जैसी प्रतिक्रिया कोरोना महामारी के दौरान भारत में मुसलिमों को निशाना बनाए जाने पर खाड़ी के कई देशों में हुई थी, अब फिर से वैसी ही प्रतिक्रिया की आशंका जताई जाने लगी है। पैगंबर मोहम्मद साहब पर बीजेपी नेताओं की टिप्पणी के बाद खाड़ी के कई देशों ने आधिकारिक विरोध जताया है। ऐसा करने वाले कम से कम 15 देश हैं। उनमें से कुछ देशों में सोशल मीडिया पर भारतीय सामानों के बहिष्कार की पोस्ट सामने आई हैं।
ऐसी प्रतिक्रिया के बीच क्या उन देशों में रहने वाले भारतीयों पर भी इसका असर पड़ने की आशंका है? यह सवाल सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं को देखकर भी उठ रहा है। यदि भारतीय प्रभावित होंगे तो इसका असर भारत पर भी बड़े पैमाने पर पड़ेगा। ऐसा इसलिए कि उन खाड़ी देशों में क़रीब 89 लाख भारतीय बसते हैं। वे वहाँ रोज़गार करते हैं, व्यवसाय करते हैं और अपने देश में बड़ी-बड़ी रक़म भेजते हैं।
खाड़ी के देशों में सबसे ज़्यादा भारतीय यूएई में रहते हैं। वहाँ 34 लाख से ज़्यादा भारतीय हैं और वे स्थानीय आबादी के 34.6 फ़ीसदी हैं। इसके बाद सउदी अरब में क़रीब 26 लाख भारतीय हैं और उनकी आबादी 7.5 फ़ीसदी है। कुवैत में 10 लाख से ज़्यादा भारतीय हैं और वे स्थानीय आबादी के 24 फ़ीसदी हैं। ओमान में पौने आठ लाख भारतीय हैं और वे स्थानीय आबादी के 15 फ़ीसदी से ज़्यादा हैं। क़तर में साढ़े सात लाख भारतीय हैं और वे स्थानीय आबादी के क़रीब 26 फ़ीसदी हैं। बहरीन में सवा तीन लाख भारतीय हैं और वे स्थानीय आबादी के 19 फ़ीसदी हैं। खाड़ी के दूसरे देशों में भी भारतीय काफ़ी संख्या में हैं।
वहाँ बसने वाले अधिकतर लोग रोजगार की तलाश में गए हैं और वे सामान्य रूप से नौकरी करते हैं। हालाँकि खाड़ी देशों में कुछ प्रमुख खुदरा स्टोर और रेस्तरां भारतीयों के हैं। वे वहाँ पर अच्छी-खासी कमाई करते हैं। दुनिया भर में रहने वाले भारतीय अपने देश में कमाई का पैसा यानी रेमिटेंस भेजते हैं। यह जानकर आप चौंक जाएंगे कि 2018 में दुनिया भर से आने वाले ऐसे कुल पैसे में से आधे सिर्फ खाड़ी के पाँच देशों से आए। रेमिटेंस के आने वाले कुल पैसे में यूएई से 26.9 फ़ीसदी, सउदी अरब से 11.6 फ़ीसदी, क़तर से 6.5, कुवैत से 5.5 और ओमान से 3 फ़ीसदी हैं।
बहरहाल, खाड़ी के देशों में रहने वाले भारतीय सिर्फ़ मुसलमान ही नहीं हैं। वहाँ बड़ी संख्या में हिंदू भी रोजगार की तलाश में गए और वे वहाँ काम करते हैं। इनमें भी कुछ ऐसे हैं जो दक्षिणपंथी विचारों वाले हैं। और वे सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्टों के लिए पहले भुगत भी चुके हैं।
ऐसे मामले तब प्रमुखता से सामने आए थे जब मई 2020 में भारत में कोरोना महामारी फैलने पर तबलीग़ी जमात निशाने पर था। उसी दौरान आम मुसलिमों को निशाना बनाया जा रहा था और मुसलिमों का दानवीकरण किया जा रहा था।
भारत में जिस तरह से कुछ लोगों में सोशल मीडिया पर अंधाधुंध नफ़रत फैलाने और 'इसलामोफ़ोबिया' वाले पोस्ट डालने की बीमारी लगी वह विदेशों में बसे कुछ भारतीयों में भी घर कर गई थी।
सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही नफ़रत को देखकर संयुक्त अरब अमीरात की राजकुमारी हेंद अल कासिमी ने लोगों को शांति और सद्भावना का संदेश दिया था और महात्मा गांधी को याद करने की अपील भी की थी।
राजकुमारी ने लिखा था, 'गांधी सभी लोगों के अधिकारों और सम्मान के लिए एक निडर प्रचारक थे। दिल और दिमाग को जीतने के लिए एक उपकरण के रूप में अहिंसा के उनके निरंतर और अटूट प्रचार ने हमेशा के लिए दुनिया पर अपनी छाप छोड़ी है। उन्होंने मेरा दिल जीत लिया और मैं नफरत से निपटने के उनके शांतिपूर्ण दृष्टिकोण में विश्वास करती हूं।'
Gandhi was a fearless campaigner for the rights & dignity of all people, whose constant & unwavering promotion of non-violence as a tool to win over hearts and minds has forever left its mark on the world. He won my heart and I believe in his peaceful approach to handling hatred.
— Hend F Q (@LadyVelvet_HFQ) April 19, 2020
तब मई 2020 में संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई में भारतीयों द्वारा ऐसे पोस्ट डाले जाने पर कई लोगों को या तो नौकरी से निकाल दिया गया या फिर निलंबित कर दिया गया था।
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