व्यक्तिगत आज़ादी से ज़्यादा सामाजिक नैतिकता को ज़रूरी मानने वालों के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट का एक फ़ैसला झटका से कम नहीं है। कोर्ट की यह टिप्पणी लिव-इन संबंध को लेकर आई है। इसने कहा है कि लिव-इन संबंध जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं और इसे व्यक्तिगत स्वायत्तता के नज़रिए से देखने की ज़रूरत है न कि सामाजिक नैतिकता के। कोर्ट के इस फ़ैसले का मतलब है कि एक वयस्क किसके साथ रहना चाहता है वह ख़ुद तय कर सकता न कि उसके परिवार और सामाजिक नैतिकता।
सामाजिक नैतिकता के बजाए व्यक्तिगत आज़ादी ज़्यादा ज़रूरी: इलाहाबाद हाई कोर्ट
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- 29 Mar, 2025
सामुदायिक हित सर्वोपरि है या फिर व्यक्तिगत आज़ादी? योगी सरकार कुछ भी कहे लेकिन लिव इन रिलेशनशिप के दो मामलों में अदालत ने जो कहा है वह सरकार के लिए भी क्या सबक़ होगा?

अदालत की यह टिप्पणी योगी सरकार के उस रवैये के भी ख़िलाफ़ है जिसमें उसने एक अन्य मामले में कुछ दिन पहले ही अदालत में हलफनामा देकर कहा है कि 'यह माना हुआ तथ्य है कि सामुदायिक हित हमेशा व्यक्तिगत हित पर सर्वोपरि रहेगा'।