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कर्नाटक मॉडल पर बिहार में जाति जनगणना की माँग क्यों?

जाति जनगणना का मुद्दा बिहार में ज़ोर पकड़ रहा है। राज्य के मुख्य विपक्ष राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव जाति जनगणना की माँग तो कर ही रहे हैं, उन्होंने कर्नाटक मॉडल पर 'सामाजिक व शैक्षणिक सर्वेक्षण' का सुझाव दिया है। 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी जाति जनगणना के पक्ष में हैं और उन्होंने कहा है कि केंद्र राजी न हो तो बिहार अपने स्तर पर जाति जनगणना करवा सकता है। उन्होंने यह भी कहा है कि वे इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात करेंगे। 

बिहार की राजनीति में वर्चस्व रखने वाले अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) पर अपनी पकड़ बरक़रार रखने के लिए तेज़स्वी यादव हर हाल में जाति आधारित जनगणना के लिए कर्नाटक मॉडल का सुझाव दे रहे हैं तो मुख्यमंत्री भी इस समुदाय पर अपनी छाप छोड़ने के लिए हर हाल में जाति को शामिल करना चाहते हैं।

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क्या है कर्नाटक मॉडल?

कर्नाटक की राजनीति में सबसे प्रभावशाली जातियाँ वोक्कालिगा और लिंगायत आर्थिक या सामाजिक रूप से पिछड़ी नहीं हैं, बल्कि वे दबंग और वर्चस्व वाली जातियाँ हैं। 

उनके वर्चस्व को तोड़ने की नीयत से कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने 2015 में सामाजिक व शैक्षणिक सर्वेक्षण कराया था। लेकिन लिंगायत व वोक्कालिगा समुदायों की नाराज़गी से बचने के लिए इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट को अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।

Nitish kumar, tejaswi yadav back caste census of karnataka model  - Satya Hindi
सिद्धारमैया, पूर्व मुख्यमंत्री, कर्नाटक

मोस्ट बैकवर्ड क्लासेस विजिलेंट फ़ोरम अब दबाव बना रहा है कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए। दो साल बाद होने वाले विधानभा चुनाव के मद्देनज़र यह रिपोर्ट अब बेहद अहम हो चुकी है और इसके राजनीतिक निहितार्थ हैं। 

फ़ोरम के अध्यक्ष एम. सी. वेणुगोपाल का कहना है कि ओबीसी आरक्षण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, इसलिए जाति जनगणना होनी ही चाहिए। 

समझा जाता है कि कर्नाटक में 36 जातियाँ हैं जो सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ी हैं और उन्हें इस रिपोर्ट के सार्वजनिक किेए जाने का इंतजार है ताकि वे इस आधार पर आरक्षण की माँग कर सकें।

बिहार में कर्नाटक मॉडल क्यों?

बिहार में जब तेजस्वी यादव कर्नाटक मॉडल की बात करते हैं तो उनका मक़सद यह है कि सामाजिक व शैक्षणिक सर्वेक्षण में कुछ जातियाँ दूसरों की तुलना में अधिक कमज़ोर चिह्नित होंगी।

इसके अलावा ओबीसी समुदाय की जातियों के बारे में मुक़म्मल तसवीर सामने आएगी और वे इस आधार पर नए सिरे से आरक्षण की माँग कर सकते हैं।

राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड दोनों का ही मानना है कि इस आधार पर बिहार की पिछड़ी जातियों को गोलबंद किया जा सकता है और इस रणनीति पर चल कर बीजेपी को रोका जा सकता है।

नीतीश कुमार ठीक इन्हीं कारणों से राज्य स्तर पर जाति जनगणना की बात कर रहे हैं क्योंकि वे इसके ज़रिए ओबीसी समुदाय में ख़ास कर उन जातियों को लुभा सकते हैं जो बुनियादी तौर पर उनके साथ नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जनता दल के कोर वोटर हैं। 

वे इसके ज़रिए बीजेपी पर दबाव की राजनीति भी कर सकते हैं।

क्या कहना है केंद्र सरकार का?

