अगस्त के एक उमस भरे दिन में देशभर से पर्यटक साबरमती नदी के पास स्थित गांधी आश्रम में आये हुए हैं। जैसे ही वे आश्रम के कच्चे-पक्के रास्तों को पार करते हुए आगे बढ़ते हैं, हृदय कुंज तक पहुंचने पर उनकी चाल अचानक धीमी हो जाती है। ये वही जगह है जहां गांधी कस्तूरबा के साथ रहा करते थे। कई लोग ह्रदय कुंज के बरामदे में लेटे हैं, अन्य लोग खंभों या दीवारों के सहारे बैठ जाते हैं और आसपास की शांति का अनुभव करते हैं। लेकिन सिर्फ महीने भर पहले, सरकार ने 55 एकड़ साबरमती आश्रम परिसर को ‘विश्वस्तरीय पर्यटक आकर्षण’ केंद्र बनाने के लिए 1,246 करोड़ रुपये की एक भव्य लेकिन विवादास्पद योजना को मंजूरी दी। कई लोग जो दशकों से यहां काम कर रहे हैं और रह रहे हैं, उन्हें अब डर है कि आश्रम और उसके आस पास का इलाक़ा हमेशा के लिए बदल जाएगा।
गांधी आश्रम, जो स्वतंत्रता आंदोलन के मुख्य केंद्रों में से एक रहा है, को मूलरूप से सत्याग्रह आश्रम कहा जाता था। महात्मा गांधी ने 1917 और 1930 के बीच अपने जीवन के 15 वर्ष बिताए और फिर दांडी के ऐतिहासिक नमक मार्च के लिए रवाना हुए।
2019 में, महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि आश्रम के मूल शांतिपूर्ण वातावरण को संरक्षित करते हुए इसका पुनर्विकास किया जाएगा। इस साल मार्च में, गुजरात सरकार ने मुख्यमंत्री विजय रूपानी की अध्यक्षता में परियोजना की निगरानी के लिए एक गवर्निंग काउंसिल के गठन के लिए एक प्रस्ताव जारी किया और मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव के कैलाशनाथन की अध्यक्षता में एक कार्यकारी परिषद की स्थापना की।
योजना के अनुसार 55 एकड़ क्षेत्र में फैले, पुनर्विकसित आश्रम परिसर में मुख्य आश्रम के भीतर और आसपास 63 विरासत भवनों का संरक्षण शामिल होगा, जो गांधी के समय से आश्रम में मौजूद थे। हालांकि शुरुआती समाचार लेखों में हवाला दिया जा रहा था कि योजना आश्रम को ‘विश्वस्तरीय’ स्मारक बनाने की थी, लेकिन इस योजना से जुड़े एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, कि इस शब्द का अब उपयोग नहीं किया जा रहा है। गांधीवादियों ने विरोध किया था कि आश्रम पहले से ही ‘विश्वस्तरीय’ है।
परियोजना के लिए 1,246 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है। दिप्रिंट द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस राशि में से 490 करोड़ रुपये मुख्य आश्रम को विकसित करने, मरम्मत, पैदल मार्ग डिजाइन करने और आश्रम रोड ट्रैफिक को डायवर्ट करने जैसी चीजों के लिए खर्च किए जाने हैं।
आश्रम परिसर के विकास के लिए 273 करोड़ रुपये, उपग्रह परिसर के विकास के लिए 316 करोड़ रुपये (जैसे शैक्षणिक भवन और आश्रम से जुड़ी कार्यशालाएँ) आवंटित किए गए हैं। बाकी को पुनर्वास और आश्रम क्षेत्र में रहने वालों के मुआवजे पर खर्च किया जाना है। पूरी परियोजना के लिए धनराशि संस्कृति मंत्रालय द्वारा दी जायेगी।
वर्तमान में, हृदय कुंज के अलावा, पांच एकड़ के मुख्य आश्रम क्षेत्र में एक प्रार्थना क्षेत्र शामिल है, विनोबा-मीरा कुटीर- एक छोटी सी झोपड़ी जो विनोबा भावे और गांधी जी की शिष्य मीराबेन के निवास के रूप में जानी जाती है और मगन निवास, महात्मा के भतीजे और शिष्य मगनलाल गांधी का निवास स्थान।
