(यूँ तो यह आलेख सौ प्रतिशत सच्ची घटनाओं पर आधारित है लेकिन आज की युवा पीढ़ी इसे पढ़ेगी तो उसे यह कपोलकल्पित इसलिए लगेगा क्योंकि उसके इर्दगिर्द ऐसा कोई परिवेश नहीं है। शिक्षकों के बतौर अपने चारों ओर वह जिनसे घिरा है वह ऐसा 'गिरोह' है जो शिक्षा देने के अलावा बाक़ी सारे धंधों में मशग़ूल हैं। यह ज़्यादा पुरानी बात नहीं जब प्रत्येक छोटे-बड़े शहर और क़स्बे के हर विद्यार्थी के जीवन में एक न एक आरपी तिवारी होते थे जो उसकी सोच और व्यक्तित्व को सँवारने में विशेष और निःस्वार्थ भूमिका अदा करते। क्यों आज ऐसे शिक्षकों का अकाल है?)