बिहार में जाति आधारित गणना पर गुरुवार को पटना हाई कोर्ट द्वारा तीन जुलाई तक रोक लगाने के बाद इस पर राजनीति रुकने के बजाय और तेज़ हो सकती है। जातीय गणना को हिंदुत्व की राजनीति के काट के तौर पर देखा जा रहा है और इसे इतनी आसानी से ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता है।
जातीय गणना के लिए बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित होने के बाद इस पर बिहार कैबिनेट की मुहर लगी थी। इसके लिए 500 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए थे।
इस गणना के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर पटना हाई कोर्ट में बुधवार को सुनवाई पूरी हो गई थी। हाई कोर्ट ने इस प्रक्रिया को रोकने के साथ यह भी कहा है कि इसके तहत अब तक जमा किए गए डेटा को किसी तरह सार्वजनिक ना किया जाए।
ध्यान रहे कि जातियों की गणना का एक चरण पहले पूरा हो चुका था और दूसरे चरण को 15 मई तक पूरा करना था। पहले चरण में परिवार की जानकारी ली गई थी जबकि दूसरे चरण में जातीय और आर्थिक जानकारी जुटाई जा रही थी। इस घटना के मद्देनज़र विभिन्न जातियों के लिए कोड भी जारी किया गया था।
बिहार में लंबी जद्दोजहद के बाद जातीय गणना की शुरुआत हुई थी और उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मामला दर्ज कराया गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट जाने को कहा था जिसका फ़ैसला आज आया है।
पटना हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस न्यायमूर्ति के. विनोद चन्द्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने बुधवार को एक साथ पांच अर्जियों पर सुनवाई की थी।
बिहार में जातीय गणना की शुरुआत सभी दलों की सहमति से हुई थी लेकिन बाद में सरकार से अलग होने के बाद भारतीय जनता पार्टी के सवर्ण नेताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया था।
इस मामले में एक याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार का कहना है कि जातियों की गणना और आर्थिक सर्वे कराने का अधिकार राज्य सरकार के पास नहीं है। उन्होंने इसे असंवैधानिक करार दिया था।
अब हाई कोर्ट को तय करना है कि यह काम राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में है या नहीं। अदालत को यह फ़ैसला भी करना है कि इससे किसी व्यक्ति की निजता का हनन तो नहीं होगा। दूसरी ओर सरकारी वकील का कहना है कि लोग आरक्षण का लाभ लेने के लिए अपनी जाति बताते हैं।
सरकार ने हाई कोर्ट में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि जातियों की गिनती से भविष्य की नीति बनाने में मदद मिलेगी।
हाई कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार पर यह आरोप लगाया है कि सरकार की ग़लतियों की वजह से हाई कोर्ट ने रोक लगाई है।
ऐसा लगता है कि भारतीय जनता पार्टी इस मामले पर महागठबंधन और खासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर दोतरफ़ा हमला करेगी।
भाजपा के सवर्ण नेता हाई कोर्ट के इस फ़ैसले के सहारे नीतीश कुमार के जातीय गणना कराने के फ़ैसले को ग़लत ठहरा सकते हैं तो दूसरी तरफ़ उसके बाकी नेता सरकार की ओर से गंभीरता नहीं दिखाई जाने का आरोप लगाएंगे।
अगर भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को इस मामले में निशाने पर लिया तो उनकी ओर से कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी से सहानुभूति रखने वाले लोगों ने ही हाई कोर्ट में जाकर जातीय गणना के रास्ते में रोड़े अटकाए हैं।
फ़िलहाल, उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा है कि फ़ैसले का अध्ययन करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से विचार-विमर्श किया जाएगा और अगला क़दम उठाया जाएगा। भाकपा माले के सचिव कुणाल ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण फ़ैसला करार दिया है।
आमतौर पर मीडिया में यह बात कही जा रही है कि यह नीतीश कुमार के लिए झटका है। नीतीश कुमार के लिए यह तात्कालिक झटका हो सकता है लेकिन राजनीति के लिए उन्हें यह लंबा अवसर भी दे सकता है। राजनीति इस बात पर भी हो सकती है कि यह अंतरिम फ़ैसला है और अंतिम फ़ैसला आने के बाद भी राजनीति होगी।
पटना हाई कोर्ट से अंतिम आदेश अगर पक्ष में हुआ तब भी राजनीति तेज होगी अगर यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तब भी राजनीति की जाएगी।
जातीय गणना के नतीजे से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 'आबादी के अनुसार हिस्सेदारी' की राजनीति करना चाहते हैं। इसके लिए पहले जातियों की संख्या के आधार पर लोगों की आर्थिक स्थिति के आकलन को ज़रूरी मानते हुए यह जातीय सर्वे कराया जा रहा था।
जातीय गणना की राजनीति करने वाले कह सकते हैं कि वे तो अपनी ओर से प्रयास कर रहे हैं लेकिन इसके विरोधियों ने इसके रास्ते में अड़ंगा डाल दिया है। उनकी ओर से यह भी कहा जा सकता है कि जातीय गणना के बाद आरक्षण को नए सिरे से तय करने के रास्ते में भी इसके विरोधी अड़ंगा डाल रहे हैं।
बीजेपी के सवर्ण नेताओं की दलील है कि जातीय गिनती से समाज में फूट पड़ेगा। हाई कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद वह खुशी जता सकते हैं लेकिन इसमें उनके लिए एक ख़तरा भी है। अगर उन्होंने इस पर ज्यादा आक्रामक बयानबाजी की तो उन्हें पिछड़ा विरोधी घोषित किया जा सकता है।
भाजपा नेताओं पर यह भी आरोप लग सकता है कि उनके ही इशारे पर जातीय गणना के खिलाफ मुकदमेबाज़ी हुई और उसे रोकना पड़ा है।
ऐसे में पटना हाई कोर्ट द्वारा जाति आधारित गणना पर रोक बिहार में अगले कुछ दिनों तक राजनीतिक बयानबाजी का केंद्र बनी रहेगी।
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