हृदय कुंज के आसपास ऐतिहासिक महत्व की अन्य इमारतें हैं – नंदिनी (जो आश्रम गेस्ट हाउस के रूप में काम करती थी), उद्योग मंदिर (जहां खादी तकनीक विकसित की गई थी) और सोमनाथ छात्रालय। एक संग्रहालय, पुस्तकालय और प्रदर्शनी क्षेत्र, जो अब परिसर का हिस्सा है, वास्तुकार चार्ल्स कोरिया द्वारा बाद में जोड़ा गया था।
दिप्रिंट द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार परियोजना के लिए आश्रम परिसर के भीतर की संरचनाओं को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया है- आश्रम के अनुरूप गतिविधियों वाली इमारतें (जैसे खादी की दुकानें, चरखा गैलरी और बुक स्टॉल), वे सरंचनायें जो मूल आश्रम के अनुरूप हैं लेकिन उनमें गैर-अनुरूप गतिविधियाँ चल रही हैं (उदाहरण के लिए परिसर में बैंक), गैर-समरूप इमारतों वाले लेकिन अम्रूप गतिविधियां (शैक्षिक गतिविधियां, आश्रम के चारों ओर चलाए जा रहे छात्रावास) और गैर-अनुरूप भवनों और गतिविधियों वाले (अनावश्यक अतिक्रमण, निवासी, दुकानें, जिनका कि आश्रम से कोई संबंध नहीं है।) पहली श्रेणी के भवनों को यथावत रखा जाएगा, दूसरे प्रकार के भवनों को भी संरक्षित किया जाएगा, लेकिन गतिविधि को बगल के परिसर में स्थानांतरित कर दिया जाएगा। तीसरी श्रेणी की इमारतों को तोड़ा जाएगा, लेकिन इन भवनों में जो गतिविधियां की जाती थीं, वे मुख्य आश्रम परिसर में ही शिफ्ट की जाएंगी। चौथी श्रेणी के भवनों और गतिविधियों को आश्रम परिसर से बाहर स्थानांतरित किया जाएगा।
योजना में कुछ नए भवनों का निर्माण भी शामिल है, लेकिन आश्रम का प्लान बनाने में जुटी वास्तुकला और डिज़ाइन फर्म एचसीपी डिज़ाइन, प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड के अनुसार, नयी इमारतें एकदम पुरानी इमारतों की तरह और आश्रम के स्वरूप को ध्यान में रखकर ही बनायी जायेंगी।
एचसीपी, आर्किटेक्ट बिमल पटेल की कंपनी है जो सेंट्रल विस्टा परियोजना को भी संभाल रही है और साबरमती रिवरफ्रंट योजना का नेतृत्व भी इसी कंपनी ने किया था। साबरमती आश्रम जीर्णोद्धार परियोजना में आश्रम के परिवेश में सुधार करना भी शामिल है, जिसमें पास के चंद्रभागा नाले का संरक्षण और सीवेज सिस्टम की स्थापना शामिल है।
हालांकि, इस परियोजना को कई गांधीवादियों और इंटेलेक्चुअल्स का समर्थन नहीं मिला है। इस महीने की शुरुआत में, राजमोहन गांधी और रामचंद्र गुहा, फिल्म निर्माता आनंद पटवर्धन, गुजराती साहित्य परिषद के अध्यक्ष प्रकाश शाह सहित 130 लोगों ने ‘गांधीवादी संस्थानों के सरकारी अधिग्रहण’ का विरोध करने के लिए एक खुला पत्र लिखा था।
उन्होंने आरोप लगाया कि गांधी आश्रम को ‘विश्वस्तरीय’ स्मारक बनाने की योजना, ‘आश्रम की पवित्रता से गंभीर रूप से समझौता और तुच्छीकरण करेगी’। उन्होंने सरकार के सभी गांधीवादी अभिलेखागारों पर नियंत्रण करने के ‘भयानक पहलू’ पर भी अपनी चिंता व्यक्त की
योजना का विरोध करने वाली याचिका का नेतृत्व करने वाले प्रकाश एन. शाह ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरी दलील है कि अगर आश्रम परिसर को थीम पार्क की तरह माना जाएगा तो यह गांधी का बहुत बड़ा अपमान है। सरकार की मानसिकता को देखिए- इन्होंने हाल ही में गुजरात के प्रसिद्ध कवि ज़वेरचंद मेघानी की 125वीं जयंती मनाई, और पोस्टर और मंच पर उनकी कोई तस्वीर नहीं थी। उनके लिए, चाहे वह गांधी हों या कोई और, वे उनकी छवि को सुधारने के उपकरण हैं। गांधी ट्रस्टियों को अधिक मुखर होना चाहिए। यह सेंट्रल विस्टा नहीं है, यह गांधी आश्रम है। इस योजना को सार्वजनिक किया जाना चाहिए और इस पर सार्वजनिक बहस और चर्चा होने दें।
