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बिहार: पूर्णिया से निर्दलीय पप्पू यादव की जीत के मायने क्या?

जेडी (यू) और आरजेडी दोनों को झटका देते हुए निर्दलीय उम्मीदवार राजेश रंजन उर्फ ​​पप्पू यादव ने त्रिकोणीय मुकाबले में पूर्णिया सीट जीत ली। उन्होंने पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा को हराया। आरजेडी की बीमा भारती तीसरे स्थान पर रहीं। दिलचस्प बात यह है कि राजेश रंजन कांग्रेस के साथ हैं, लेकिन महागठबंधन के सीट बंटवारे के समझौते के मद्देनजर कांग्रेस ने उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया, जिसके तहत पूर्णिया सीट आरजेडी को दिया गया था।

पूर्णिया से निर्दलीय उम्मीदवार पप्पू यादव को कुल मत 567556 प्राप्त हुए और उन्होंने 23847 वोटों से जीत दर्ज की। दो बार से पूर्णिया के  निर्वतमान सांसद और जदयू नेता संतोष कुशवाहा दूसरे नंबर पर रह गए। राजद के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं रुपौली से पांच बार की विधायक बीमा भारती को महज 27120 वोट मिले और वह तीसरे नंबर पर रह गईं।

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पूर्णिया देश के सबसे चर्चित सीटों में से एक था। हो भी क्यों नहीं! दरअसल, पप्पू यादव पिछले एक सालों से ‘प्रणाम पूर्णिया’ कार्यक्रम चला रहे थे। एक तरह से वे चुनाव लड़ने की तैयारी ही कर रहे थे। इंडिया गठबंधन में जब सीट बंटवारे की सुगबुगाहट तेज हुई तो उन्होंने लालू यादव और तेजस्वी से भी मुलाकात की और उसके अगले ही दिन 20 मार्च को अपनी पार्टी (जन अधिकार पार्टी) का विलय कांग्रेस में कर दिया और खुद भी कांग्रेस में शामिल हो गए। लेकिन उसके कुछ ही दिन बाद महागठबंधन के सीट बंटवारे में पूर्णिया लालू के पाले में चली गई। इसके बाद परिस्थितियाँ बदलीं, क्योंकि कांग्रेस के टिकट पर पूर्णिया से चुनाव लड़ने की उम्मीद से ही पप्पू यादव खुद भी और पार्टी का विलय कांग्रेस में किया था। 

"जान दे दूंगा, लेकिन पूर्णिया नहीं छोडूंगा" इस नारे के साथ पप्पू यादव ने निर्दलीय पर्चा भरा और उन्होंने जीत दर्ज की। राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव कोशी-सीमांचल के एक बड़े नेता के रूप में उभरे हैं। पप्पू यादव बाहुबली नेता रहे हैं, लेकिन हाल के कुछ सालों में उन्होंने लोगों की मदद करके अपनी अलग छवि गढ़ी है। जिसका नतीजा सामने है, पटना की बाढ़ और कोरोना काल में उन्होंने अलग चेहरा लोगों के सामने रखा।

पूर्णिया सीट पर इंडिया गठबंधन की तरफ़ से पप्पू यादव प्रबल दावेदार थे, क्योंकि वे इन इलाकों से पांच बार के सांसद रहे हैं और हाल के कुछ वर्षों में उन्होंने सीमांचल में अच्छी खासी जमीन तैयार कर रखी है, लेकिन आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने जेडीयू छोड़ आरजेडी में आई बीमा भारती को टिकट दे दिया, लालू प्रसाद और तेजस्वी की जिद के आगे कांग्रेस की एक न चली और कांग्रेस को आखिरकार राजद की बीमा भारती को समर्थन देना पड़ा। तेजस्वी यादव लगातार कई दिनों तक पूर्णिया में कैंप कर बीमा भारती को फाईट में लाने का प्रयास किया, बीमा भारती मुकाबले में भी नहीं आ पाईं। 
लड़ाई तो पप्पू यादव और संतोष कुशवाहा के बीच आमने-सामने की थी। पर तेजस्वी यादव की काफी किरकिरी भी हुई, जब तेजस्वी अपनी रैली में यहां तक कहा कि "इंडिया को वोट दीजिए या एनडीए को" इसके अलावा किसी को नहीं!
लोकसभा चुनाव का दायरा विधानसभा से काफी बड़ा होता है, ज्यादातर जगहों पर बिहार में एक लोकसभा में 6 विधानसभाएँ होती हैं। पप्पू यादव ने बिहार की राजनीति के धुरंधर नेताओं को मात देते हुए निर्दलीय के रूप में जीत दर्ज की है। 14 साल बाद कोई निर्दलीय उम्मीदवार बिहार में सांसद का चुनाव जीता है। 2010 में बांका के सांसद दिग्विजय सिंह की मौत के बाद उपचुनाव हुआ, जिसमें दिग्विजय सिंह की पत्नी पुतुल देवी की जीत हुई थी। पप्पू यादव ने विधायकी का पहला चुनाव निर्दलीय ही जीता था।
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कांग्रेस पप्पू यादव का बेहतर इस्तेमाल कर सकती है। पप्पू यादव ने जिस तरह से पूर्णिया के प्रति प्रेम दिखाया, उसके बदले में वहां के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर उन्हें वोट किया। कांग्रेस की राजनीति पर भी इसका असर पड़ सकता है, एक तरफ देखें तो बीजेपी ने काराकाट में पवन सिंह पर कार्रवाई की लेकिन पप्पू यादव पर कांग्रेस ने कोई कार्रवाई नहीं की। लगातार पप्पू यादव कहते रहे कि उन्हें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का प्यार मिल रहा है। कांग्रेस का सॉफ्ट कॉर्नर पप्पू यादव के प्रति दिखता रहा। कांग्रेस पप्पू यादव को महत्वपूर्ण पद देकर बिहार में कांग्रेस को मजबूत कर सकती है, इससे निश्चित ही लालू यादव और राजद की मुश्किलें बढ़ेंगी क्योंकि पप्पू यादव जिस तरह से मज़बूत हुए हैं, वे बिहार की राजनीति में एक अलग कोण बनाते हुए दिखते हैं।

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रंजन यादव
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