बिहार में चुनाव नतीजे आने के बाद नीतीश सरकार ने शपथ भी ले ली। लेकिन चार दिन के भीतर ही शिक्षा मंत्री मेवालाल चौधरी को इस्तीफ़ा देना पड़ गया। मेवालाल जेडीयू के नेता हैं न कि बीजेपी के। ऐसे में ये माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को बीजेपी के दबाव में यह फ़ैसला लेना पड़ा है क्योंकि अगर मेवालाल को हटाना ही होता तो नीतीश उन्हें जेडीयू के कोटे से मंत्री क्यों बनाते और आरजेडी का कोई ऐसा प्रेशर नहीं है जो नीतीश को अपने मंत्री को हटाने के लिए मजबूर कर सके।
मेवालाल चौधरी पर भागलपुर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर और कनिष्ठ वैज्ञानिकों की नियुक्ति में घपले सहित अपनी पत्नी नीरा चौधरी की मौत को लेकर भी गंभीर आरोप हैं।
पटना से लेकर दिल्ली तक यह चर्चा जोरों पर है कि नीतीश के लिए इस बार सरकार चलाना आसान नहीं होगा। इसकी वजह साफ है कि बीजेपी इस बार बड़ा दल तो है ही, नीतीश के जोड़ीदार सुशील कुमार मोदी को भी उसने हटाकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं।
इसके अलावा बीजेपी ने एक के बजाए दो लोगों को उप मुख्यमंत्री बनवाया है और दोनों खांटी संघी हैं। ऐसे में सेक्युलर मिजाज वाले नीतीश को साफ मैसेज दे दिया गया है कि उन्हें किस तरह के माहौल में काम करना है।
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बहरहाल, यह साफ है कि मेवालाल का इस्तीफ़ा बीजेपी के जबरदस्त दबाव में हुआ है। क्योंकि सरकार बनने के तीन-चार के अंदर अपने मंत्री को हटाकर नीतीश अपनी किरकिरी क्यों करवाना चाहेंगे, वे क्यों चाहेंगे कि आरजेडी और चिराग पासवान को उन पर हमलावर होने का एक और मौक़ा मिले।
बिहार में इस बात की भी चर्चा जोरों पर है कि बंगाल के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी कांग्रेस और जेडीयू के विधायक दल में जोरदार सर्जिकल स्ट्राइक कर सकती है। क्योंकि वह राज्य में अपने नेता को मुख्यमंत्री देखना चाहती है।
यहां इस बात पर भी ध्यान देना ज़रूरी है कि भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद मेवालाल को जेडीयू से निकाला गया था तो पार्टी में उनकी वापसी भी और उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट मिलना भी बिना नीतीश कुमार की मर्जी के संभव नहीं हो सकता। इसके बाद कैबिनेट के चयन में जेडीयू कोटे से पहली बार में मेवालाल का शामिल होना भी नीतीश कुमार के बिना संभव नहीं है क्योंकि नीतीश ही पार्टी के मुखिया हैं। फिर ऐसा क्या कारण रहा कि नीतीश को मेवालाल का इस्तीफ़ा लेना पड़ा।
नीतीश आख़िर क्यों अपने ऐसे नेता का इस्तीफ़ा लेना चाहेंगे जिसे उन्होंने मंत्री बनाया है। जाहिर है कि यह बीजेपी का ही दबाव है, जिस कारण वह मजबूर हुए हैं। अब यह शीशे की तरह साफ हो चुका है कि नीतीश के लिए आने वाले 5 साल कांटों भरे होंगे।
चुनाव नतीजे आने के बाद यह चर्चा जोर-शोर से उठी थी और नीतीश ने इसे स्वीकार भी किया था कि वह इस बार मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते। लेकिन बीजेपी को डर था कि आरजेडी उन्हें समर्थन देकर मुख्यमंत्री बना सकती है, इसलिए मोदी से लेकर अमित शाह तक उन्हें मनाने में जुट गए।
विचारधारा का जबरदस्त टकराव
वैसे भी बीजेपी और जेडीयू के बीच विचारधारा का जबरदस्त टकराव है। राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक़, सीएए-एनआरसी को लेकर जेडीयू का रूख़ बीजेपी से पूरी तरह अलग है। बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे पर तेजी से आगे बढ़ रही है और ऐसे में पार्टी के बेहद ख़राब प्रदर्शन से परेशान नीतीश उसके साथ कब तक रह पाएंगे, यह सवाल बिहार में उस दिन तक पूछा जाएगा जब तक वे बीजेपी से अलग नहीं हो जाते।
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