हालांकि, योजना की देख रेख कर रहे लोग जोर देकर कहते हैं कि ऐसी कोई भी आशंका अनावश्यक है। प्रिंट से बात करते हुए, कार्यकारी परिषद के प्रमुख और मुख्यमंत्री के मुख्य प्रधान सचिव, के. कैलाशनाथन ने कहा कि आश्रम को तोड़े जाने की कोई भी बात एक मिथक है।
‘ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। हम आश्रम की ऐतिहासिक महत्व की सभी इमारतों और गतिविधियों को जोड़ने के लिए एक समग्र योजना बनाएंगे। हम स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक संग्रहालय शामिल कर सकते हैं, क्योंकि आश्रम दांडी यात्रा सहित ऐसे कई आंदोलनों का जन्म स्थान था।’
एक वीआईपी लाउंज और एक फूड कोर्ट के आश्रम परिसर में निर्माण की अटकलों को खारिज करते हुए एचसीपी के एक सूत्र ने कहा, ‘यहां बुनियादी सुविधाएं होंगी। यदि लोगों की संख्या में वृद्धि होने वाली है, तो पार्किंग सुविधाएं, शौचालय, या शायद पानी और चाय पाने के लिए जगह होना स्वाभाविक है, लेकिन कोई फ़ालतू फ़ूड कोर्ट नहीं बनाया जाएगा।’
जलियांवाला बाग के हाल ही में उद्घाटन परिसर की तस्वीरें, विशेष रूप से पार्क में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर हमला करने के लिए जनरल डायर द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले संकरे मार्ग पर भित्ति चित्र और कलाकृतियों को शामिल होने पर सोशल मीडिया पर हंगामा हुआ था और इसे उदाहरण मानते हुए कई लोगों ने गांधी आश्रम के भविष्य पर चिंता व्यक्त की थी।
‘ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। हम आश्रम के संरक्षण की कोशिश कर रहे हैं, और आजादी से पहले की आश्रम की शांति और मूल्यों को बहाल करने की कोशिश कर रहे हैं,’ कैलाशनाथन ने दि प्रिंट को बताया। ‘आश्रम की ओर जाने वाली सड़क हमेशा यातायात के कारण शोर से भरी रहती है, क्या यह अच्छा नहीं होगा यदि वहां शांति हो, खासकर आश्रम क्षेत्र और हृदय कुंज के आसपास, जहां गांधी जी रहते थे?’ उन्होंने कहा।
‘वर्तमान में, लोग केवल तीन मुख्य संरचनाओं को देखने के लिए आश्रम जाते हैं और यहां 15-20 मिनट से अधिक नहीं बिताते हैं। हमें उनसे पूछना चाहिए कि ‘उन्होंने इतने कम समय में गांधी के बारे में क्या सीखा?’ मैं चाहता हूं कि युवा आश्रम में अधिक समय बिताएं जब वे वहां जाएं और इसका पूरा अनुभव लें, और समझें कि गांधी जी और आश्रम क्या महत्व रखते हैं’, कैलाशनाथन ने कहा।
अक्टूबर 2019 में, पीएम मोदी द्वारा परियोजना की घोषणा के तुरंत बाद, आश्रम परिसर में रहने वाले लोगों ने बेदखल और विस्थापित होने के डर से इस योजना के विरोध में रैली निकाली। वर्तमान आश्रम परिसर 47 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें 263 परिवार मुख्य आश्रम से सड़क के पार या आस पास की कॉलोनियों में रहते हैं। ये उन लोगों के वंशज हैं जिन्हें या तो गांधी द्वारा लाया गया था, या जो आश्रम की गतिविधियों से जुड़े थे। यहां के हर घर में गांधी जी के साथ परिवार के जुड़ाव के बारे में बताने लायक एक एक कहानी है।
एक निवासी कहते हैं, ‘मेरे दादाजी आश्रम के खेतों में पक्षियों को भगाते थे और अन्य कृषि कार्यों में मदद करते थे।’
इनमें से कई परिवारों के सदस्य अब सीधे तौर पर आश्रम की गतिविधियों से नहीं जुड़े हैं, और निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में हैं।
