अरुणाचल में जेडीयू के छह विधायकों के बीजेपी में शामिल होने के बाद से बिहार का राजनीतिक माहौल गर्म है। कहा जा रहा है कि बीजेपी नीतीश कुमार को लंबे वक़्त तक मुख्यमंत्री नहीं बने रहने देगी। जेडीयू में भी खलबली जोरों पर है और पार्टी ने अरुणाचल की घटना को गठबंधन धर्म के ख़िलाफ़ बताया है। कुल मिलाकर बीजेपी-जेडीयू के रिश्तों को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
अनिश्चितता के इस माहौल के बीच राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा है कि नीतीश कुमार को महागठबंधन से बाहर आना चाहिए, तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए और केंद्र की राजनीति करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नीतीश को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष का नेता बनना चाहिए और सभी दल उन्हें समर्थन दे देंगे।
हालांकि तेजस्वी यादव ने इसे चौधरी का निजी बयान बताया है और कहा है कि नीतीश को क्या करना है और क्या नहीं, यह वे खुद ही तय करें।
राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोरों पर है कि बीजेपी नीतीश को दबाव में रखना चाहती है। बीजेपी ने सबसे पहले नीतीश के सबसे प्रबल समर्थक माने जाने वाले सुशील मोदी को दिल्ली भेज दिया, संघ की पृष्ठभूमि से आने वाले दो लोगों को डिप्टी सीएम बना दिया और फिर जेडीयू के कोटे से मंत्री मेवालाल चौधरी का इस्तीफ़ा लेने को नीतीश को मजबूर कर दिया।
इसके अलावा लव जिहाद के लिए क़ानून बनाने को लेकर बीजेपी के नेता नीतीश कुमार पर दबाव बनाते रहते हैं। बीजेपी और जेडीयू के बीच विचारधारा को लेकर भी जबरदस्त टकराव है।
बिहार के राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि बंगाल चुनाव के बाद जेडीयू में भारी राजनीतिक उथल-पुथल होगी और कांग्रेस के विधायकों को तोड़कर बीजेपी राज्य में अपना मुख्यमंत्री बनाएगी।

इस बीच, नीतीश कुमार का वह बयान भी चर्चा में है जिसमें उन्होंने कहा है कि वह मुख्यमंत्री नहीं बने रहना चाहते। इस बात का बीजेपी के बड़े नेता सुशील कुमार मोदी ने भी समर्थन किया है और कहा है कि नीतीश मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे लेकिन एनडीए चाहता था कि वे इस पद पर फिर से बैठें क्योंकि हमने उन्हें एनडीए के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट किया था।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘अगर आप जेडीयू में किसी से पूछेंगे तो वे आपको बताएंगे कि एलजेपी मुखिया चिराग पासवान बीजेपी के प्रतिनिधि थे और उनकी वजह से हम कई सीटों पर चुनाव हारे।’ इस नेता ने आगे कहा कि अरुणाचल की घटना के बाद विश्वास और घटा है, हालांकि सरकार को कोई ख़तरा नहीं है लेकिन सब कुछ ठीक नहीं है।
बिहार की सियासत में जो मौजूदा हालात हैं, उसमें बीजेपी और जेडीयू दोनों अपना जोर दिखाना चाहते हैं। बीजेपी की सीटें ज़्यादा हैं, इसलिए वह सरकार में अपना ज़्यादा अधिकार समझती है जबकि जेडीयू का कहना है कि एनडीए को वोट नीतीश के चेहरे पर मिला है और उसके ख़राब प्रदर्शन के लिए चिराग पासवान जिम्मेदार हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार में मुश्किल
नीतीश कुमार के लिए मंत्रिमंडल विस्तार भी एक सिरदर्द बना हुआ है जो सरकार गठन के लगभग डेढ़ माह बीत जाने के बावजूद नहीं हो पाया है। कहा जा रहा है कि बीजेपी गृह मंत्रालय की भी मांग कर रही है लेकिन नीतीश इसके लिए तैयार नहीं हैं।
कहा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में बीजेपी चिराग पासवान को उनके पिता की जगह मंत्री पद देगी। लेकिन नीतीश को यह नागवार गुजरेगा कि उनके चुनावी नुक़सान के लिए जिम्मेदार शख़्स को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया जाए। मुसीबत बीजेपी के लिए भी कम नहीं है।
कुल मिलाकर देखना होगा कि बीजेपी-जेडीयू के गठबंधन में कौन कितना दबाव बर्दाश्त कर पाता है। जेडीयू जानती है कि पिछले छह सालों में ऑपरेशन लोटस के कारण विपक्षी दलों की सरकारें गिरी हैं और बीजेपी की नज़र बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है। ऐसे में नीतीश कुमार के लिए संघ से आने वाले दो डिप्टी सीएम के साथ सेक्युलर एजेंडे पर सरकार चलाना बेहद कठिन काम है।
अपनी राय बतायें