तीसरी फ्लाइट में 112 निर्वासित लोग थे। उन्हें सोमवार सुबह हवाई अड्डे के दो अलग-अलग गेटों से सिक्युरिटी से लैस बसों में बाहर निकाला गया। उनके परिवार के जो लोग उन्हें लेने एयरपोर्ट आये थे, उन्हें भी मिलने की अनुमति नहीं दी गई। रात 10.03 बजे पहुंचे निर्वासितों को सुबह 4.30 बजे के बाद ही छोटे-छोटे समूहों में बाहर जाने की अनुमति दी गई।
मोदी ने 13 फरवरी को अमेरिका में कहा था- भारत अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे अपने किसी भी नागरिक को वापस लाने के लिए तैयार है। फिर भी, उन्होंने मानव तस्करी को खत्म करने के प्रयासों को तेज करने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "हमारी बड़ी लड़ाई उस पूरे ईको सिस्टम के खिलाफ है और हमें यकीन है कि राष्ट्रपति ट्रम्प इस ईको सिस्टम को खत्म करने में भारत के साथ पूरा सहयोग करेंगे।
एसजीपीसी, ने निर्वासितों और उनके परिवारों के लिए हवाई अड्डे पर लंगर की व्यवस्था की है। उसने इस घटना का संज्ञान लिया है। एसजीपीसी के पदाकारी युवकों के लिए हवाई अड्डे पर सिर ढकने के लिए पगड़ियाँ लेकर आए। एसजीपीसी सचिव प्रताप सिंह ने कहा, "हम विदेश मंत्री एस. जयशंकर से आग्रह करते हैं कि वे इस मुद्दे को अपने अमेरिकी विदेश मंत्री के सामने उठाएं।"
दलजीत सिंह की कहानी
दलजीत सिंह (40) होशियारपुर जिले के कुराला कलां गांव के रहने वाले हैं। दलजीत दूसरी फ्लाइट में थे। दलजीत ने बताया कि सैन डिएगो, कैलिफोर्निया से अमृतसर के बीच 66 घंटे की लंबी यात्रा के दौरान हमें हथकड़ी और बेड़ियों में जकड़ा गया। दलजीत को होशियारपुर जिले के टांडा में पुलिस ने रिसीव किया। उनके परिवार और टांडा से आम आदमी पार्टी के विधायक जसवीर सिंह राजा गिल ने संवाददाताओं को बताया कि एक स्थानीय ट्रैवल एजेंट ने उन्हें एक करोड़ रुपये की कीमत की चार एकड़ खेती वाली जमीन बेचने के लिए मजबूर किया। बाद में एजेंट ने इस जमीन को अपने नाम पर रजिस्टर्ड करा लिया। दलजीत ने डंकी रूट से अमेरिका की यात्रा करने के लिए करीब 45 लाख रुपये खर्च किए थे।
दलजीत ने बताया, "हमने पनामा के दुर्गम जंगल को पार करते समय बहुत ही मुश्किल हालात का सामना किया। यहां तक कि मैक्सिको के तिजुआना कैंप में भी हालात बदतर थे। हमे पकड़ने वाले अमेरिकी बॉर्डर अधिकारी एयर कंडीशनर चालू कर देते थे, जिससे हमारे लिए ठंड का सामना करना और भी मुश्किल हो जाता था। हम फ्लेक्स टेंट में सोते थे और हमें अमानवीय हालात में रहना पड़ता था।"
दलजीत ने कहा: "इस पूरी यात्रा के दौरान यूएस सैन्य विमान फ्यूल भरने के लिए चार बार रुका, लेकिन हम सभी को किसी भी हाल्ट पर उतरने नहीं दिया गया। उन्हें उड़ान में सिर्फ़ चावल, चिप्स और पीने के लिए पानी दिया गया।
गुरमीत सिंह की पीड़ा
फतेहगढ़ साहिब जिले के तेलानियन गांव से निर्वासित गुरमीत सिंह ने बताया कि उन्होंने अपनी हथकड़ी और बेड़ियाँ खोलने के लिए बार-बार अनुरोध किया। लेकिन अमेरिकी सैन्य अधिकारी कोई जवाब नहीं देते थे। उन्होंने कहा, "पानी पीने के लिए भी हाथ उठाना मुश्किल था। हथकड़ियाँ और बेड़ियाँ भारी और कसी हुई थीं, जिससे हर किसी के लिए उन्हें उठाना मुश्किल हो रहा था, लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं था।" गुरमीत ने यह भी बताया कि कैसे ट्रेवेल एजेंट ने उन्हें धोखा दिया। कैसे वो यूएस सीमा पर पकड़े गये। इसी तरह की कहानी गुरजिंदर सिंह की भी है। वो अमृतसर के भुल्लर गांव के हैं। पटियाला के संदीप सिंह और प्रदीप सिंह की कहानी भी इनसे ही मिलती-जुलती है। सभी की पगड़ियां उतरवाई गईं। हथकड़ी-बेड़ी रास्ते में खोली नहीं गई।
पगड़ी पर यूएस अधिकारी का जवाब
मोगा जिले के धर्मकोट के पंडोरी अरियान गांव के 21 वर्षीय जसविंदर सिंह को अमृतसर पहुंचने पर ही नई पगड़ी पहनने के लिए मिली। जसविंदर ने बताया कि “27 जनवरी को जैसे ही मुझे हिरासत में लिया गया, उन्होंने मुझसे मेरी पगड़ी सहित सभी कपड़े उतारने को कहा। हमें केवल टी-शर्ट, लोअर, मोजे और जूते पहनने की अनुमति थी। उन्होंने हमारे जूतों के फीते भी उतार दिए। मैंने और दूसरे सिख युवकों ने उनसे कम से कम हमारी पगड़ियाँ लौटाने को कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा, ‘अगर तुममें से कोई भी खुदकुशी कर लेता है तो कौन जिम्मेदार होगा?’ हम लोग जितने दिन हिरासत में रहे, हमें पगड़ी पहनने की अनुमति नहीं थी।”
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