आश्रम के पास ठाकोर वास, जहां गांधी द्वारा आश्रम में लाए गए कई लोगों के वंशज रहते हैं, इन कॉलोनियों के निवासियों को सरकार द्वारा दो विकल्प दिए गए थे, या तो 60 लाख रुपये का एकमुश्त मुआवजा स्वीकार करें या नया मकान, जो एचसीपी का दावा है कि इस योजना के अंतर्गत ही आस पास के क्षेत्र में बनाया जायेगा।
जिला कलेक्टर कार्यालय के अनुसार, 48 परिवारों को पहले ही 40 लाख रुपये की पहली मुआवजा किस्त मिल चुकी है, जबकि नौ परिवारों को पूरी राशि मिल चुकी है। परिवारों को मुआवजे का पहला भाग दिए जाने के एक महीने के भीतर सरकार को संपत्ति सौंपनी है। हालांकि, मुआवजा या मकान दोनों को स्वीकार करने में लोग पूरी तरह से खुश नहीं हैं।
दयाभाई और सूर्यबेन ठाकुर, जो आश्रम कार्यालय में काम करते हैं और मुख्य संग्रहालय से सटे इलाके में रह रहे हैं, ने मुआवजे के बजाय आवास लेने का विकल्प चुना है। उन्होंने बताया कि उन दोनों के दादा महात्मा गांधी द्वारा 1920 के दशक में आश्रम में बसाए गए थे।
‘हमने एक घर मांगा क्योंकि 60 लाख रुपये में, हमें कहीं ऐसा फ्लैट शायद ही मिले जिसमें पर्याप्त धूप या हरियाली हो। हम इस तरह जीना पसंद नहीं करेंगे। अधिकारियों ने हमें आश्वासन दिया है कि वे हमें एक फ्लैट देंगे, देखते हैं क्या होता है।’ सूर्यबेन ने कहा।
वे आश्रम रोड पर स्थित ठाकोर वास में मौजूदा आवास को छोड़ने से खुश नहीं हैं, जहां आश्रम से जुड़े 65 अन्य परिवार वर्तमान में रहते हैं। ‘क्या करें? यह हमारी मजबूरी है … हम यहां पैदा हुए थे, आश्रम में काम करते थे, हमारे पूर्वज यहां बापू के साथ रहते थे, और बापू ने हमें यह घर दिया था,’ सूर्यबेन ने कहा। ‘बापू ही इधर लाए थे, बापू ही निकाल रहे हैं, तो हम जायेंगे।’
60 लाख रुपये के एकमुश्त मुआवजे के बारे में कुछ लोगों में असंतोष है – ‘क्या यह अनुचित नहीं है कि सभी को 60 लाख रुपये दिए जा रहे हैं, चाहे उनका घर कितना भी बड़ा या छोटा हो,’ एक निवासी ने पूछा। मुआवजा स्वीकार करने का निर्णय या वादा किए गए घरों में निवास इस तथ्य से भी जुड़ा है कि अधिकांश परिवारों के पास उन घरों के स्वामित्व का प्रमाण नहीं है, जिनमें वे रहते हैं, वे बस पीढ़ियों से वहां रहते हैं।
‘अब जब परियोजना तय हो गई है, आप सहमत हैं या नहीं, उससे फर्क नहीं पड़ता। सरकार से लड़ने का कोई फायदा नहीं। यहां रहने वाले ज़्यादातर लोगों के पास ये घर नहीं हैं या उनके पास कोई दस्तावेज नहीं हैं। तो यह उनके लिए अपने नाम पर अपना घर पाने का एक अवसर है, जो उनके भविष्य को सुरक्षित करेगा’, एक निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा। उन्होंने कहा, ‘पर हम सभी का भावनात्मक लगाव ज़रूर है… मेरे दादा और दादी गांधी जी के साथ आए और आश्रम बनाने में मदद की। जहां मेरे दादाजी ने हृदय कुंज के निर्माण में मदद की, वहीं मेरी दादी कस्तूरबा गांधी के साथ रसोई में काम करती थीं’।
हालांकि, हर कोई बिना लड़े हार मानने को तैयार नहीं है। मुदिता विद्रोही, एक सामाजिक कार्यकर्ता, जो आश्रम में पली-बढ़ीं और जिनके माता-पिता अभी भी इस क्षेत्र में रहते हैं, ने कहा कि अगर गांधी जीवित होते, तो इस परियोजना को मंजूरी नहीं मिलती।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘यहां, एक राजनीतिक दल जो गांधी की हत्या करने वाली विचारधारा से संबंधित है, और जब नाथूराम गोडसे की पूजा की जाती है, तो वह कुछ नहीं कहता, यह सब कर रहा है।’ ‘मुझे डर है कि वे गांधी को इस देश की सामूहिक स्मृति से हटाना चाहते हैं। आप आश्रम में आने वाले किसी भी व्यक्ति से पूछें और वे आपको बताएंगे कि गांधी जिस सादगी के साथ रहते थे, उससे वे कैसे प्रेरित होते हैं, कैसे विश्व के नेता आते हैं और ज़मीन पर बैठते हैं, जिस तरह गांधी रहा करते थे,’ विद्रोही ने कहा।
