सुप्रीम कोर्ट द्वारा देशद्रोह क़ानून के तहत लंबित मामलों में सुनवाई पर रोक लगाए जाने के बाद क़ानून मंत्री किरन रिजिजू ने कहा है कि जब वह अदालत और उसकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं तो एक लक्ष्मण रेखा होती है यानी एक ऐसी रेखा जिसको पार नहीं करनी होती है।
उनकी यह तीखी प्रतिक्रिया तब आई है जब सुप्रीम कोर्ट ने आज ही कहा है कि जब तक देशद्रोह के अपराध से निपटने वाली धारा 124ए की दोबारा जांच पूरी नहीं हो जाती, तब तक देशद्रोह क़ानून का इस्तेमाल जारी रखना उचित नहीं होगा।
शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्यों से फिर से जाँच पूरी होने तक देशद्रोह के आरोप लगाने वाली कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने से परहेज करने की बात कहते हुए कहा, 'देशद्रोह के लिए लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए।'
सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून यानी 124ए के मामले में हुई सुनवाइयों के दौरान केंद्र सरकार से पूछा था कि राजद्रोह के लंबित पड़े मामलों में क्या होगा। केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल करने के लिए शीर्ष अदालत से और वक्त मांगा था।
क़ानून मंत्री ने कहा कि सभी अंगों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए और हम जो कुछ भी कहते हैं और करते हैं, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम भारत के प्रावधानों और संविधान और सभी मौजूदा कानूनों का सम्मान करें।
हालाँकि, किरन रिजिजू ने इस मामले में तीखी टिप्पणी की, लेकिन रिजिजू इस सवाल से बचते रहे कि क्या उन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला ग़लत था।
केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इस प्रावधान पर रोक लगाना सही तरीका नहीं हो सकता है। केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, 'एक संज्ञेय अपराध को पंजीकृत होने से नहीं रोका जा सकता है, प्रभाव को रोकना एक सही दृष्टिकोण नहीं हो सकता है और इसलिए जाँच के लिए एक जिम्मेदार अधिकारी होना चाहिए और उसकी संतुष्टि न्यायिक समीक्षा का विषय है।'
अदालत ने यह भी कहा कि जिन लोगों पर 124ए के तहत पहले से मुकदमा दर्ज है और वे जेल में हैं, वे लोग भी जमानत के लिए संबंधित अदालतों के पास जा सकते हैं।
अदालत ने कहा कि अगर राजद्रोह कानून के अंतर्गत कोई नया मुकदमा दर्ज होता है तो संबंधित पक्षों को यह आजादी है कि वे राहत के लिए अदालतों के पास जा सकते हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तमाम अदालतों से अनुरोध किया कि वह किसी तरह की राहत देने से पहले शीर्ष अदालत के द्वारा दिए गए आदेश को जरूर देख लें।
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