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जबरन वैक्सीन नहीं लगा सकते, टीकाकरण सर्टिफिकेट भी ज़रूरी नहीं: केंद्र

किसी को भी कोरोना टीका जबरन नहीं लगाया जा सकता है। ऐसा केंद्र सरकार ने ही कहा है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसने ऐसा कोई दिशानिर्देश जारी नहीं किया है जिसमें बिना सहमति के टीकाकरण करने की परिकल्पना की गई हो।

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 13 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर अपनी सफ़ाई दी है। इसने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध टीका लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। इसने यह भी कहा कि भारत सरकार ने कोई एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) जारी नहीं किया है जो किसी भी उद्देश्य के लिए टीकाकरण प्रमाण पत्र को अनिवार्य बनाता हो।

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केंद्र ने यह हलफनामा ग़ैर सरकारी संगठन की एक याचिका के जवाब में दायर किया है जिसमें विकलांग व्यक्तियों के लिए घर-घर जाकर प्राथमिकता वाले कोरोना टीकाकरण की मांग की गई है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि मौजूदा महामारी की स्थिति को देखते हुए कोरोना के लिए टीकाकरण बड़े सार्वजनिक हित में है। मंत्रालय ने कहा है कि विभिन्न प्रिंट और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से यह विधिवत सलाह दी जाती है और विज्ञापन दिया जाता है कि सभी नागरिकों को टीकाकरण करवाना चाहिए।

इसने कहा है कि सरकार ने कोरोना टीकाकरण के लिए दिशानिर्देश तैयार किए हैं जिसके अनुसार सभी लाभार्थियों को टीके लगाने के बाद किसी तरह के संभावित प्रतिकूल प्रभावों के बारे में सूचित किया जाना होता है।

केंद्र सरकार का यह जवाब तब आया है जब कई राज्यों में कुछ सेवाओं के इस्तेमाल के लिए वैक्सीनेशन को ज़रूरी किया गया है। कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने के साथ ही कई राज्यों में बिना टीका लगाए हुए लोगों पर प्रतिबंध लगाया गया है।

महाराष्ट्र में ही नियम बनाया गया है कि लोकल ट्रेनों में पूरी तरह टीका लगाए व्यक्ति को ही जाने की इजाजत है। केरल सरकार ने कहा है कि बिना टीका लगाए लोगों के कोरोना इलाज का ख़र्च सरकार नहीं उठाएगी। 

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वैसे, दुनिया भर में कोरोना वैक्सीन मैनडेट यानी इसको ज़रूरी किए जाने पर विवाद चल रहा है। इसमें से सबसे अहम बात यही है कि सार्वजनिक जगहों पर बिना टीका लगाए लोगों को जाने पर प्रतिबंध है। इसमें से एक 'वैक्सीन पासपोर्ट' पर भी विवाद है। जिनको वैक्सीन नहीं लगी है उन्हें कई देशों ने प्रवेश देने से इनकार कर दिया है। इस पर भी भारी विवाद है।

ऐसा ही एक मामला दुनिया के नबंर वन टेनिस खिलाड़ी नोवाक जोकोविच के साथ हुआ है। ऑस्ट्रेलियाई ओपन में भाग लिए बिना ही उन्हें ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न एयरपोर्ट से वापस लौटा दिया गया। जोकोविच के साथ यह सिर्फ़ इसलिए हुआ कि उन्होंने कोरोना के टीके नहीं लगवाए थे और इस वजह से उनका वीजा रद्द कर दिया गया था। उन्होंने कोरोना टीका से छूट मिलने वाले जो दस्तावेज़ पेश किये थे उसे ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने नहीं माना। 

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क़मर वहीद नक़वी
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