राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) में क्या सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। क्या लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पार्टी के भीतर और ख़ुद लालू परिवार में सत्ता संघर्ष तेज हो गया है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि शनिवार को होने वाली आरजेडी की विधायक दल की बैठक को रद्द कर दिया गया। बताया जाता है कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव इस बैठक में शामिल नहीं हो रहे थे। और यह सब तब हुआ है जब तेजस्वी की माँ और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इस बात का भरोसा दिया था कि तेजस्वी बैठक में भाग लेंगे। हालाँकि पार्टी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि कुछ ज़रूरी कारणों से पार्टी की बैठक को रद्द किया गया है।
ऐसा दूसरी बार हुआ है जब तेजस्वी ने पार्टी की बैठक से किनारा किया है। इस महीने की शुरुआत में भी तेजस्वी ने पार्टी के सदस्यता अभियान से किनारा कर लिया था। विधानसभा सत्र के दौरान भी वह ज़्यादातर समय सदन से अनुपस्थित रहे थे। तेजस्वी के आरजेडी की बैठक से दूर रहने के बाद राज्य के लिए बने महागठबंधन में उसकी सहयोगी कांग्रेस ने भी नाख़ुशी ज़ाहिर की है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रेम चंद्र मिश्रा ने कहा कि तेजस्वी का अनुपस्थित होना वैसे तो आरजेडी का आतंरिक मामला है लेकिन विपक्ष के नेता होने के नाते उन्हें सक्रिय रहना चाहिए।
लोकसभा चुनाव के बाद से यह देखा जा रहा है कि तेजस्वी यादव राजनीतिक परिदृश्य से पूरी तरह ग़ायब हैं। इसे लेकर सवाल भी उठे थे कि आख़िर तेजस्वी कहाँ हैं। लोकसभा चुनाव से पहले जनहित के मुद्दों पर लगातार मोदी सरकार को घेरने वाले तेजस्वी सोशल मीडिया पर ख़ासे सक्रिय रहते थे लेकिन चुनाव के बाद उनकी यह सक्रियता पहले जैसी नहीं रह गई है।
तेजस्वी के इस तरह के रुख के बाद आरजेडी नेताओं का एक धड़ा बेहद चिंतित है। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी ख़बर के मुताबिक़, आरजेडी के एक सूत्र ने कहा, ‘तेजस्वी पार्टी पर पूरा नियंत्रण चाहते हैं लेकिन उन्हें ऐसा नहीं करने दिया जा रहा है। तेजस्वी अपने बड़े भाई तेज प्रताप यादव के बार-बार विवादों में पड़ने की वजह से ख़ुश नहीं हैं। इसके अलावा वह पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं से भी नाख़ुश हैं और लोकसभा चुनाव में हुई पार्टी की हार के लिए उन्हें दोषी ठहरा रहे हैं। तेजस्वी चाहते हैं कि उनके पार्टी की कमान को संभालने से पहले उनके परिवार को कुछ चीज़ों को दुरुस्त करना चाहिए।’
तेज प्रताप ने बनाई थी पार्टी
बता दें कि लालू परिवार में चल रही अनबन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तब खुलकर सामने आ गई थी जब तेज प्रताप यादव ने नई पार्टी बनाने का एलान कर दिया था। तेज प्रताप ने इसका नाम लालू-राबड़ी मोर्चा रखा था। तब एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में तेज प्रताप ने कहा था कि पार्टी पर कुछ लोगों ने क़ब्जा जमा लिया है। उस समय यह बात सामने आई थी कि बिहार में लोकसभा सीटों के बँटवारे को लेकर तेज प्रताप यादव राष्ट्रीय जनता दल और अपने परिवार से नाराज हैं।
तेज प्रताप अपने वैवाहिक जीवन को लेकर भी ख़ासे विवादों में रहे हैं। उन्होंने अदालत में तलाक़ की अर्ज़ी दे दी थी और जब उन्हें इस मुद्दे पर परिवार का साथ नहीं मिला था तो वह घर छोड़कर चले गए थे।
तेज प्रताप अपनी माँ राबड़ी देबी के क़रीब माने जाते हैं, जबकि छोटे बेटे तेजस्वी के सिर पर पिता लालू यादव का आशीर्वाद है। लालू प्रसाद ने जब तेजस्वी को अपना अघोषित उत्तराधिकारी बना दिया था तो उसके बाद से ही तेज प्रताप के सुर बग़ावती हो गए थे।
अख़बार में छपी ख़बर के मुताबिक़, आरजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हालाँकि तेज प्रताप को पार्टी में युवाओं के बीच बहुत ज़्यादा समर्थन हासिल नहीं है लेकिन उनके कामों से पार्टी के लिए मुश्किल पैदा हो सकती है।’
पार्टी का मनोबल गिरा
ख़बर के मुताबिक़, एक आरजेडी नेता ने कहा, ‘लोकसभा चुनाव में मिली घोर पराजय के कारण पार्टी का मनोबल गिरा है। तेजस्वी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को अपने साथ लेकर चलने में और पार्टी के ज़मीनी कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर पाने में सफल नहीं रहे हैं। जिस तरह से वह चुप हैं, वह गठबंधन के लिए भी बेहद ख़तरनाक है। कांग्रेस पहले से ही अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कह रही है।’
बताया जाता है कि राबड़ी देवी ने पार्टी नेताओं की बैठक में पार्टी में किसी तरह की फूट होने की ख़बर को दरकिनार किया है। बैठक में वरिष्ठ आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस बात को लेकर चर्चा की कि लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी), विकासशील इंसान पार्टी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के साथ गठबंधन करके आरजेडी को फ़ायदा नहीं हुआ।
सवाल यह है कि तेजस्वी इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं। बिहार में अगले ही साल विधानसभा के चुनाव होने हैं और लोकसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू और एलजेपी के गठबंधन के सामने महागबठंधन की बुरी हार हुई थी और उसे सिर्फ़ 1 सीट पर जीत मिली थी। ऐसे हालात में तेजस्वी को आगे आकर पार्टी और महागठबंधन का नेतृत्व करना चाहिए लेकिन उनकी अनुपस्थिति और ख़ामोशी बयाँ करती है कि पार्टी के भीतर हालात सामान्य नहीं हैं। पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव जेल में हैं और बाहर यह घमासान मचा हुआ है। ऐसे में पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा का माहौल है।
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