बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
जीत
बाबूलाल मरांडी
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पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
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चुनाव आयोग ने शनिवार को सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा कर दी है। अब 4 जून तक देश में चुनावी माहौल ही रहना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने अमित शाह के साथ 2014 और 2019 में भाजपा की चुनावी सफलताओं की कहानी लिखी थी, अब लगातार तीसरी जीत पर उनकी नजर है। अगर मोदी ऐसा कर पाए तो वह जवाहरलाल नेहरू के बाद ऐसा करने वाले दूसरे प्रधानमंत्री होंगे।
प्रधानमंत्री ने पिछले महीने मध्य प्रदेश के झाबुआ में एक रैली में कहा था- "अबकी बार 400 पार जाएगी। भाजपा अकेले 370 के पार जाएगी, और मैं आपको बताऊंगा कि ये कैसे करना है।" उसके बाद ही भाजपा के हर नेता-कार्यकर्ता अबकी बार 400 का नारा रटने लगे। भाजपा सांसद अनंत हेगड़े ने तो इसका मतलब भी बता दिया कि मकसद संविधान बदलना है। लेकिन भाजपा ने उनके बयान से दूरी बना ली।
मोदी और भाजपा के सामने विपक्षी 'इंडिया' गठबंधन है, जो कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों सहित कुछ विपक्षी दलों का एक समूह है। सीट बंटवारे के मुद्दों पर गठबंधन सहयोगियों के बीच मतभेदों के बावजूद भाजपा विरोधी गुट ने एकजुट होकर मोर्चा बनाने की कोशिश की है। कहीं-कही इंडिया गुट भी प्रभावी नजर आ रहा है। इन 6 क्षेत्रों में एनडीए और इंडिया का कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
इस सारे मुकाबले में सबसे बड़ा मुकाबला उत्तर प्रदेश में है। चुनाव आयोग ने यूपी में सातों चरणों में मतदान रखा है। यह कहावत यूं नहीं मशहूर है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश ने देश को नौ प्रधान मंत्री दिए हैं, जिनमें मोदी भी शामिल हैं, जो वाराणसी से मौजूदा सांसद हैं। हालांकि वो गुजरात के रहने वाले हैं। यूपी से लोकसभा में 80 सांसद जाते हैं। 2019 की लोकसभा में कुल 303 सीटें जीतने की भाजपा की महत्वाकांक्षाओं के लिए यूपी महत्वपूर्ण है। पार्टी को भरोसा है कि पीएम मोदी और योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता के साथ-साथ अयोध्या में राम मंदिर का अभिषेक उन्हें मिलेगा। 2014 और 2019 से भी ज्यादा संख्या की उम्मीद भाजपा को इस बार यूपी से है। लेकिन भाजपा को अपनी प्रमुख प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। 2019 के चुनावों में, अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा ने 5 सीटें जीती थीं, जबकि उसकी गठबंधन सहयोगी मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी को 10 सीटें मिली थीं। कभी इस राज्य में दबदबा रखने वाली कांग्रेस आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। 2014 और 2019 के चुनावों में वह क्रमशः दो और एक सीट ही जीत सकी। इस बार सपा और कांग्रेस का गठबंधन है। इंडिया को उम्मीद है कि इस बार ज्यादा बेहतर नतीजे मिलेंगे।
यूपी के बाद बिहार दूसरा ऐसा राज्य है, जहां भाजपा को कड़े मुकाबले का सामना करना होगा। चुनाव आयोग ने यहां भी मतदान सातों चरणों में रखा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू और नीतीश कुमार एनडीए गठबंधन का हिस्सा थे, जिसने राज्य की 40 में से 39 सीटें जीती थीं। इसके बाद नीतीश एनडीए से बाहर गए। आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन नीतीश ने फिर पलटी मारी और वो वापस भाजपा का दामन थामकर एनडीए में चले गए हैं। राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया है। चिराग पासवान की एलजेपी (आर) के साथ भाजपा नए महत्वपूर्ण गठबंधन हाल ही में किया है। अब उसके पास उच्च जातियों, गैर-यादव ओबीसी, ईबीसी और दलितों का पूरीा पैकेज है। जो दिखने में बहुत मजबूत दिखता है।
पश्चिम बंगाल में मोदी और दीदी का मुकाबलाः यूपी की तरह पश्चिम बंगाल में भी चुनाव आयोग ने 7 चरणों में मतदान रखा है। पश्चिम बंगाल के 2021 के विधानसभा चुनावों में ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए 'खेला होबे' लोकप्रिय नारा गढ़ा था। तीन साल बाद, 'दीदी' फिर से उसी युद्ध मैदान में हैं। वाम मोर्चा पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। टीएमसी की दुश्मन नंबर 1 अब भाजपा है। 2019 के चुनावों में, हिंसा से प्रभावित मतदान में भाजपा ने 18 सीटें जीती थीं। इस बार, वह संदेशखली सहित विभिन्न मुद्दों पर ममता बनर्जी को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है, जहां कई महिलाओं ने निलंबित टीएमसी नेता शेख शाहजहां पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी उत्तर 24 परगना के इस गांव के पीड़ितों से मुलाकात की थी।
महाराष्ट्रः चुनाव आयोग ने यहां पांच चरणों में मतदान रखा है। महाराष्ट्र में भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की एनसीपी और विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के बीच सीधी चुनावी लड़ाई होगी। इस राज्य से लोकसभा में 48 सांसद जाते हैं। पिछले पांच वर्षों में यह राज्य कई महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं का गवाह रहा है, जिसमें देवेंद्र फणवीस की चंद घंटे के लिए शपथ से लेकर एकनाथ शिंदे के विद्रोह के बाद महा विकास अघाड़ी के पतन तक शामिल है। यहां चूंकी चुनावी लड़ाई सीधी है, इसलिए भाजपा का रास्ता आसान नहीं है। उसने शिवसेना और एनसीपी को तोड़ तो दिया है, लेकिन उसके असली नेता इंडिया के साथ हैं। जनता इन सब बातों को समझती है।
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