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परिसीमन, भाषा विवाद: RSS की चाल, DMK पर वार, सियासी तूफ़ान!

परिसीमन की जंग और भाषा का दंगल! एमके स्टालिन की डीएमके और मोदी-शाह की बीजेपी के बीच दक्षिण में सियासी तूफ़ान उठा है। अब इसमें संघ भी कूद पड़ा है। बेंगलुरु में शुक्रवार से शुरू हुई आरएसएस की तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक नया सियासी रंग देखने को मिला। तीन-भाषा फ़ॉर्मूले और परिसीमन जैसे मुद्दों पर बढ़ते तनाव के बीच आरएसएस ने अपनी रणनीति को सावधानी से सामने रखा। 

आरएसएस नेता सी आर मुकुंद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में परिसीमन को सरकार का फ़ैसला बताया और कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने साफ़ कर दिया है कि दक्षिणी राज्यों को नुक़सान नहीं होगा। उन्होंने कहा, '543 लोकसभा सीटों में किसी दक्षिणी राज्य का मौजूदा अनुपात वही रहेगा।' यह बयान तमिलनाडु और दक्षिणी राज्यों के उस डर को शांत करने की कोशिश है, जिसे डीएमके और उसके नेता एमके स्टालिन जोर-शोर से उठा रहे हैं। स्टालिन का मानना है कि परिसीमन से दक्षिणी राज्यों की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण में उनकी सफलता उत्तरी राज्यों के मुकाबले उल्टा असर डालेगी। हालाँकि, बीजेपी की ओर से वादा किया जा रहा है कि दक्षिण की सीटें कम नहीं होंगी, लेकिन स्टालिन को संदेह है कि जब उत्तर भारत के राज्यों की सीटें बढ़ जाएंगी तो उसकी अपेक्षा दक्षिण की आवाज़ कमजोर हो जाएगी।

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स्टालिन का मुख्य विरोध इस बात पर है कि जनसंख्या नियंत्रण में सफल रहे राज्यों को परिसीमन में नुक़सान उठाना पड़ेगा। उनके मुताबिक यदि 2026 के बाद की जनगणना के आधार पर सीटों का पुनर्वितरण हुआ तो तमिलनाडु की लोकसभा सीटें 39 से घटकर 31 तक रह सकती हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों को फायदा होगा।

स्टालिन ने दो संभावनाएं जताई हैं। पहला, मौजूदा 543 लोकसभा सीटों का राज्यों के बीच पुनर्वितरण, और दूसरा, सीटों की संख्या बढ़ाकर 800 से अधिक करना। दोनों ही स्थितियों में जनसंख्या के आधार पर सीटें तय हुईं तो तमिलनाडु जैसे राज्यों को नुक़सान होगा। अगर सीटें 543 रहती हैं, तो तमिलनाडु 8-9 सीटें खो सकता है। अगर 848 तक बढ़ती हैं तो भी उसे सिर्फ़ 10 अतिरिक्त सीटें मिलेंगी। यह अनुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए ज़रूरी 22 से कम होंगी। उन्होंने कहा है कि यह तमिलनाडु की राष्ट्रीय मंच पर आवाज को दबाएगा।

डीएमके इस मुद्दे पर अन्य दक्षिणी राज्यों को साथ लाने की कोशिश कर रही है, ताकि केंद्र के ख़िलाफ़ एकजुट मोर्चा बनाया जा सके। परिसीमन पर संयुक्त कार्रवाई समिति की पहली बैठक की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को जारी एक वीडियो संदेश में मुख्यमंत्री और डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन ने कहा है कि तमिलनाडु का यह प्रयास राष्ट्रीय आंदोलन में बदल गया है और यह देश के भविष्य को तय करेगा।

स्टालिन ने कहा कि यदि प्रस्तावित परिसीमन के कारण तमिलनाडु और अन्य राज्य संसद में प्रतिनिधित्व गँवा देते हैं, तो यह संघवाद की नींव पर हमला होगा, लोकतंत्र को नष्ट करेगा और अधिकारों को कम करेगा। उन्होंने कहा, 'मैं केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पंजाब के नेताओं का हार्दिक स्वागत करता हूँ जो उचित परिसीमन के लिए संयुक्त कार्रवाई समिति की बैठक में हमारे साथ शामिल हो रहे हैं।'

