कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली के बॉर्डर्स पर आंदोलन कर रहे किसानों ने 26 मार्च को भारत बंद का आह्वान किया है। कड़कड़ाती ठंड झेलने के बाद भयंकर गर्मी में धरने पर बैठे किसानों को 100 से ज़्यादा दिन हो चुके हैं लेकिन उनकी मांगों के बारे में अब तक सरकार ने कोई फ़ैसला नहीं किया है। लगभग दो महीने से सरकार और किसानों के बीच बातचीत भी बंद है और यह कब शुरू होगी, ताज़ा सूरत-ए-हाल में कुछ कहा नहीं जा सकता।
आंदोलन को धार देते हुए संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से कहा गया है कि सरकार को चेताने के लिए 26 मार्च को भारत बंद का आह्वान किया गया है। इससे पहले किसान और मज़दूर संगठन 15 मार्च को सार्वजनिक उपक्रमों को बेचे जाने और पेट्रोल डीजल की क़ीमतों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करेंगे।
किसानों के साथ हुई वार्ताओं के दौरान केंद्र सरकार पहले इन क़ानूनों में संशोधन करने और फिर इन्हें डेढ़ से दो साल तक रद्द करने के लिए भी तैयार हुई थी लेकिन किसान संगठन इसके लिए तैयार नहीं हुए। किसानों की मांग कृषि क़ानूनों को रद्द करने के साथ ही एमएसपी को लेकर गारंटी का क़ानून बनाने की है।
इस बीच किसान नेता पांच चुनावी राज्यों के दौरे पर भी जाने वाले हैं। किसानों ने अपील की है कि इन राज्यों के लोग बीजेपी को वोट न दें। किसान नेता राकेश टिकैत 13 मार्च को बंगाल के दौरे पर जाएंगे। टिकैत ने कहा है कि वे वहां किसानों से मिलेंगे और बीजेपी को हराने की अपील करेंगे।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आंदोलन
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी, एसपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी मिलकर इन दिनों बीजेपी की सियासी ज़मीन को खोखला करने में जुटे हैं और ज़मीन खोखली होने पर इमारत को गिरने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता। इस बात को बीजेपी के आला नेता भी जानते हैं लेकिन मोदी सरकार इस मामले में पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है, सो वे भी मजबूर हैं।
सभी विपक्षी राजनीतिक दल किसान आंदोलन को 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में ख़ुद को जिंदा करने के मौक़े के रूप में देख रहे हैं। इन दलों के कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि अगर किसान आंदोलन लंबा चलता है तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 130 विधानसभा सीटों पर इसका असर होगा और यहां से चली यह क्रांतिकारी हवा उत्तर प्रदेश की बाक़ी जगहों पर भी बदलाव की ज़मीन तैयार करेगी।
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