ऐसे समय जब कांग्रेस को एक के बाद एक कई झटके लगे हैं और इसके कई युवा नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है, तेज़ तर्रार युवा नेता कन्हैया कुमार ने इस डेढ़ सौ साल पुरानी पार्टी का दामन थाम लिया है। उन्होंने मंगलवार को विधिवत कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली।
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मैं कांग्रेस में शामिल इसलिए हुआ हूँ कि यह पार्टी नहीं, एक विचार है। यह देश की सबसे पुरानी और लोकतांत्रिक पार्टी है और मैं लोकतांत्रिक शब्द पर ज़ोर दे रहा हूँ। देश कांग्रेस के बिना नहीं बच सकता।
कन्हैया कुमार, नेता, कांग्रेस
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क्या कहा मेवानी ने?
जिग्नेश मेवानी ने कहा, "मैं तकनीकी कारणों से औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल नहीं हो पाया। मैं निर्दलीय विधायक हूँ, यदि मैं किसी दल में शामिल होऊं तो मैं शायद विधायक नहीं रह पाऊँगा।"
उन्होंने इसके आगे कहा,
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मैं वैचारिक रूप से कांग्रेस के साथ हूँ और मैं गुजरात चुनाव कांग्रेस के चिह्न पर ही लड़ूंगा।
जिग्नेश मेवानी, निर्दलीय विधायक
वेणुगोपाल : कांग्रेस में उत्साह का संचार
कांग्रेस महासचिव के. सी. वेणुगोपाल ने कन्हैया कुमार के पार्टी में शामिल होने पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि कन्हैया कुमार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतीक हैं।
वेणुगोपाल ने कहा कि 'छात्र नेता के रूप में कन्हैया कुमार ने कट्टरवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष किया है। उनके जैसे जुझारू व्यक्ति के पार्टी में शामिल होने से कांग्रेस में नए उत्साह का संचार होगा।'
कन्हैया कुमार के भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ कर कांग्रेस में शामिल होने को लेकर कुछ समय से कयास लगाए जा रहे थे। बाद में यह कहा गया था कि वे भगत सिंह के जन्म दिन के मौके पर कांग्रेस में शामिल होंगे।
कन्हैया कुमार जवाहलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। उस दौरान और उसके बाद उन्होंने अपनी एक खास और जुझारू नेता की छवि बनाई। 'हम लेके रहेंगे आज़ादी' के नारों, अपने भाषणों और सरकार पर लगातार हमले करने की रणनीति से उनकी एक विशेष व्यवस्था- विरोधी छवि बनी।
इस छवि के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वे कांग्रेस में एक बार फिर आन्दोलन की राजनीति शुरू कर सकेंगे। सार्वजनिक मुद्दों पर सड़कों पर उतरने और सरकार को ज़ोरदार तरीके से घेरने के लिए लोगों को लामबंद करने की राजनीति कांग्रेस में कुछ समय से धीमी पड़ गई है। समझा जाता है कि कन्हैया कुमार ऐसा कर सकेंगे।
लेकिन यह सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि कांग्रेस उन्हें काम करने की कितनी छूट देती है और खुद कन्हैया कांग्रेस में पहले से स्थापित लोगों से कितना और किस तरह का तालमेल बिठा पाएंगे।
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युवाओं का कांग्रेस से पलायन
कांग्रेस पार्टी में युवा नेताओं को लेकर तब से सवाल उठ रहे हैं जब हाल ही एक के बाद एक कई नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी जैसे नेता हाल ही में कांग्रेस छोड़ चुके हैं।
उनसे पहले कांग्रेस के एक कद्दावर युवा चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बीजेपी में शामिल हो गए थे। सिंधिया और जितिन- दो नाम ऐसे हैं जो राहुल गांधी के चार सबसे प्रमुख क़रीबियों में से थे।
सिंधिया और जितिन प्रसाद के अलावा सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा भी राहुल के क़रीबी बताए जाते हैं। अब दो ही राहुल के साथ बचे हैं। इनमें से भी सचिन पायलट के काफ़ी नाराज़ चलने की ख़बरें आती रही हैं।
ऐसे में कन्हैया कुमार का कांग्रेस में शामिल होना अहम है।
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कन्हैया को लेकर विवाद
कन्हैया कुमार सीपीआई के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फ़डरेशन से जुड़े हुए रहे हैं। वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं।
उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगसूराय से चुनाव लड़ा था और बीजेपी के उम्मीदवार गिरिराज सिंह से हार गए थे। सिंह बाद में केंद्रीय मंत्री बनाए गए थे।
लेकिन कन्हैया कुमार ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था और बीजेपी ने प्रतिष्ठा सवाल बनाते हुए इस सीट पर पूरी ताकत झोंक दी थी।
कन्हैया कुमार जेएनयू में चर्चा में इसलिए आए थे कि उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने देशविरोधी नारे लगाए थे, हालांकि इस आरोप को कभी साबित नहीं किया गया।
इस मुद्दे पर बीजेपी और उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने बहुत ही शोर मचाया था। इन कारणों से कन्हैया कुमार राष्ट्रीय स्तर पर हीरो बन कर उभरे थे।
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कन्हैया पर आरोप
यह मामला जेएनयू में 9 फ़रवरी 2016 को अफ़ज़ल गुरु और मक़बूल भट्ट की बरसी पर कार्यक्रम आयोजित करने से जुड़ा है। 2001 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु और एक अन्य कश्मीरी अलगाववादी मक़बूल भट्ट को फाँसी दे दी गई थी।
कन्हैया कुमार और 9 अन्य छात्रों पर आरोप लगा कि वे उस कार्यक्रम में शामिल थे और देश विरोधी नारे लगाए थे। उस मामले में उन्हें जेल हुई थी। अदालत में पेशी के दौरान उन पर हमला भी किया गया था।
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सरकार विरोधी छवि
कन्हैया कुमार जब जेल से निकले तो जेएनयू परिसर में दिये गये उनके भाषण को पूरे देश ने देखा। उन्होंने अपने ऊपर कार्रवाई के लिए सीधे प्रधानमंत्री मोदी को ज़िम्मेदार ठहराया। उस भाषण ने ख़ूब वाहवाही बटोरी।
इसके बाद से वह शानदार भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं। वह देश भर में डिबेट में शामिल होते रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सीपीआई की तरफ़ से वह चुनाव में खड़े हुए। हालाँकि वह चुनाव हार गए, लेकिन लगातार उनकी छवि राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती ही गई।
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