स्टालिन भाषा को लेकर भी काफ़ी मुखर हैं। केंद्र के तीन भाषा फ़ॉर्मूले को वह हिंदी थोपे जाने के तौर पर देख रहे हैं। इस पर संघ ने भी प्रतिक्रिया दी है। संघ ने मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा और करियर के लिए तीसरी भाषा (जो अंग्रेजी या कोई अन्य हो सकती है) के इस्तेमाल की वकालत की, लेकिन बिना नाम लिए डीएमके पर हमला बोला। इसने 'राष्ट्रीय एकता को चुनौती देने वाली ताक़तों' पर चिंता जताई।  

आरएसएस नेता मुकुंद ने कहा, 'इसके अलावा कई चीजें राजनीतिक मक़सद से की जा रही हैं, जैसे स्थानीय भाषा में रुपये के चिह्न का इस्तेमाल। इन्हें सामाजिक नेताओं और समूहों को हल करना चाहिए। आपस में झगड़ा देश के लिए ठीक नहीं। इसे सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझाना चाहिए।' यह बयान डीएमके की तमिल अस्मिता को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर परोक्ष कटाक्ष था, जिसे संघ राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा मानता है।

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केंद्र और तमिलनाडु के बीच तीन-भाषा फ़ॉर्मूले पर तनाव बढ़ रहा है। जहाँ केंद्र बिना हिंदी पर जोर दिए तीन-भाषा फॉर्मूले को लागू करना चाहता है, वहीं डीएमके इसे हिंदी थोपने की साज़िश बता दो-भाषा फॉर्मूले की मांग कर रही है। इस बहस में आरएसएस ने सीधे हस्तक्षेप से बचते हुए मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा और करियर भाषा के इस्तेमाल की वकालत की। मुकुंद ने कहा, 'मातृभाषा का इस्तेमाल रोजमर्रा के कामों में होना चाहिए। जहां रहते हैं, वहां की क्षेत्रीय भाषा सीखनी चाहिए। यानी तमिलनाडु में तमिल, दिल्ली में हिंदी। करियर के लिए अंग्रेजी या कोई और भाषा भी जरूरी हो सकती है।'

संघ का यह रुख हिंदी को अनिवार्य न बनाकर तमिलनाडु के ग़ुस्से को कम करने की कोशिश है, लेकिन 'उत्तर-दक्षिण विभाजन' को बढ़ावा देने वाली ताक़तों पर चिंता जताकर डीएमके को निशाने पर लिया। मुकुंद ने कहा, 'हमने तीन-भाषा या दो-भाषा सिस्टम पर कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया, लेकिन मातृभाषा पर जोर हमेशा रहा है।'

आरएसएस ने डीएमके का सीधे नाम लिए बिना 'राष्ट्रीय एकता को चुनौती देने वाली ताक़तों' पर निशाना साधा।
मुकुंद ने कहा, 'परिसीमन हो या भाषा, उत्तर-दक्षिण विभाजन को बढ़ावा देना ठीक नहीं।' यह बयान डीएमके की उस रणनीति पर हमला है, जिसे वह तमिल अस्मिता और दक्षिणी पहचान से जोड़ती है। संघ का यह रुख बीजेपी के लिए भी राहत भरा है, जो दक्षिण में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश में है।
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आरएसएस का यह रुख सियासी संतुलन की कोशिश और सियासी चतुराई का नमूना है। परिसीमन पर सरकार के भरोसे का हवाला देकर उसने दक्षिणी राज्यों को आश्वासन दिया, वहीं भाषा विवाद में हिंदी को अनिवार्य न बनाकर तमिलनाडु के ग़ुस्से को ठंडा करने की कोशिश की। लेकिन डीएमके पर विभाजनकारी होने का आरोप लगाकर संघ ने साफ़ कर दिया कि वह इस सियासी जंग में बीजेपी के साथ है। दूसरी ओर, स्टालिन की दक्षिणी मोर्चा बनाने की कोशिश संघीय ढांचे और क्षेत्रीय अस्मिता की बहस को नया रंग दे सकती है।

यह टकराव सिर्फ़ भाषा या सीटों की संख्या का मसला नहीं, बल्कि देश की एकता और सत्ता के संतुलन की बड़ी लड़ाई है। क्या आरएसएस की सधी चाल डीएमके के हमले को कमजोर करेगी, या स्टालिन का दक्षिणी गठजोड़ केंद्र को चुनौती देगा?

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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