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किसानों की मेहनत एक बार फिर रंग लाई है। इस बार गेहूं का उत्पादन पिछले सारे रिकार्ड तोड़ने जा रहा है। सरकारी अनुमान पर अगर भरोसा किया जाए तो इस बार देश में गेहूं का उत्पादन 44.4 लाख टन तक बढ़ सकता है।
पिछले साल गर्मी का मौसम जल्दी आ टपकने के कारण गेंहूं के उत्पादन में काफी कमी आई थी। इस थोड़ी सी कमी ने ही बाजार को काफी प्रभावित किया था और पिछले दिनों बाजार में जो गेहूं के दाम बढ़े हैं, उसके पीछे एक कारण यह भी था। और इसी वजह से सरकार के गेहूं के निर्यात पर पाबंदी भी लगानी पड़ी। इस बार शायद ऐसा न हो। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या इसका किसानों को कोई सीधा फायदा मिल सकेगा?
लेकिन गेहूं का मामला इससे थोड़ा अलग है। देश के बहुत से हिस्सों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इसकी सरकारी खरीद होती है। जहां यह व्यवस्था है वहां किसानों के सामने बाजार भाव टूटने का डर नहीं रहता। लेकिन बिहार जैसे राज्यों में जहां सरकारी खरीद का पक्का इंतजाम नहीं है या उन जगहों पर जहां खरीद का इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है, वहां बाजार भाव टूटेगा और किसान घाटे में रहेंगे।
पिछले दिनों गेहूं के दाम खुले बाजार में जिस तरह तेजी से बढ़े उससे ऐसे किसानों ने भी एक उम्मीद बांधी थी कि नई फसल आने पर इस बार शायद कुछ बेहतर दाम मिल जाएं। लेकिन गेहूं के बढ़े दामों ने खाद्य मुद्रास्फीति को बहुत तेजी से बढ़ा दिया था। जिसे नियंत्रित करने के लिए सरकार ने अपने स्टाक से 30 लाख टन गेहूं खुले बाजार में लाने का फैसला किया। इससे मुद्रास्फीति में तो थोड़ी सी कमी आने की उम्मीद बांधी जा रही है लेकिन किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
यह हालत तब है जब न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार सी-टू से 50 फीसदी अधिक आमदनी पर सभी सरकारें अपनी सहमति जताती रही हैं। और वर्तमान सरकार तो खैर किसानों की आमदनी दुगनी करने की बात करती रही है।
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