केंद्र सरकार ने अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की जनगणना कराने की माँग स्पष्ट रूप से खारिज कर दी है। संसद में सरकार ने कहा है कि ऐसी कोई योजना नहीं है।

Nitish kumar, tejaswi yadav back caste census of karnataka model  - Satya Hindi
नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार

संसद में सरकार का जवाब

16 मार्च 2021 को बिहार के नालंदा से जनता दल यूनाइटेड के सांसद कौशलेंद्र कुमार, बिहार के ही पूर्णिया से जनता दल यूनाइटेड के संतोष कुमार और बिहार के मधेपुरा से जनता दल यूनाइटेड के दिनेश चंद्र यादव ने पूछा था कि क्या 2021-22 में होने वाली जनगणना के दौरान जाति आधारित जनगणना कराने की सरकार की कोई योजना है? 

 इसके जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था, "आगामी जनगणना की प्रश्नावलियाँ विभिन्न हितधारकों के साथ परामर्श करके तैयार की गई हैं। जनगणना में उन जातियों व जनजातियों की गणना की जाती है, जो संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 (समय समय पर यथासंशोधित) के अनुसार अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के रूप में विशेष अधिसूचित हैं। भारत संघ ने स्वतंत्रता के पश्चात एक नीतिगत मामले के रूप में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अतिरिक्त जातिवार जनगणना न करने का निर्णय लिया है।"

बिहार में कितने प्रतिशत ओबीसी हैं?

बिहार में यूनाइटेड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (यूडीआईएसई प्लस) की रिपोर्ट चर्चा में है। 

2019 के आँकड़ों के मुताबिक़, प्राथमिक स्कूलों में पंजीकरण के आधार पर देश में 25 प्रतिशत सामान्य, 45 प्रतिशत ओबीसी, 19 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 11 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के लोग हैं।

जाति जनगणना क्यों?

मंडल कमीशन की रिपोर्ट में जिन जातियों को ओबीसी आरक्षण दिए जाने की सिफ़ारिश की गई थी, 1931 की जनगणना के मुताबिक़ उनकी संख्या 52 प्रतिशत थी। 

आयोग ने ये आँकड़े सटीक नहीं माने थे और जाति जनगणना कराकर सही आँकड़े हासिल करने की सिफ़ारिश की थी।

मंडल आयोग ने अनुमान लगाया था कि 1931 से लेकर आयोग के गठन यानी 1978 तक सभी जातियों में बच्चे पैदा करने की दर एक समान रही हो तो जिन जातियों को ओबीसी आरक्षण दिए जाने की सिफ़ारिश की जा रही है, उनकी संख्या 52 प्रतिशत होगी।
यूडीआईएसई प्लस के आँकड़ों के मुताबिक़, प्रमुख राज्यों के आँकड़े देखें तो प्राइमरी स्कूलों में ओबीसी की संख्या बिहार में 61 प्रतिशत है।

इसके अलावा उनकी मौजूदगी तमिलनाडु में 71 प्रतिशत, केरल में 69 प्रतिशत, कर्नाटक में 62 प्रतिशत है। 

इनकी तादाद उत्तर प्रदेश में 54 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 52 प्रतिशत, तेलंगाना में 48 प्रतिशत, राजस्थान में 48 प्रतिशत, गुजरात में 47 प्रतिशत, झारखंड में 46 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 45 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 43 प्रतिशत, ओडिशा में 36 प्रतिशत है।

Nitish kumar, tejaswi yadav back caste census of karnataka model  - Satya Hindi

कितना आरक्षण?

सरकारी नौकरियों व शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को केंद्र के स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता है। वहीं अलग-अलग राज्यों में ओबीसी के आरक्षण का प्रतिशत अलग- अलग है और कुछ राज्य ओबीसी आरक्षण नहीं देते हैं।

अनुसूचित जाति को 17 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत आरक्षण उनकी जातियों की संख्या के आधार पर मिला हुआ है। 

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प्रमोद मल्लिक
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