भारत और कनाडा के बीच पिछले कुछ सालों से चली आ रही तनातनी के बाद अब दोनों देशों के रिश्तों में सुधार की उम्मीद नज़र आ रही है। ख़बरों के मुताबिक़, भारत कनाडा में अपने हाई कमिश्नर को फिर से बहाल करने पर विचार कर रहा है। यह क़दम जस्टिन ट्रूडो के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद संभावित रूप से नए नेतृत्व के साथ संबंधों को रीसेट करने की दिशा में देखा जा रहा है। सवाल यह है कि आखिर अब क्या बदला और क्या कनाडा की भी कुछ मजबूरी है जो उसे भारत के साथ दोस्ती की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है?
भारत और कनाडा के संबंध सितंबर 2023 से तब ख़राब हो गए थे, जब कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंटों की संभावित संलिप्तता का आरोप लगाया था। भारत ने इन आरोपों को बेतुका और राजनीति से प्रेरित क़रार देते हुए खारिज कर दिया। फिर दोनों देशों के बीच रिश्ते ख़राब होते गए। यह स्थिति यहाँ तक पहुँच गई कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निष्कासित कर दिया।
अक्टूबर 2024 में भारत ने अपने हाई कमिश्नर संजय कुमार वर्मा और अन्य अधिकारियों को तब कनाडा से वापस बुला लिया, जब कनाडा ने उन्हें निज्जर मामले में संभावित संदिग्ध बताया। इसके जवाब में भारत ने छह कनाडाई राजनयिकों को नई दिल्ली से निकाल दिया। यह वह दौर था जब दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्ते अपने निचले स्तर पर पहुंच गए थे।
अब क्या बदला?
ट्रूडो के नेतृत्व के बाद कनाडा में सत्ता परिवर्तन की संभावना और नए नेतृत्व की नीतियां इस बदलाव का एक बड़ा कारण मानी जा रही हैं। ट्रूडो पर आरोप था कि उन्होंने खालिस्तानी समर्थकों के वोट बैंक को खुश करने के लिए भारत के ख़िलाफ़ सख़्त रुख अपनाया। लेकिन अब, नए प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के नेतृत्व में कनाडा भारत के साथ व्यापारिक और रणनीतिक संबंधों को मज़बूत करना चाहता है। हाल ही में कार्नी ने कहा था कि अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव के बीच भारत के साथ संबंधों को फिर से बनाना कनाडा के लिए ज़रूरी है।
अनौपचारिक चर्चाओं के तहत दोनों देशों के पूर्व राजनयिक पिछले कुछ महीनों से मिल रहे हैं। यह इस दिशा में सकारात्मक संकेत है।
कनाडा की मजबूरी क्या है?
कनाडा के सामने कई मजबूरियां हैं जो उसे भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
- पहला, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी और उनके द्वारा लगाए गए टैरिफ़ ने कनाडा की अर्थव्यवस्था पर दबाव डाला है। कनाडा अब अपने व्यापार को विविध करने के लिए भारत जैसे बड़े बाजार की ओर देख रहा है। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, और कनाडाई कंपनियाँ—खासकर ऊर्जा, शिक्षा और तकनीक क्षेत्र में—यहां निवेश के मौक़े तलाश रही हैं।
- दूसरा, कनाडा और चीन के बीच भी तनाव बढ़ रहा है। ऐसे में, भारत एक रणनीतिक साझेदार के रूप में उभर सकता है। भारत पहले से ही क्वाड यानी अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और भारत का हिस्सा है, और कनाडा इंडो-पैसिफ़िक क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाना चाहता है।
- तीसरा, कनाडा में रहने वाली बड़ी भारतीय डायस्पोरा, लगभग 18 लाख लोग, दोनों देशों के बीच एक मज़बूत सेतु है और जिसे नज़रअंदाज़ करना कनाडा के लिए मुश्किल है।
आगे की राह
हाई कमिश्नर की बहाली दोनों देशों के लिए एक प्रतीकात्मक और व्यावहारिक क़दम होगा। इसके साथ ही, जानकारों का मानना है कि एक व्यापार समझौता और इस साल कनाडा में होने वाले जी7 शिखर सम्मेलन में भारत को आमंत्रित करना संबंधों को और मज़बूत कर सकता है। हालाँकि, निज्जर मामले की जाँच अभी भी कनाडाई अदालतों में चल रही है, और इसके कुछ अप्रत्याशित मोड़ संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं। फिर भी, दोनों पक्षों में सूझबूझ और शांतिपूर्ण तरीके से बातचीत की इच्छा दिख रही है।
कनाडा-भारत संबंधों में सुधार की यह कोशिश ट्रूडो युग के बाद एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है। भारत के लिए यह कदम कूटनीतिक जीत और आर्थिक अवसर दोनों ला सकता है, जबकि कनाडा की मजबूरियां उसे भारत के साथ दोस्ती की ओर धकेल रही हैं। लेकिन इस राह में चुनौतियां बाक़ी हैं। ये चुनौतियाँ खासकर निज्जर मामले का समाधान और आपसी भरोसा बहाली के रूप में हैं। क्या यह कोशिश रंग लाएगी, यह आने वाले महीनों में दोनों देशों के कदमों पर निर्भर करेगा।
अपनी राय बतायें