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अजमेर शरीफ दरगाह

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह विवादः संघ की प्रयोगशाला रहा है अजमेर

अजमेर शरीफ के नीचे मंदिर होने का दावा भले ही हिंदु सेना ने किया हो लेकिन अब बीजेपी का इसके पीछे का एजेंडा सामने आ गया है . वैसे भी अजमेर से सटा  ब्यावर और भीलवाड़ा संघ परिवार की बरसों से प्रयोगशाला रहा है. सूफी संत की दरगाह पर दावे से पहले अजमेर में राजस्थान पर्यटन विकास निगम के होटल खादिम का नाम बदलकर अजयमेरु होटल किया गया. बीजेपी ने नेता यह कहने से नहीं थकते कि अजमेर का असली नाम तो अजयमेरु था जिसे मुगलों ने बदल कर अजमेर कर दिया था. 
अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान अजयमेरु के ही शासक हुआ करते थे. उनकी मौत के बाद मुगलों ने स्थानीय जनता को जबरन मुस्लिम बनाने का काम किया जो मेराती मुसलमान कहलाते हैं. विश्व हिंदू परिषद इन्हें फिर से हिंदू बनाने का अभियान कई दशकों से इस बेल्ट में चला रही है. परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया ने भीलवाड़ा और अजमेर में त्रिशूल दीक्षा का कार्यक्रम चलाया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनकी गिरफ्तारी भी करवाई थी.
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कुल मिलाकर ताजा विवाद को इस पृष्ठभूमि के साथ जोड़ कर देखे जाने की जरूरत है. दिलचस्प बात है कि हिंदू सेना जिस जस्टिस हरबिलास  शारदा की किताब का हवाला दे रही हैं उन्हीं जज शारदा के नाम पर बाल विवाह रोकने वाला शारदा एक्ट भी है. जज शारदा ने 1929 में 18 साल से कम उम्र के लड़कों और 14 साल से कम उम्र की लड़कियों के विवाह को बाल विवाह करार देते हुए जुर्माने और सजा का प्रावधान किया था. जाहिर है कि जज न तो इतिहासकार थे और न ही पुरातत्व से उनका कोई लेना देना था. 
कानूनविद की एक किताब के आधार पर दरगाह शरीफ के नीचे मंदिर और संस्कृत विद्यालय होने का दावा किया जाता है और निचली अदालत मुकदमे को सुनने लायक घोषित कर नोटिस तक जारी कर देती है. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ सर्वे का समर्थन करते हैं तो शिक्षा मंत्री मदन दिलावर खुल कर कहते हैं कि मुगलों ने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनवाई थी और अब खुदाई से सच्चाई सामने आ जाएगी.
मदन दिलावर तो यह याद दिलाने की जरूरत है कि अजमेर शरीफ कोई मस्जिद नहीं है यह सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है. मस्जिद और दरगाह में फर्क होता है. सूफी संत की दरगाह से दुनिया के करीब 70 देशों की आस्था जुड़ी हुई है. यहां अगले साल जनवरी में 813 वां उर्स मनाया जाएगा. अकबर , जहांगीर, औरंगजेब जैसे मुगल शासकों ने दरगाह का चरणबद्ध  से निर्माण करवाया था तो हिंदू राजाओं ने समय समय पर अनुदान दिया था. जयपुर के राजा ने भी दरगाह में निर्माण करवाया था. 
अजमेर शरीफ दरगाह में मुस्लिमों से ज्यादा हिंदू आते हैं . यहां जियारत के दौरान चढ़ाए जाने वाले गुलाब के फूलों का उत्पादन बीस किलोमीटर दूर पुष्कर के हिंदू करते हैं . हाल ही में पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले पशु मेले का समापन हुआ है . सच्चाई यह है कि पुष्कर में ज्यादातर हिंदू जाते हैं लेकिन पशु मेले के दौरान दरगाह आने वाले जायरीन की संख्या 25 फीसद तक बढ़ जाती है . जाहिर है कि यह जायरीन हिंदू ही होते हैं.
बहुत साल पहले मेरी दरगाह में उर्स के दौरान दिल्ली के एक सिख परिवार से मुलाकात हुई. सिख परिवार वहां लंगर चला रहा था . उनका कहना था कि दस सालों से लंगर चला रहे हैं . दरअसल उनकी मोटरसाइकिल चोरी हो गयी थी. उसी दौरान उनका अजमेर आना हुआ और ख्वाजा साहब से दुआ मांगी. दुआ कबूल हुई तो हर साल आने लगे.देखते ही देखते यह सिलसिला बन गया. सिख परिवार के बाद मेरी नजर एक विदेशी महिला की तरफ गयी जो सर पर दुपट्टा रखे इबादत कर रही थी. पता चला कि महिला कोरिया की है. हर साल आती हैं और जन्नती दरवाजे के बाहर चुपचाप बैठी रहती हैं. कई बार भभक कर रो भी देती हैं.
दिल्ली वालों के लिए बता दूं कि जिस तरह दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के प्रति लोगों में आस्था है वैसा ही कुछ अजमेर शरीफ का स्थान है. कहा जाता है कि इरादे रोज बनते हैं मगर टूट जाते हैं , अजमेर वही आते हैं जिन्हें ख्वाजा बुलाते हैं . आपको ध्यान होगा कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय पाकिस्तान के शासक परवेज मुशर्रफ का आगरा आना हुआ था. उन्हें बाद में अजमेर में भी आना था लेकिन आ नहीं सके. उसके बाद उनका आना हुआ था . 
पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रह चुकी बेनजीर भुट्टो भी यहां कई बार आई थी . एक बार तो मैं भी कवर कर रहा था . जियारत के बाद बेनजीर ठंडे फर्श पर ही बैठ गयी थी और पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए थे . खाड़ी देशों के शासक भी अपने अपने खादिमों के हाथों दरगाह शरीफ के लिए पैसा आदि भेजते रहते हैं . खुद मोदीजी की तरफ से हर साल उर्स पर चादर चढ़ाई जाती है.
ऐसे में कुछ लोगों का कहना है कि दरगाह के इंतजाम के लिए 1955 का केंद्रीय एक्ट लागू है , इसके अलावा खाड़ी देशों में ख्वाजा साहब की बड़ी मान्यता है लिहाजा मोदी सरकार को ही दखल देना पड़ेगा और वह नहीं चाहेंगे कि मामला अदालतों में लंबा खिंचे . देखना है कि 20 दिसंबर की अगली तारीख को मोदी सरकार दरगाह के पक्ष में कितने सबूत लेकर हाजिर होती है. 
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विजय विद्रोही
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