कुछ साल पहले अंडरवर्ल्ड माफिया दाऊद इब्राहिम पर एक फ़िल्म बनी थी, नाम था - 'कंपनी'। इस फ़िल्म का एक गाना काफी प्रचलित हुआ था। गाने के बोल थे - ‘गंदा है पर धंधा है ये’। यह गाना आज हमारी राजनीतिक पार्टियों के चंदे के ‘खेल’ पर बिलकुल फ़िट बैठता है! इसलिए अब इसके बोल होने चाहिए - ‘गंदा है पर चंदा है ये’।

अब सवाल यह उठता है कि राजनीतिक दलों की इस तरह से चंदा उगाही प्रक्रिया पर अंकुश कैसे लगेगा?
चंदा चाहे किसी राजनीतिक पार्टी को अंडरवर्ल्ड माफिया से आये, किसी को बुलेट ट्रेन या किसी अन्य काम का ठेका देकर आये, सब चलेगा। सरकारें या राजनीतिक दल विकास के नाम पर जो काम करा रहे हैं, उससे देश का विकास कितना हुआ इसका आकलन कभी बाद में करेंगे लेकिन इससे पार्टियों के चंदे का आकार कितना बढ़ा है, इसका हिसाब-किताब समझना ज़रूरी है।