‘आश्रम को ‘विश्वस्तरीय स्मारक’ बनाने की आवश्यकता नहीं है – यह पहले से ही विश्वस्तरीय है और लोग इससे प्रेरणा लेते हैं। और लिखित में (सरकार द्वारा) कुछ भी वादा नहीं किया जा रहा है, वे केवल मौखिक रूप से बातें कह रहे हैं । हमें उन पर विश्वास क्यों करना चाहिए,’ विद्रोही ने पूछा। सरकारी प्रस्ताव के साथ नाराज़गी गांधी के परपोते तुषार गाँधी ने भी व्यक्त की। ‘1200 करोड़ रुपये से अधिक के बजट का भव्य आवंटन एक परेशान करने वाला कारक है, वो भी एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो इतने मितव्ययी और सादगी भरे तरीके से रहता था– साबरमती आश्रम उस मितव्ययिता का उदाहरण है। अगर सरकार अपने इरादे में ईमानदार है, तो जनता दरबार क्यों नहीं रखती है और साफ़ साफ़ बताती कि ये योजनाएं हैं जिन्हें हम लागू करने का इरादा रखते हैं और हम इसे लोगों की सहमति से करने की योजना बना रहे हैं।’
‘हमने देखा कि उन्होंने स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (2018 में बनी गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा) के साथ क्या किया। मूर्ति की ऊंचाई, वाटरपार्क, बटरफ्लाई पार्क आदि खुद पटेल से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो गए। क्या साबरमती आश्रम के साथ भी ऐसी चीजें होने वाली हैं?’ तुषार गांधी ने पूछा।
‘अगर ऐसा इरादा है, तो इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। मैं इस स्थिति पर आश्रम ट्रस्ट से डेढ़ साल से अधिक समय से बात कर रहा हूं, और मुझे हमेशा कहा जाता था, ‘हमें नहीं पता कुछ भी’। और अब अचानक वे व्यवहार कर रहे हैं कि वे सब कुछ जानते थे और वे हर समय सूचित किए गए थे।
गांधी ने कहा, ‘हम सवाल उठा रहे हैं क्योंकि हमें अंधेरे में रखा गया है। यहां मुद्दा पारदर्शिता की कमी और अनावश्यक खर्च है। अगर बापू जीवित होते, तो हम इसके ख़िलाफ़ भूख हड़ताल पर चले जाते,’ गांधी ने कहा।
अपव्यय के आरोपों को खारिज करते हुए, एचसीपी के एक सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘1,200 करोड़ रुपये का बजट बड़ा दिखता है क्योंकि लोग आश्रम को केवल संग्रहालय और हृदय कुंज के पांच एकड़ के परिसर के रूप में देखते हैं। लेकिन यह काम 55 एकड़ के साथ-साथ आसपास के इलाकों में भी फैलने वाला है।’ आश्रम के ट्रस्टी भी आश्वस्त करते हैं कि डरने की कोई जरूरत नहीं है।
‘कुछ चीजों पर अभी काम नहीं हुआ है, इसलिए आशंकाएं हैं, जो बहुत से लोगों में है। योजना पर काम करने के बाद ये हल हो जाएंगे’, कार्तिकेय साराभाई, ट्रस्टी, साबरमती आश्रम संरक्षण और स्मारक ट्रस्ट (एसएपीएमटी) ने दिप्रिंट को बताया।
‘लोगों को एक बड़ी आशंका यह है कि हम इसे गांधी थीम पार्क बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सरकार भी बहुत स्पष्ट है कि यह एक ग्रीनफील्ड परियोजना नहीं है, यह एक ऐसी जगह है जहां कुछ बहुत ऐतिहासिक हुआ है। आश्रम के आसपास कुछ चीजों को बदलने की ज़रूरत पर पहले से सामूहिक सहमति है, लेकिन इसे वास्तविकता में कैसे लागू किया जाए, यह कुछ ऐसा है जिसे सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता है। और यह संवाद कई महीनों तक चलेगा।’
