गुजरात चुनाव की तारीखों का चुनाव आयोग ने गुरुवार 3 नवंबर को ऐलान तो कर दिया, लेकिन उसे साथ में सफाई भी देना पड़ रही है। उसके तर्क राजनीतिक दलों को उतर नहीं रहे हैं। प्रधानमंत्री 1 नवंबर तक गुजरात के दौरे पर थे और धड़ाधड़ कई कार्यक्रम कर डाले। कई फ्रीबीज भी गुजरात को दी गईं। धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए कॉमन सिविल कोड लाने तक ऐलान भी गुजरात में किया गया। दो जिलों में पाकिस्तान, बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिन्दुओं को नागरिकता देने का ऐलान भी कर दिया गया। इस दौरान मोरबी हादसा भी हुआ। पीएम मोदी जब मोरबी में शोक जताकर चले गए।
मात्र एक दिन के अंतराल के बाद उसने चुनाव की तारीखों का ऐलान किया, जबकि हिमाचल की तारीखों का ऐलान अक्टूबर अंतिम सप्ताह में किया गया था। अब तथ्य देखिए, हिमाचल की तारीखों का ऐलान पहले हुए लेकिन उसके नतीजे गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों के साथ आएंगे। चुनाव आयोग के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि ऐसे क्या कारण थे कि तारीखों का ऐलान बाद में किया गया।
बहरहाल, 1 और 5 दिसंबर को गुजरात चुनाव की घोषणा करते हुए, चुनाव आयोग ने किसी भी "पूर्वाग्रह" या किसी भी जानबूझकर देरी से इनकार किया।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि गुजरात चुनाव की तारीखें तय समय के भीतर हैं। दोनों राज्यों के लिए तारीखों की घोषणा में दो सप्ताह के अंतराल के बावजूद गुजरात में वोटों की गिनती उसी दिन होगी जब हिमाचल प्रदेश में वोटों की गिनती होगी।
उन्होंने कहा, चुनाव आयोग की निष्पक्षता एक गौरवशाली विरासत है। हम 100 फीसदी निष्पक्ष हैं।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर पिछले महीने हिमाचल प्रदेश के साथ तारीखों की घोषणा नहीं करने का आरोप लगाया है ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आदर्श आचार संहिता लागू होने से पहले गुजरात में अपना अभियान खत्म करने के लिए मौका दिया जा सके।
गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 18 फरवरी को और हिमाचल प्रदेश का 8 जनवरी को समाप्त हो रहा है। दोनों राज्यों में बीजेपी सत्ता में है।
घोषणा से पहले, कांग्रेस ने एक ट्वीट के साथ चुनाव आयोग की खिंचाई की थी, जिसमें पक्षपात का आरोप लगाया गया था। इसके जवाब में चुनाव आयोग ने कहा कि कुछ नेगेटिव माहौल बनाने की कोशिश करते हैं ... लेकिन कार्रवाई और परिणाम शब्दों से अधिक जोर से बोलते हैं। कई बार, आयोग की आलोचना करने वाले दलों को चुनावों में आश्चर्यजनक परिणाम मिले हैं। इस मामले में कोई तीसरा अंपायर नहीं है लेकिन परिणाम गवाही हैं।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा कि गुजरात में आदर्श आचार संहिता 38 दिनों के लिए लागू होगी, जो कि सबसे कम दिनों में से एक है। यह दिल्ली चुनाव जैसा ही है। देरी के आरोपों पर उन्होंने कहा: गुजरात विधानसभा का कार्यकाल 18 फरवरी तक है, इसलिए अभी भी समय है। मतगणना के दिन और गुजरात विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के बीच 72 दिन का अंतर है।
उन्होंने कहा: चुनाव की तारीखें तय करते समय कई बातों का ध्यान रखा जाता है। जिसमें मौसम, विधानसभा के अंतिम कार्यकाल की तारीख मुख्य है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश की परंपरा रही है कि वहां एकसाथ चुनाव होते हैं और एकसाथ नतीजे आते हैं। हमें बहुत सी चीजों को संतुलित करना होगा। हम समय के भीतर ठीक हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या आने वाले समय में मोरबी पुल त्रासदी की घोषणाएं चुनाव आचार संहिता के साथ टकरा सकती हैं, राजीव कुमार ने कहा: यदि ऐसा हुआ तो चुनाव आयोग कार्रवाई करेगा। हालांकि चुनाव तारीखों के ऐलान में देरी की वजह मोरबी हादसे को भी बताया। बहरहाल, इस सवाल का जवाब अंत तक नहीं आया कि जब हिमाचल और गुजरात में वोटों की गिनती एकसाथ होगी तो फिर तारीखों की घोषणा अलग-अलग समय पर क्यों की गई। क्या इसकी आड़ में पीएम मोदी का गुजरात दौरा खत्म होने का इंतजार किया गया।
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