने पेश किया था जिसे आमराय से स्वीकार कर लिया गया। इससे पहले कम से कम 19 आदिवासी संगठनों ने इस मांग में प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन भी भेजा था। मणिपुर में एनआरसी की मांग ऐसे समय में जोर पकड़ रही है जब पड़ोसी असम में एनआरसी की योजना खटाई में पड़ गई है।
मणिपुर विधानसभा ने हाल में राज्य जनसंख्या आयोग गठित करने और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने के लिए दो प्रस्तावों को भी सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया है। जद (यू) विधायक जयकिशन का दावा है कि राज्य के पर्वतीय इलाकों में वर्ष 1971 से 2001 के बीच जनसंख्या में 153।3 फीसदी की वृद्धि हुई और 2002 से 2011 के दौरान यह दर बढ़कर 250।9 फीसदी पर पहुंच गई। घाटी के दो जिलों--इंफाल और जिरीबाम में उस दौरान जनसंख्या वृद्धि की यह दर क्रमशः 94।80 और 125।40 फीसदी रही।
इससे पहले बीती जुलाई में राज्य के डेढ़ दर्जन से ज्यादा छात्र और आदिवासी संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे पत्र में एनआरसी लागू करने की मांग उठाई थी। उनका दावा था कि म्यांमार, बांग्लादेश और नेपाल से आने वालों की जांच के लिए नागरिकता रजिस्टर जरूरी है। ज्ञापन में लिखा था कि खासकर म्यांमार को लेकर चिंता ज्यादा क्योंकि मणिपुर की 398 किलोमीटर लंबी बिना बाड़ वाली सीमा उसके साथ सटी है।
मणिपुर जाने वालों के लिए नवंबर, 1950 तक पास या परमिट प्रणाली लागू थी। लेकिन उसके खत्म होने की वजह से अब बांग्लादेश (पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान), म्यांमार और नेपाल के आप्रवासियों के लिए राज्य में घुसपैठ आसान हो गई है। प्रधानमंत्री को भेजे ज्ञापन में आदिवासी संगठनों ने कहा था, “इन तीन देशों के लोग पास प्रणाली के खत्म होने के बाद से राज्य में स्वायत्त रूप से बस गए थे। बीते 75 वर्षों के दौरान विदेशी अधिनियम 1946 के तहत इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। बाहरी लोगों की बढ़ती आबादी के कारण स्वदेशी समुदाय अपने ही राज्य में हाशिए पर पहुंच गए हैं।”
राज्य के पर्वतीय इलाकों में अनुसूचति जनजाति के लोगों की बहुलता है जबकि घाटी में गैर-आदिवासी मैतेयी तबके के लोग रहते हैं। जद (यू) विधायक जयकिशन कहते हैं, “पर्वतीय जिलों की जनसंख्या में असामान्य वृद्धि गैर-भारतीय लोगों की बढ़ती आवाक का सबूत है। इससे स्थानीय जातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ रह है।”
माना जाता है कि पर्वतीय जिलों में रहने वाले कुकी-चिन समुदाय के ज्यादातर लोग पड़ोसी म्यांमार से यहां आकर बसे हैं। लेकिन बीते साल म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद उनकी आबादी तेजी से बढ़ी है।
हालांकि दिसंबर, 2019 में केंद्र सरकार ने राज्य को इनर लाइन परमिट (आईएलपी) प्रणाली के तहत लाने के लिए 1873 के बंगाल ईस्टर फ्रंटियर रेगुलेशन को मणिपुर तक बढ़ा दिया। लेकिन स्थानीय संगठनों का आरोप है कि यह अवैध विस्थापन को रोकने में सक्षम नहीं है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम के बाद मणिपुर आईएलपी प्रणाली लागू करने वाला पूर्वोत्तर का चौथा राज्य है।
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