जेडीयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि उनके एनडीए में लौटने का कोई सवाल ही नहीं है। बताना होगा कि बिहार की सियासत में इस तरह की चर्चा तेज है कि उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी के शीर्ष नेताओं के संपर्क में हैं और वह जेडीयू से किनारा कर सकते हैं।
लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा कि इस तरह की बातों में कोई सच्चाई नहीं है और यह बीजेपी की साजिश है। उन्होंने कहा कि ऐसा उनकी छवि को खराब करने और लोगों को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि बीजेपी समाज में धर्म के नाम पर तनाव पैदा कर रही है और सामाजिक न्याय के प्रति उसका कोई आदर नहीं है।
कुशवाहा ने कहा कि ऐसी पार्टी के साथ क्या जाना, जाने की बात सोचना भी अपराध है।
कुशवाहा के बीजेपी नेताओं के संपर्क में होने और एनडीए में वापस जाने की चर्चाओं ने तब जोर पकड़ा था जब उन्होंने कहा था कि बिहार में शराबबंदी कामयाब नहीं है और यह आम लोगों के सहयोग के बिना कामयाब नहीं हो सकती।
इसके अलावा राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता श्रवण कुमार अग्रवाल ने कहा था कि कुशवाहा एनडीए नेताओं के संपर्क में हैं जबकि बिहार बीजेपी के प्रवक्ता निखिल आनंद ने भी दावा किया था कि जेडीयू के कुछ नेता बीजेपी से बातचीत कर रहे हैं। बिहार की सियासत में एक खबर यह भी है कि उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कैबिनेट में जगह न मिलने की वजह से नाराज हैं। लेकिन कुशवाहा ने इस तरह की तमाम खबरों को खारिज कर दिया है।
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नीतीश के पुराने सहयोगी हैं कुशवाहा
लंबे वक़्त तक नीतीश कुमार के साथ राजनीति करने के बाद उपेंद्र कुशवाहा 2013 में उनसे अलग हो गए थे। उपेंद्र कुशवाहा एक वक्त में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ही साथ थे। लेकिन मार्च 2013 में उन्होंने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) का गठन किया था और 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार में तीन सीटें जीती थीं। उसके बाद वे मोदी सरकार में मंत्री भी रहे लेकिन 2019 में सीट बंटवारे से नाख़ुश होकर उन्होंने एनडीए छोड़ दिया था। इसके बाद उन्होंने यूपीए के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन उनकी पार्टी को कोई सीट नहीं मिली थी।
2020 के विधानसभा चुनाव में कुशवाहा ने कुछ छोटे दलों के साथ मिलकर ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट बनाया था। इस फ्रंट में बीएसपी, एआईएमआईएम सहित कुछ और दल शामिल थे। कुशवाहा इस फ्रंट की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे।
मार्च 2021 में उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी आरएलएसपी का जेडीयू में विलय कर दिया था। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को विधान परिषद का सदस्य बनाने के साथ ही जेडीयू के संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया था।
नीतीश कुमार के राजनीतिक सहयोग के चलते ही बिहार की राजनीति में लगभग हाशिए पर जा चुके उपेंद्र कुशवाहा को राजनीतिक संजीवनी मिली थी।
बिहार में कुर्मी, कोईरी और कुशवाहा का जातीय समीकरण नीतीश की ताकत रहा है और 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के खराब प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने अपने पुराने साथियों को जोड़ने का काम शुरू किया था और इसीलिए उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा को जेडीयू में लाकर उन्हें सम्मानजनक पद दिया था। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 74 जबकि जेडीयू को सिर्फ 43 सीटें ही मिली थी।
कुछ महीने पहले ही नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था और वह महागठबंधन के साथ आ गए थे।
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