#RussiaUkraineWar #RussiaUkraineConflict
— Kiran Parashar (@KiranParashar21) February 26, 2022
Indian Students stranded in #Ukraine are demanding for evacuation as the situation is getting worse. @IndianExpress pic.twitter.com/T53SWu8lGT
यूक्रेन की राजधानी कीव और खारकीव में बम बरस रहे हैं। रूसी फौजें लगातार आगे बढ़ रही हैं। भारतीय छात्रों ने बंकरों में पनाह ले रखी है। खाने-पीने का संकट है। भारतीय टीवी और प्रिंट मीडिया बता रहा है कि कैसे भारत सरकार और भारतीय एम्बेसी इन हालात में भारतीय छात्रों को वहां से देश मुफ्त में वापस ला रही है। लेकिन सच्चाई इसके उलट है। सच्चाई जानकर तमाम लोगों को धक्का लगेगा। सत्य हिन्दी ने कल जिन स्टूडेंट्स से कीव, खारकीव, ओडेसा और अन्य शहरों में बात की थी, आज फिर उनसे बात की। वहां फंसे स्टूडेंट्स ने भारतीय एम्बेसी के रवैए पर अफसोस जताया।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कल घोषणा की थी भारत सरकार उन स्टूडेंट्स को मुफ्त में लाने की व्यवस्था कर रही है जो हंगरी, पोलैंड और रोमानिया बॉर्डर पर पहुंच जाएंगे। इसके बाद भारतीय मीडिया को बताया गया कि कैसे रोमानिया से पहली फ्लाइट आज भारत पहुंच रही है। लेकिन सच सुनकर आप लोग हैरान रह जाएंगे।
कई छात्रों ने फोन पर सत्य हिन्दी को बताया कि रोमानिया, पोलैंड सीमा पर अपने खर्चे से रिस्क लेकर पहुंचे छात्रों से कहा गया कि उन्हें एक-एक हजार अमेरिकी डॉलर यहां से निकासी का खर्चा देना होगा। जिनके पास पैसे थे, उन्होंने तो फौरन पैसे दिए और फ्लाइट ले ली लेकिन जो स्टूडेंट्स भारत सरकार की मुफ्त लाने की योजना पर भरोसा करके आए थे, वे अब भी वहां गिड़गिड़ा रहे हैं लेकिन भारतीय एम्बेसी के अधिकारी उनको भेजने को तैयार नहीं हैं। वे उनसे पहले एक हजार डॉलर मांग रहे हैं। ढेरों स्टूडेंट्स अभी भी पोलैंड, रोमानिया और हंगरी के बॉर्डर पर फंसे हुए हैं।
Bihar Government and
— Mohiuddin Ahmed 🇮🇳 (@Mohiudd63427415) February 26, 2022
Government of India , Kindly take this matter seriously and help these Indian students who have been stuck in the - 2℃ cold on #ukrain_hungry border .@officecmbihar @PMOIndia @IndiainUkraine pic.twitter.com/mlYf7UK6O3
खारकीव में फंसे भारतीय छात्र निमिष चावला ने अंडरग्राउंड मेट्रो बंकर से भारतीय एम्बेसी से फोन पर बात की। उस बातचीत की रेकॉर्डिंग सत्य हिन्दी के पास उपलब्ध है। निमिष चावल ने भारतीय एम्बेसी में फोन करके पूछा कि पूर्वी इलाके में फंसे हम छात्रों की निकासी की यहां से क्या व्यवस्था है। एम्बेसी के अधिकारी ने निमिष चावला से कहा कि जो लोग बॉर्डर पर पहुंचे हैं, उन्हें ले जाने की व्यवस्था है। निमिष ने इस पर कहा कि खारकीव से बॉर्डर हजार किलोमीटर से भी ज्यादा दूर है, हम लोग वहां कैसे पहुंचें, अधिकारी ने कहा कि हम क्या करें, ये तो आप देखो। निमिष ने कहा कि हम लोग क्या इसी बंकर में अपनी नींद हराम करते रहे हैं, एम्बेसी के अधिकारी ने कहा कि बिल्कुल यही करो। निमिष ने कहा कि सरकार ने कहा था कि 23 फरवरी को यहां से सभी को निकाल लेंगे, उसका क्या हुआ। अधिकारी ने कहा कि वो पुरानी बात थी। नई स्थिति कुछ और है। इसके बाद दोनों की बातचीत बहस में बदल जाती है। भारतीय एम्बेसी के अधिकारी का कुल मिलाकर यह कहना था कि हमें कुछ भी नहीं पता।
As students stranded in Ukraine amid Russian military offensive, their parents back home have sleepless night.
— Ravinder Singh Robin ਰਵਿੰਦਰ ਸਿੰਘ رویندرسنگھ روبن (@rsrobin1) February 26, 2022
They have appeal to the Indian government to bring their children home.
#IndiansInUkraine #nowarinukraine pic.twitter.com/nEtbsgoH8m
कीव में फंसे छात्र पंकज से सत्य हिन्दी ने आज फिर बात की। पंकज ने बताया कि कीव में हालात बदतर होते जा रहे हैं। चंद किलोमीटर के फासले से बम गिरने की आवाजें आ रही हैं। हमारे पास अभी दो-तीन दिनों का राशन-पानी है। हम लोग बंकर में रात गुजार रहे हैं। हम पांच लोग यहां पर हैं, कुछ और भी स्टूडेंट्स हमारे पास रहने के लिए आ रहे हैं। हमें भारत सरकार से बहुत नाउम्मीदी मिली है। सरकार का यहां फंसे स्टूडेंट्स को लेकर रवैया सही नहीं है। हंगरी, रोमानिया, पोलैंड सीमा पर पहुंचे हमारे साथियों से एक -एक हजार डॉलर मांगे जा रहे हैं। हमारे बहुत से साथियों के पैसे नहीं हैं। हालांकि भारत सरकार ने कल कहा था कि भारत आने वाले स्टूडेंट्स को मुफ्त में लाया जाएगा। जिन लोगों ने पहले टिकटें बुक कराई थीं, वो टिकटें महंगी कर दी गईं। अब जब स्टूडेंट्स अपने खर्चे से बॉर्डर तक पहुंचे हैं तो उनसे एक-एक हजार डॉलर मांगे गए। हम लोग बहुत निराश हैं।
सत्य हिन्दी ने कल मुकेश कुमार से भी बात की थी। मुकेश ने आज बताया कि हम लोगों की जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं है। हम जितने भी स्टूडेंट्स अभी तक अलग-अलग रह रहे थे, अब सब एक ही जगह हॉस्टल में इकट्ठा रहने जा रहे हैं। जो भी होगा देखा जाएगा। कम से कम सब लोग साथ तो रहेंगे। हमें भारत सरकार से या भारतीय एम्बेसी से किसी भी तरह की मदद नहीं मिल रही है। एम्बेसी के लोग पश्चिमी इलाके में बॉर्डर के पास हैं, जबकि उनके अधिकारी और दफ्तर पूर्वी यूक्रेन में भी होने चाहिए थे।
छात्र जसकरण सिंह जो भारत लौट आए हैं, यूक्रेन में फंसे अपने दोस्तों को लेकर चिंतित हैं। जसकरण ने बताया कि हमारे दोस्त इंस्टाग्राम और ट्विटर पर अपनी व्यथा लिख रहे हैं, जिसे पढ़कर मन विचलित है।
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