जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव आगे बढ़ता जा रहा है उस तरह से बिहार में मुक़ाबला रोचक होता हुआ लग रहा है। सात मई को तीसरे चरण में बिहार की जिन पाँच सीटों पर मतदान होना है, उसको लेकर काफी गहमागहमी है। इस चरण में झंझारपुर, अररिया, सुपौल, मधेपुरा और खगड़िया सीट पर मतदान होना है। इन सभी सीटों पर बेहद दिलचस्प मुक़ाबला रहा है। जानिए, इन सीटों में से किन पर कैसी स्थिति है और किस दल का पलड़ा भारी है।
झंझारपुर
झंझारपुर से जदयू ने अपने निवर्तमान सांसद रामप्रीत मंडल को मैदान में उतारा है जिन्होंने उस वक्त यानी 2019 में राजद उम्मीदवार गुलाब यादव को मात देते हुए 3 लाख से भी ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। गुलाब यादव 26% वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। बता दें कि इंडिया गठबंधन में सीट बँटबारे के बाद राजद अपने खाते से 3 सीट वीआईपी और मुकेश सहनी को दिए हैं। इसी तीन में एक झंझारपुर है जहाँ से मुकेश सहनी ने इस बार सुमन महासेठ को टिकट दिया है। हालाँकि, सुमन महासेठ VIP के टिकट से 2020 का विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं और पिछले साल मार्च 2023 में बीजेपी में शामिल हो गए थे। लेकिन अब सुमन महासेठ महागठबंध समर्थित VIP उम्मीदवार हैं।
रामप्रीत मंडल के विरोध में लोगों के बीच खासी नाराजगी है, लेकिन सवाल है कि किस हद तक सुमन महासेठ इस नाराजगी को भुना पाते हैं? इस क्षेत्र के दो बड़े यादव नेता राजद और महागठबंधन से नाराज चल रहे हैं। गुलाब यादव जो पिछले चुनाव में राजद उम्मीदवार थे, इस बार बीएसपी के टिकट पर ताल ठोक रहे हैं। गुलाब यादव ने निर्दलीय अपनी पत्नी को एमएलसी बनाया। उनकी बेटी जिला परिषद अध्यक्ष हैं। उन्होंने पिछले एक- दो सालों में अच्छी खासी जमीन तैयार कर रखी है। 5 बार के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री दवेंद्र यादव का राजद से नाराजगी इतनी बढ़ गई कि इन्होंने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पार्टी दोनों से इस्तीफा दे दिया। देखना होगा कि माई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण में यदि यादव समुदाय के दो परिवार नाराज हैं तो किस हद तक यादवों का वोट एकजुट रह पाता है या इसमें बिखराव हो सकता है। झंझारपुर में 3 लाख से ज्यादा आबादी यादवों की है। झंझारपुर में 3 विधानसभा बीजेपी के पास, 2 जदयू और 1 राजद के पास है।
खगड़िया
खगड़िया से एलजेपी ने राजेश वर्मा को मैदान में उतारा है। यहाँ से एलजेपी के टिकट पर दो बार सांसद रहे चौधरी महबूब अली कैसर इस बार टिकट नहीं मिलने के कारण आरजेडी से जुड़ चुके हैं। आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बन गए। जब लोजपा में दो फाड़ हुआ तो 6 में से 5 सांसदों का झुकाव पशुपति पारस के पक्ष में था। इसी वजह से चिराग पासवान ने उन 5 में से 4 सांसदों को इस बार टिकट नहीं दिया, जिसमें चौधरी महबूब अली कैसर भी शामिल हैं। सिर्फ वीना देवी को वैशाली से टिकट कंफर्म हो पाया है। हालाँकि राजेश वर्मा का अपराधों से पुराना संबंध है। इनके यहाँ ईडी, आईटी का छापा पड़ चुका है और एससी/एसटी एक्ट में इनके ख़िलाफ़ आरोप पत्र भी दायर किया जा चुका है।
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के बारे में कई मीडिया रिपोर्टों में कयास लगाए गए थे कि जदयू और नीतीश कुमार को कमजोर करने के लिए चिराग ने उम्मीदवार उतारे थे और इसमें बीजेपी का भी नाम जोड़ा जा रहा था। हालाँकि तब इन रिपोर्टों को खारिज कर दिया गया था।