आश्रम के निदेशक अतुल पंड्या ने भी कहा कि कुछ बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने और आश्रम रोड के यातायात को डायवर्ट करने की योजना कुछ समय पहले से ही चल रही थी।
‘ट्रस्ट की स्वायत्तता के संबंध में हितधारकों के बीच, कल्याणकारी समुदाय के बीच चर्चा महत्वपूर्ण है और चल रही है। उनकी चिंता सही है, लेकिन अल्ट्रा-मॉडर्न या विश्वस्तरीय कुछ भी बनाने के लिए ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। बुनियादी ढांचे को तोड़ा नहीं जाएगा। जो भी यहां आते हैं, भक्ति की भावना के साथ आते हैं, वे पांच सितारा सुविधा के लिए नहीं आते हैं,’ उन्होंने दिप्रिंट को बताया।
इस बीच, आश्रम के एक अन्य ट्रस्टी ने कुछ चीजों को बदलने की जरूरत पर सहमति जताते हुए दिप्रिंट को बताया कि उन्हें लगा कि यह प्रक्रिया अधिक सहभागितापूर्ण और लोकतांत्रिक होनी चाहिए।
‘व्यक्तिगत रूप से, मैं कहूँगा कि हम चाहते हैं कि आश्रम रोड, जो एक व्यस्त, व्यावसायिक सड़क बन गई है, को लंबे समय से डायवर्ट करने का विचार हमारे मन में था। हमें आसपास के वातावरण को कॉमर्शियलाइज नहीं होने देना चाहिए था। यहाँ ‘हम’ सिर्फ छह ट्रस्टों की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि नागरिक ज़िम्मेदारी भी है। हम आश्रम के आस-पास के शांतिपूर्ण वातावरण को बनाए नहीं रख सके। हालांकि, एक बात जो दुख देती है, वह यह है कि इस योजना की शुरुआत से ट्रस्ट और अन्य हितधारक इसमें शामिल नहीं थे,’ ट्रस्टी सुदर्शन अयंगर ने कहा।
‘यह (परियोजना प्रस्ताव) एक सहभागी, सहयोगी प्रक्रिया होनी चाहिए थी। अब हमने (न्यासियों ने) बताया है कि हमारी कुछ शर्तें हैं – हमें ‘विश्वस्तरीय’, ‘पर्यटक’ जैसे शब्दों के उपयोग में समस्या है। हम उन्हें ट्रस्टों की स्वायत्तता बनाए रखने के लिए भी कह रहे हैं। अगर सरकार हमारी कुछ शर्तों को स्वीकार नहीं करती है या ऐसे बदलाव करती है जो हमें स्वीकार्य नहीं है, तो हम एक सत्याग्रह भी कर सकते हैं। हमने अभी तक सरकार को यह नहीं कहा है, लेकिन यह एक विकल्प है,’ अयंगर ने दिप्रिंट को बताया।
दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी द्वारा भारत में स्थापित पहला आश्रम 1915 में बने साबरमती आश्रम से लगभग छह किमी दूर कोचरब में था, हालांकि, गांधीजी द्वारा लागू की जाने वाली कुछ चीजों, खादी बुनाई, हरिजन सेवा आदि के लिए वो जगह छोटी थी इस प्रकार साबरमती के तट पर नए आश्रम का गठन किया गया था।
यहीं उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी थी। नमक मार्च शुरू करने से पहले, गांधी ने स्वराज (स्वतंत्रता) प्राप्त करने से पहले आश्रम में नहीं लौटने का वादा किया था। 1933 में आश्रम को भंग कर दिया गया था, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद, उनके सहयोगियों और अनुयायियों ने आश्रम की इमारतों और अभिलेखीय संपत्ति की रक्षा के लिए साबरमती आश्रम संरक्षण और स्मारक ट्रस्ट (एसएपीएमटी) का गठन किया।
वर्तमान में आश्रम से जुड़े छह स्वायत्त ट्रस्ट हैं – एसएपीएमटी, साबरमती आश्रम गौशाला ट्रस्ट, हरिजन आश्रम ट्रस्ट, हरिजन सेवक संघ, गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल और खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति।
(दि प्रिंट से साभार)
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