कन्हैया कुमार फ़रवरी 2016 के पहले एक मेधावी छात्र था। जेएनयू में पढ़ता था। छात्र संघ का अध्यक्ष बन गया। पर फ़रवरी 2016 के बाद वह देशद्रोही बन गया। एक ऐसा छात्र जो हिंदुस्तान के टुकड़े करना चाहता है। टीवी चैनल जिसे टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य कहते हैं। देश की पुलिस उसे खोजती है और उसे जेल में बंद कर दिया जाता है। वह अपराधी की श्रेणी में डाल दिया जाता है। कुछ लोग उसकी जान के दुश्मन बन जाते हैं। किसी ने कहा, उसकी जीभ काट कर लाओ तो 5 लाख रुपये देंगे। कोई 11 लाख की बोली लगाता है। मानो वह इनामी डकैत हो।

फ़रेंसिक लैब यह चेक करके बता देगी कि विडियो असली है या नक़ली है। उसके साथ छेड़छाड़ की गई है या नहीं की गई है। आवाज़ का मिलान भी हो जाएगा। तस्वीर की असलियत भी पता चल जाएगी। यह पता चल जाएगा कि कन्हैया की आवाज़ है या नहीं, वह उस विडियो में है या नहीं। यानी जो काम ज़्यादा से ज़्यादा एक महीने में हो सकता है, उसमें लगते हैं लगभग-लगभग 3 साल। क्यों भाई?
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।