तो सवाल है कि क्या लव कुश समाज और जदयू का कैडर इस बार 2020 के उस कथित घटना को भूल गया होगा? कहते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है, यही वजह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में आमने सामने रहे चौधरी महबूब अली कैसर और मुकेश सहनी आज एक मंच से संजय कुशवाहा के पक्ष में अपील करते नजर आ रहे हैं। खगड़िया लोकसभा के अंदर आने वाले 6 विधानसभाओं में से 3 राजद, 1 कांग्रेस और 2 जदयू के पास है।
अररिया
लेकिन ठीक 1 साल बाद जब 2019 का आम चुनाव हुआ तो बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप सिंह अपने तीसरे प्रयास में सफल हुए और उन्होंने 1.4 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की। जबकि राजद प्रत्याशी सरफराज आलम अपनी नई नवेली सफलता को दोहरा पाने में असफल रहे और 4.8 लाख वोट पाकर दूसरे स्थान पर रह गए। हालाँकि अररिया लोकसभा की जनसंख्या भी राजद प्रत्याशी के अनुकूल है क्योंकि यहां 40% यानी 7.50 लाख से अधिक मुस्लिम आबादी है और साथ में 1.5 लाख से ज्यादा यादवों की जनसंख्या है। MY समीकरण के हिसाब से राजद प्रत्याशी मोहम्मद शाहनवाज आलम का स्पष्ट बढ़त दिख रहा है। विधानसभा की बात करें तो 3 बीजेपी, 1 जदयू, 1 राजद और एक सीट कांग्रेस के पास है।
मधेपुरा
1962 के लोकसभा चुनाव में एक नारा इतना मशहूर हुआ कि मामला कोर्ट तक पहुंच गया था। दरअसल उस चुनाव में प्रजा सोशलइस्ट पार्टी के उम्मीदवार बीएन मंडल ने सहरसा लोकसभा से कांग्रेस के कद्दावर नेता ललित नारायण मिश्र को हराया था। चुनाव परिणाम को कोर्ट में चुनौती इस आधार पर दी गई कि बीएन मंडल ने अपने पोस्टर में जातिवादी नारा "रोम है पोप का, मधेपुरा है गोप का" का इस्तेमल किया था। 1962 का यह नारा आज भी मधेपुरा की सच्चाई है। हालाँकि जदयू नेता दिनेश चंद्र यादव मूल रूप से सहरसा के हैं जबकि कुमार चंद्रदीप मधेपुरा के ही हैं। यही वजह है कि आज मधेपुरा में स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा गरमा गया है। कुमार चंद्रदीप पेशे से प्रोफेसर हैं, इनके पिता की सामाजिक कार्यकर्ता और एक राजनेता के रूप में लोकप्रिय छवि है जिसका सीधा फायदा कुमार चंद्रदीप को मिलता हुआ दिख रहा है। विधानसभा की बात करें तो इस क्षेत्र में चार सीटें जेडीयू, एक बीजेपी और एक राजद के पास है।
सुपौल
सुपौल लोकसभा सीट पर कोई भी व्यक्ति दोबारा जीत नहीं दर्ज कर सका है। 2024 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू अपने निवर्तमान सांसद दिलेश्वर कामत को मैदान में उतारा है जो उम्रदराज और वयोवृद्ध राजनेता हैं। जबकि आरजेडी तेज तर्रार नेता और सिंहेश्वर से विधायक चंद्रहास चौपाल को टिकट देकर मुकाबले को बेहद रोचक बना दिया है। मुकाबला आमने-सामने का है। देखना होगा कि सुपौल की स्थापित परंपरा टूटती है या कायम रहती है। 2019 के चुनाव पर एक नजर डालें तो जदयू उम्मीदवार दिलेश्वर कामत ने 2.5 लाख वोटों से भी अधिक वोटों के अंतर से कांग्रेस प्रत्यशी रंजीत रंजन को शिकस्त दी थी। वह पप्पू यादव की पत्नी हैं और अभी राज्यसभा सांसद हैं। हालाँकि 2014 में कांग्रेस प्रत्यशी रंजीत रंजन जदयू उम्मीदवार दिलेश्वर कामत को मात दे चुकी हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव में सुपौल लोकसभा के अंदर आने वाले 6 विधानसभाओं में से चार जदयू, एक बीजेपी और एक राजद के खाते में गई।
तीसरे चरण में बिहार के जिन पाँच सीटों पर चुनाव होगा, उसमें मिथिलांचल का कुछ हिस्सा और कोसी अंचल आता है। सभी सीटों पर आमने-सामने यानी वन टू वन फाइट है। मुकाबाला कांटे का है इसलिए अभी कुछ कह पाना थोड़ी जल्दबाजी होगी। एनडीए खेमों की तरफ से तीन सीटों पर जेडीयू, एक एलजेपी और एक सीट पर बीजेपी चुनाव लड़ रही है। जबकी इंडिया गठबंधन की तरफ़ से तीन सीट पर आरजेडी, एक सीट पर सीपीआई(एम) और एक सीट पर VIP मैदान में है।
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